Wednesday, May 2, 2007

भाग - पच्चीस


दिन आइस अउ रेंग दिस। फेर फिरन्ता ह नइच लहुटिस। मोंगरा ह घर ले बाहिर नइ निकरिस। घर मां खुसरे-खुसरे ओखर मन ह भड़भड़गे। घर ह अकेल्ला मां काटे असन लागय। मने मन सोचिस के भइया भउजी के आगू जाके अपन दुख ल कहौं। ओतखे बेर फिरन्ता के बात के सुरता आगे, रोबे झिन ओ मोंगरा, रोबे त अधा बीच मां भटक जाहूं। में मनखे नइ बने पाहूं। मोंगरा के पांव ठिठकगे। ओह नइ जाय पाइस।

बड़ दिन होगे रहय मोंगरा ल देखे। केतकी ह अपन मने ले किहिस। चल न आज टुरील देख आवन। गजब दिन होगे हे। मंगलू ल किहिस – हमर त अलकरहा दिन चलते हे अउ कुछू देय ले नइ सकन त सुