Wednesday, May 2, 2007

भाग - एक



आज सुरुत्ती हे न तउने पाके दियना के अंजोर ह रइपुर भर मं बगरे हवय। जेन ल देखौ तेने ह रिंगी चिंगी ओन्हा पहिरे उच्छाह मं भरे हवय।

रइपुरा गांव के थनवारिन संग कतको मोटियारी टुरी टुकना मं सुआ धर के तरी नरी नाना, मोर सुअना गावत गौंटिया के दुआरी मं पहुंचिन। गौंटिया रामधन चउरा मं अपन संगवारी मन संग बइठे तास पत्ता खेलत रिहिस। थनवारिन ल देख के तास पत्ता मढ़ा दिस।

थनवारिन ह अपन संग के टुरी मन ले किहिस – लेव गावव ओ। तहां ले सब्बो झिन कनिहा ल निहुरा के तारी बजा बजा के गांवन लागिन।

सुअना रे सुअना, भई मोर सुवना
पहिली गवन के मैं डेहरी बइठारेंव
कि जब धन रहेव में भइल बपन के
के तम्मो नइ गए बनिजार
काकर संग खाइहों काकर संग खेलिहों
काला देख रइहों मन बांध
सासे संग खाइबे ननद संग खेलिबे
कि लहुरा देवर मन बांध
लहुरा देवर मोर बेटवा बरोबर
कि काला देखि रहवं मन बांधि
तोर अंगना चउरा बंधा ले
कि तुलसा ल देबे लगाय
नित नित छुइबे नित नित पितबे
कि नित नित दियना जलाय
तुलसा के बिरवा हरियर हरियर
कि मोर गोंसइया बनिहार
तुलसा के बिरवा झुरमुर भइया
कि गोंसइया गए रन जूझ

सुआ गीत तभे थमिस जभे गौंटिया ह पांच ठिन रुपिया अऊ एक ठिन लुगरा थनवारिन ल दिस। थनवारिन ह असीस देइस अऊ रेंग दिस दुसर दुआरी।

रामधन के संगी मन फेर तास मं रमिन। ओतके बेर मंगलू ह रामधन के दुआरी के आगू ले निकरिस। मंगलू ह अगुवागे त खिलावन ह किहिस – काली बनिया खेमचन्द ह कहत रिहिस के मंगलू उप्पर शनी चघे हवय तभी ले ओखर बंठाधार होइस हे।

रामधन ह हांसिस अऊ किहिस – कोढ़िया मनसे अइसने कथे गा खिलावन। जेकर ले कुछु कांही करत नइ बने उही ह कइथे के मोर करम ह फुटहा हे। मंगलू के चाल ह बने होतिस त कालाहंडी के नउकरी काबर छुटतिस ? ओला अपन घर दुआरी के बड़ मोह हे, दिन रात उही मं लगे रहिथे अऊ कइथे, मेंह ठलहा हौं, कोनो बूता ऊता मोला नइ मिलै।

रामधन के संगवारी ह किहिस – हहो गा संगी, तै बने कइथस, जेकर मन मं बात नइ लगय वो ह कभू कुछु नइ करे सकय। तोला मालूम नइये भइया रामधन, के मंगलू राजा असन किंजरत रइथे। फेर यहू बात हे कतको झिन ओखर मेंर तगादा आथें। आजेच सुखरू ह कइ देइस हे, काली ले चण्डी बन्द कर दुहूं।

तास पत्ता के खेल ह थम गे ये गोठ मं। मंगलू के हिन्ता करे मं सब्बो झिन ल मंजा आवत रिहिस। गोठ ह आगू चलिस। खिलावन फेर किहिस। - सरकार के पहिली पांचसाला योजना ह त फलित होगे अऊ दूसर ल फलित करे बर उपाय चलत हे, फेर भइया समझ मं नइ आवय के मंगलू ल कोनों बूता कइसे नई मिलिस।

रामधन ह किहिस – हमन ल काय करे बर हे जी, जइसन बोही तइसने लुही, कुकुर धोके बच्छवा नइ होवय। मंगलू ल मेंह बालपन ले जानथंव, ओमा कमई करे के गुन त हई नइये, मोर काये रद्दा मं मिलिस त राम राम हो जाथे। महूं जानथंव के मुंह लगाय मं ओह अपन मतलब गांठे के गुनही।

काय केहे जी ? दूसर संगी ह पुछिस त रामधन ह किहिस – मंगलू ल करजा मांगे के टकर परगेहे। ओह अभी ले मोर करा करजा मांगे ल त नई आइस हे फेर मंगना के कोन भरोसा, तउने पाय के मेंह ओखर ले दुरिहा रइथों।

दे गोठ ल सुनते खिलवान ह किहिस – नइगा भइया, तें ए फेर मं झन परबे। नइत ले बर लुपलुप, देय बर चुप चुप। मंगलू ह पइसा लहुटारे मं गजब किच्चक हवय।

ठउका केहेगा, महूं हा मांटी के गोटी नइ खेले हववं। मेंह वइसने टेम ल आन नइ दंव।
क्रमशः

भाग - दो



हांसके गोठ ह चलते रिहिस। ये तीनों संगी मन मंगलू के हिन्ता कर कर के खुशी मनावत रिहिन। रामधन ह गौंटिया रिहिस, धन दोगानी बुजबुज ले भरे रिहिस। फेर समय के फेर अऊ अब मंगलू के इही कोशिश रिहिस के दूनों जून बासी मिलय जेकर ले ओह अपन गिरस्ती ल चलाय सकय। गिरे दिन मं मनखे हिन्ता करथे, अऊ किसिम किसिम के गोठ ल निकारथें। वो मन ओखर गुन ल भुला देथें, कहूं मनखे के जरूरत ल मनखे समझ पातिस त हिन्ता के बदला मं संगी के मया ह लहलहातिस। छोटे बड़े सब्बो भाई भाई होतिन, पइसा वाला अऊ कंगला के फरक नइ रइतिस।

रामधन के बखरी मां मंगलू के उप्पर किसिम किसिम के गोठ होवत रहय। अऊ मंगलू ह देवारी के दिन अपन करम के धरम मं इती उती किंजरय। धुर्रा धुर्रा के घुमई ओखर पांव मं बेवइ कस घाव होगे रिहिस। पनही ले ओकर अंगरी मन झांकत रिहिन ! फटर फटर करत रेंगे।ओखर ओन्हा मन मां घला कतको कापा लगे रिहिस। ओखर चुन्दी ह कतको दिन ले तेल नइ परे ले छरिया गे रिहिस। मंगलूके दुख के बंटइया भगवान बिगर कोनों नइये, अइसने बेचारा के दिन ह बीतै।

मंगलू ह बड़ आसरा लेके सहर रइपुर के एक बनिया इहां नउकरी के फेर मां आय रिहिस। फेर ओखर ले पहिली ओखर करम छंड़हा तकदीर ह पहुंच गे रहिस। मंगलू उदास मन ले घर कोती रेंग दिस। ओखर खीसा मं एक धेली नइ रहय के रइपुर मं भजिया उजिया खा लेवय। बेरा ह मूड़ी उप्पर आगे रिहिस अऊ अभी ओला रइपुरा अमरे ल एक पहर लगय। रइपुर नहकत ले त ओला मुनिसिपल्टी के टोटी साथ देइस।

मंगलू ह रइपुरा के धुर्रा वाला रद्दा मेंर पहुंचिस के ओला ओखर गांव के धनऊ बरेठ ह भेंटिस। उहू ह रइपुर माटी राख अऊ लील आने ला गे रिहिस। मंगलू ल देखते किहिस – कस गा, जुन्ना गौंटिया, रइपुर गे रेहेगा ? काय बुता परगे रिहिस के अत्तेक तमतमावत घाम मं रेंग देव ? तोर दुख के दिन ल देखके मोर करेजा ह फटथेगा।

मंगलू ह किहिस – का कहौंगा बरेठ कका। बेरा ह अइसने आगे हे के हाथ के सोन ह मांटी होगे हवय। ददा ह रामधन ले करजा नइ लेतिस अऊ नई मोला अइसन दुख भोगे ल परतिस। कोन कोन ल दोष दौंगा, मोर करमें ह फुटहा हे। फेर आघू धन दोगानी नइ देखतेंव त ए दिन ह मोला कभू नइ खलतिस। काय बचे हे, एक ठिन कुरिया अऊ दू एक्कड़ खेत, तउनो मां आगी लगगे हे, बिन पइसा के परती परे हवे।

धनऊ ह किहिस – ले छोड़गा रोनहुक गोठ ल। भगवान ल सबके फिकर रइथे। मंगलू अउ धनऊ भोंभरा ले बचे बर लकर धकर रेंगिन। फेर मंगलू ल गिरस्ती के भार ह झकझोरिस। ओखर गोड़ ह कांपत रहय फेर ओखर चलई ह बड़ तेज रहय। ओला लगय के ओखर उप्पर अकास ह फट परही, बिजुरी ह गिर परही। कोनों ओकर सोर नइ पाहीं। ओखर आंखी के आगू अंधियार छा गे। अपन दुख ला काला कहय। जग के दू नाव, नेकी अऊ बद। मनखे बने के त संगी हवय फेर बिगरे मं मूड़ी घला नइ डोलाय। ये ह जुन्ना रीत हवय न। फेर बेचारा मंगलू कोन खेत के ढेला आय। ओह भटकत रिहिस धरती माता के ओरी मं। ओला कखरो आसरा नइ दीखय। ओह सोचय के आज घर मं चूल्हा नइ बरे होही। समारु ह भुखा गे होही। सोनिया ह भूख ले तलफत होही अउ मोंगरा बहिनी धीर धर के बइठे होही के भइया ह कुछु कांही लानही। रहिगे केतकी, ओहू ह मने मन ए गरीबी मं फटफटावत होही। नइ जानवं भगवान ह कतेक धीरज देय हावय ओला। ओह नारी परानी होके अइसन दुख के दिन मं हांसते रइते। मिहनत करो अउ अगुवाव, दे मां ओखर बिसवास हवय। मोर मरे जिये के संगवारी एक उही ह त हवै। कहूं मेंह अपन खटला ल पेट भर नून बासी खवा सकतेंव अऊ ओन्हा दे सकतेंव, त फेर मोर गिरस्ती मं कुछु कमइत नइ रतिस। फेर जग ह बड़ निरदई हवय। ओह नइ पसीजे, ओखर करेजा ह पथरा के हवय। मनखे मन कइथें के पथरा के छाती म घला पानी होथे, पहाड़ ले नदिया निकरथे। कोनों कोनों पथरा अतेक मजबूत होथे फेर ओखर छुरा बन जाथे त उहू बड़ कसकथे। कहूं कोनों मोर जिनगी के कसक ल समझे पातिन, मोला कुछु कांही बूता देतिन; मेंह रोजी ले लगतेंव। कइसनों मोर गिरस्ती चलतिस अऊ मोला कुछु नइ खंगय।

दुआरी के आगू आगे मंगलू। भितरी ले कखरो रोयके अवाज आवत रहय। चउखट मं गोड़ मढ़ाते ओह ह सुनिस – समारु रोवत रोवत केतकी ले कहत रहय – लान न दाई बासी, अब भूख ह नइ सहाय, दादा ह कोन जाने कब आही, मोला बासी दे।

केतकी ह रो डारिस। वो ह समारु ल समझावत रहय – राजा बेटा मन रोवय नइ समारु, तोर ददा ह आवत होही, तोर बर खाई लानही।

समारु ह जिद करके अउ चिचिया चिचिया के रोवन लगिस। वो ह अपन दाई के लुगरा ल धर के किहिस – नइ दाई नइ, मेंह तोर बात ल नइ मानवं, चल आगी बार, मोला अड़बड़ भूख लगे हवय।

मंगलू ह फरिका तीर ले सब सुनत रहय। ओखर आंखी ले आंसू चुचुवागे। बखरी मं नींगिस अउ समारु ल अपन कउरा मं पोटार लिस अउ ओखर मूंड़ी मां हाथ फिरोइस ओला बिसवास देय बर कुछु किहिस, ओंठ हालिस फेर भाखा ह नइ फुटिस।
क्रमशः

भाग - तीन



हिन्ता के गोठ ह राई ले रुख बनगे। मनखे मन मंगलू ला लबरा केहे लागिन। अउ मंगलू ह अपन बिगरे बेरा ले जूझत रहय। बेरा के चाल ह बेलउक रहय। ओला कखरो आसरा नइ रिहिस।

ए दुख के दिन मं मंगलू ल अपन बीते दिन के सुरता ह आ जावय। जब ओह टाटानगर के लोहा कारखाना मं नउकरी करत रिहिस। मंजूरी के संग एती ओती के अवइ मं भत्ता घला मिलय। फेर महिना मां खर्चा ले कुछु रुपिया बांच घला जावय। उही बांचे रुपिया ले ओह अपन गिरस्ती ल अब ले पोसिस। फेर अब त चाउर के एक-एक सीथा ह दुभर होगे। सब्बो के पेट ह पीठ मं चट्टकगे।

मंगलू तीन बच्छर ले ठलहा रिहिस। फेर रइपुर मं कभू कभू लइका मन ल पढ़ाय के बूता ओला मिल जावय। फेर बंधक बूता ओला नइ मिलिस। समारु के पढ़इ लिखइ ह रुकगे रिहिस अउ मोंगरा ल मेटरिक ले आगू पढ़ाय के हिम्मत नइ परिस। अब सबले पहिली ओखर बिहाव के फिकर। फेर जोन मन भूख ले बिलबिलावयं, एतका बढ़ भार ल कइसे उठातिन।

मंगलू हाथ पांव मारे फेर ओखर कुछु नइ चल सकिस। दरिद्री ह ओखर संगवारी बनगे रिहिस ना। सहर के परोसी अउ गंवई के परोसी मं बहुते फरक होथे। मनखे मन कहिथें के सहर के परोसी ह काम नइ परय फेर गंवई के मन इन्कर ले बने रहिथे। मंगलू के अत्तेक कमजोरहा दिन मं कोनों साथ नइ दिन। अउ उलटा ओखर हंसी ठट्ठा उड़ावयं। ओमन कहयं के अतेक तन्दुरुस मोठ डांठ मनखे, पिरथी मं गोड़ मारै त जझरंग ले पानी निकरे लागय। बड़ अचरज के गोठ आय के जम्मो गांव वाला मन के कइथे ओला कुछु बूता नइ मिलय। दुनिया ह कतेक अगुवागे फेर ये करम छड़हा ह अपन डउकी लइका के घोंघरा ल नइ भरे सकय। निच्चट अप्पत हे।
क्रमशः

भाग - चार


ये गोठ आय गांव वाला मन के। पंछी ह जिव ले जाय, अउ खवइया मन ल मिठावय निंही। मंगूल उप्पर मुसीबत परे रहय, ओखर मन के बात ह मांटी मं मिलगे। फेर तभ्भो ले मन के कोंनहा ले कोनों कहय, मंगलू के मुसीबत के दिन ह कभू बूड़बे करही।

अइसन रिहिस मंगलू के जिनगी। मन ह मरगे रिहिस। ओखर इच्छा पूर होयके बेरा ह अबले नइ आय। ओला दिन रात इही लगन रहय। अपने बात ल गुनय, पूरब के अकास ह जब पिरथी के ओरा मं झकझक ले अंजोर भरही त नवा जिनगी फेर पनपही। बेरा उये पांखी फूल बन जाथे, फेर मंगलू के मन के पांखी कभू नइ उघरे पाय। एह भगवान के शराप होवय नइ त तकदीर के फेर।

एक दिन बिहिनिया ले गांव के मनखे मन बड़ जोर सोर ले गोठियावत रहयं। गजब होगे ! गजब होगेगा !! मंगलू ह अपन कुरिया के नीचू के हिस्सा मं चरनदास नांव के चमरा ल भारा मं दे दिस। ये चमरा ह सरकार तरफ ले हमर गांव मं कुकरी पोसही। राम राम, ये अन्धेर। कोंन जाही गा ओखर कुरिया ? ब्राम्हन पारा मं चमरा ल खुसेर लिस। कोनों छुआछूत के भेद ल नइ मानिस ओहा। घर मं मोटियारी बहिनी बिहाव बर बइठे हवय, काली कोन राजी होही ओखर घर भात खाय बर ? मनखे उप्पर दुख परथे, फेर अपन धरम करम ल त बरकाय बर लागथे।

समाज वाला मनके गोठ ये रिहिस। फेर कोनों एला नइ बूझिन के मंगलू ह काबर अइसन करिस ? ओह अपन गिरे बेरा के नाथ ल खींचे बर अइसन रद्दा मां चलिस, मोर हिन्ता होही अइसन ओह नइ पहिली सोचिस अउ नइ अब। अपन गिरस्ती ल कइसनों चलाय बर ओला इही रद्दा दीखिस।

मंगलू के घर ह टूटत रहय। कब जमाना के घर अब ले ओकर मरम्मत नइ होय रिहिस। पहिली जब बने दिन रिहिस त अपन घर ला भारा मं उठाय के ओला जरूरत नइ रिहिस। फेर अब ओहा गुनै के नीचू के हिस्सा ल किराया मं उठा दूहूं। थोर बहुत भारा आही त ओखर हुलुपुटु जरूरत ह निकरबे करही। हमन उप्पर के हिस्सा मं गुजर बसर कर लेबोन।

इही गुन के मंगलू ह एक कागज रोगन ले लिखके दुआरी मं चटका दे रिहिस के मकान भारा मं खाली हावय। फेर कतको किरायादर मन आइन अउ झांक झूक के रेंग दिन। कतको झिन घर ल देखके कहयं के दे मकान ह गिराउक असन लागथे, कोन ह अपन जीव ल जोखिम उठाही।

आय घला सैंतुक घर मं गजब सीड निकरै। अइसे लगथे के एक दू पानी मं एकर ओर सोर नइ मिलय, कभू भरभर ले गिर परही।
क्रमशः

भाग - पाँच


रइपुर मं मंगलू ह समाज सिज्छा के अफीसर जगन्नाथ बाबू के बेटा ल रोज पढ़ाय ल आवय। एक दिन ओह मंगलू ले किहिस – क्यों मंगलू, आप यहां के हरिजन नेता को जानते हैं ? मंगलू ह किहिस – हहोगा, जानथंव त काय होगे ?

जगन्नाथ ह किहिस – उसे तुम्हारे गांव में एक मकान किराये से चाहिए, सरकार की तरफ से वह मुर्गी पालन केन्द्र की स्थापना कर रहा है। मंगलू ह चाहते रिहिस ओहा राजी होगे।

मंगलू के घर में तीन झिन हरिजन मन आके रहे लागिन। ओ मन अघुवा के मंगलू ल एक महिना के केराया तीस रुपिया दे दिन। ये रुपिया ले मंगलू एक सहारा मिलिस। ओह अनाज पानी लेके इन्तजाम कर लिस। गांव वाला मन चिचियावत रहिन फेर मंगलू उप्पर ओखर कोनों असर नइ होइस। मोंगरा अउ केतकी घला ये चखचख ला सुनिन फेर उही दूनों झिन एक दूसर के मन ल समझा लिन।

मोंगरा के गोठ अइसे ये, ओह किहिस – तहीं बता न भउजी, अखीर भइया का करतिस ? हमर घर मं अउ कोनों केरायादार मन नइ अइन त हम का करन। चमरा ह आइस त उही ल रख लेन। ये कोनों पाप नोहे। मनखे चोरी झन करय काम कोनों हीन नइये।

रतिहा मंगलू अउ केतकी के गोठ चलत रहय। केतकी ह जात सगा अउ टोला वाला मनले डर्राय के बात ल किहिस त मंगलू ह अपन हाथ ल मटकावत किहिस – मेंह कखरो ले काबर डर्रावं, कोनों ले मदद मांगहूं त झिन देवय। जोन ह मोर बेरा मं संग दिही उही हमर बर सब्बे कुछु हवय। वोह आनजात वाला होवय के जात सगा। जब हमर जात सगा मन संग नइ देइन फेर उन्कर ले डर कइसे केतकी ? मन मं गुनत ओ, जब हमर नान नान नोनी बाबू मन अनाज के एक सीथा बर बिलबिलावय त कोनों ह एक जुआर खवा नइ सकिन। मेंह जौन करे हवयं न सोच समझ के करे हववं।

इन्खर गोठ ह रुकिस त मंगलू के मूंड़ी ह फेर अपन गुन गुन सुरु करिस। कहूं मोला दू कोरी पांच के कोन्हों नउकरी मिल जातिस त मोर दुख ह कट जातिस। लइका पढ़ाये के दस रुपिया मिलथे फेर ओह त ऊंट के मुंख मं जीरा असन आय। एतेक मं गिरस्थी ल कतेक दिन झींकूहं। भगवान करतिस के मनसे के सोचे बात पूर होतिस। फेर ये दुनिया ह घला रिंगी चिंगी हावय। ओह रंग बदलथे, ये दुनिया के फेर मां। उमर ह पहा जाए अउ जिनगी ह थकासी मं सूत जाथे।

जात वाला मन ल आंखी फेरत मां कतेक देर लगथे। अपन टेंटा ला देखैं निहीं, आन के फूला ल हेरथें, जेकर ओमन बड़वारी करथें ओखरे हिन्ता करत मं घला उनला बेर नइ लगय। अउ ओ मनखे ह उन्कर दिखउल मं कुछु नइ रहि जावंय।

पारा मं कखरो घर कुछु उच्छाह होवय त मंगलू घर नेउता नइ देवंय। केतकी ह अइसन व्यौहार ले कंप जावय। अउ सगा मनके छोड़े ले ओला लाज लागय। परोसिन मन कहूं रद्दा मं भेंटय त कहयं के कोन जावय तुम्हर घर। लहुट के नहाय बर परही। घर मं त चमरा ल खुसरे ले हावव, जात सगा मन मरगे रिहिन का ?

परोसिन मन के गोठ ल सुनके केतकी ह चुप्पे नइ रहय। ओह जवाब देबेच करय, के हमन त उप्पर मं रहिथन। केरायादर ह त नीचू मं रहिथे, फेर छुआछूत के कोन बात। एक दूसर ले कोनों सरोकार नइये। फेर सुराज के आयले अउ हमर गांधी बबा कहेले छुआछूत अब कोनों नइ मानयं।

केतकी के अइसन गोठ ल सुनके परोसिन मन मुंह ल बिदकाके रेंग देवयं त केतकी ल लागय के ओखर जीत होगे।

फेर घर के पहुंचते ओखर मन ह उदास हो जावय। जात सगा मनके अइसन दुराव करे ले कइसे बनही। अभी मोला मोंगरा के बिहाव करे बर हवय। जात सगा मन नइ फटकहीं त बने नइये। जात सगा ले मिलके चले ल परही, अलग रहे ले नइ बनय। जात सगा मन त रुख आंय अउ हम ओखर डारा पाना।
अपन मन के गोठ ला एक दिन केतकी ह मंगलू ले किहिस – कसगा, तैं देखथस ? जात सगा मन तिरियागे हवयं, हमन ले। जेन गांव मं हमर सात पुस्त ले गौंटियाई रिहिस, उही गांव मं आज कोनो हमला चीन्हें निहीं। मोंगरा के बिहाव ह बिन पइसा के कब ले पिछुवागे हवय। ए मन मोंगरा के बिहाव मं झांकही घला निहिं।

मंगलू ह किहिस – नइ आहीं त झन अवयं। जात सगा मन नइ आहीं त मोंगरा के बिहाव ह रुक जाही। तोला त अइसने सोचना नइ चाही। फिरे दिन मं मनखे के इज्जत ह मांटी मं मिल जाथे। मेंह अघागे हववं ए जात सगा मनले। मोला अपन रद्दा खुदे बनाय बर हे। मेंह कखरो आसरा नइ करवं।

मंगलू के गोठ ल सुनके केतकी ह चुप्पे होगे। वोह मन मं गुनिस के इन्खर ले कुछु कहय त ए ह अपने बुध के गोठ गोठियाथे।
क्रमशः

भाग - छह



बरखा बीतगे, जाड़ के दिन आगे। मंगलू के ओन्हा निच्चट चिरागे रहय। केतकी के मन ह रोदै अपन मनखे के मुसीबत ल देखके। ओला कमइ के कोनों रद्दा नइ दिखय। एक दिन केतकी ह मोंगरा ले किहिस – नोनी हमर दिन ह अइसे नइ फिरय। कुछु करना परही। रामधन गौंटिया इहां धान कुटवाथे, हमू मन अपन घर मं धान ल कूट के अमरा देबोन। मंजूरी मिलही त हमर दुख के बेरा मं काम्मेच दिही। मोंगरा किहिस – बने त आय भउजी, भइया बेचारा ल सहारा त होही।

रामधन के धान कूट कूट के केतकी ह दस रुपिया सकेलिस। अऊ एक दिन मंगलू ले किहिस – सुनत गा, तोर ओढ़ना मन निच्चट चिथरा हो गेहे, में दस रुपिया सकेले हवंव, ओन्हा ले आन अपन बर। मंगलू ल दस रुपिया सकेले के गोठ ह समझ नइ आइस। ओह किहिस – कस ओ, कोन मेंर ले लकेले हवस दस रुपिया ? केतकी ह सही बात बता दिस। मंगलू ह रो डारिस, - तुमन अइसे मोर जीव के पाछू काबर परे हावव। गांव वाला मन जात सगा मन त मोर हिन्ता करते रइथें, अब किहिं के देख लौ ग ए निच्चट ल। अब अपन घर के डउकी परानी के कमइ ले पेट पोसथे। तें ह अपन जुन्ना दिन ल भुला देबे, कइके मेंह नइ जानत रहेंव। तहूं त ए गांव के गौंटिया के बहू रहे हवस। चल ले का होगे मोर हिन्ता होही, तोर त बड़वारी होबे करही।

केतकी ह सुनके सुबक सुबक के रोवन लागिस। मंगलू के गोठ ल सुनके। मंगलू ह केतकी ल समझाए लागिस – देख ओ, तैं रो झिन। मेंह तोला बने कइथों अपन इज्जत ल अपन हाथ कोनों नइ गवांवय। हमला त उही भगवान के आसरा ले जिनगी चलाय बर हे। कभू त ओह सुनबे करही। अच्छा लान दे रुपिया मेंह ओन्हा रइपुर ले ले आनहूं। मंगलू ह बजार ले समारु बर सलूका अउ सोनिया बर पटुका अउ पोलखा बिसा लानिस। जब केतकी ह देखिस त कुछु नइ बोले सकिस।

रतिहा जब केतकी ह सुते ल आइस त देखिस मंगलू मांड़ी उप्पर मूंड़ी गड़ाए कुछु मने मन गुनत हावय। ओह मंगलू के चुन्दी मं अपन हाथ फिरोइस त मंगलू मूंड़ी ल उप्पर उठाइस। केतकी ह किहिस – का गुनत रइथस गा, दिन रात के गुन गुन ह तोला फोकला कर दिही। फेर तोर हाथ ले बे हाथ होवय मं हमर मन के कुकुरगत हो जाही। तैं त मेटरिक तक पढ़े हवस। बड़ ज्ञान के बात पहिली मोही ला सुनावत रेहे। फेर धीरे धरे मं त दिन ह फिरथे। मंगलू ह केतकी के गोठ ल सुनके बोध लगिस अउ मांचा उप्पर गोड़ तनिया के ओह सुतगे।
क्रमशः

भाग - सात




जूड़ के दिन के उतरती रहय। केतकी के पांव भारी होगे अउ अब नवा फिकर होगे। मंगलू ल जइसन छेवारी के दिन ह लकठावत जावय। मंगलू के परान ह सुखात जाय। ‘मंगना के घर मं सेंध’ कहां त पेट भरे पुरती कमइ नइ अउ छेवारी के खर्चा। होनी त आय। एमा कखरो काय जोर हे।

हमर डहर जनम के बखत अड़बड़ नेग जोग होथे। पहिली गर्भवास के सतवां महीना मं सधौरी होथे। सात किसिम के खाय के जिनिस ल गरभौतिन ला खवाय जाथे। ओखर पाछू कुटुम के माइ लोगन मन खाथें। उही दिन गरभौतिन के मइके ले मोंटरा आथे। ओमा ओन्हा, गहना अउ रुपिया आथे। इही ला ‘सधौरी’ कइथें।

लइका अवतरे के तीन दिन पाछू छेवरिया ल पियेबर दवइ बूटी, मिंझरा पानी ल हड़िया मां घर के आगी मां अउटांथें। इही ल ‘कांके’ पानी कइथें। येला छेवारी ह पीथे अऊ गांव के माइ लोगन मन घला पियेबर आथें। ये सब नेंगहा काम ल ननंद करथे। एला ‘कांके मढ़ौनी’ कइथें। छेबरिया ल जोन दवइ देय जाथे ओला ‘ओसहा’ कइथें। दूसर माइ लोगन बर खाय ल देथें ओला ‘ढूढी’ कइथें। मोगरा बड़ उच्छाह मां डोलत रहय अउ ‘सधोरी’ ल गावत रहय –

महला मां ठाढ़े बलम जी
अपन रनिया मानावन हो
रानी पीलौ मधु पीपर
होरिल बर दूध आहै हों
कइसे के पियउ करु त करायर
अउ झर कायर हो
कपुर बरन मोर दांत
पीपर कइसे पियंव हो
जो रानी तैं पीपर नइ पीबे
मधु पीपर नइ पीबे
त कर लेहूं दूसर बिहाव
ओहिच पीहै पीपर हो
पीर के झार ह पहर भर
मधु के दुइ पहर हो
सउती के झार जनम भर
सेजरी बंटौतिन हो
कंचन कटोरा उठावव
पी लेहूं मधु पीपर हो
क्रमशः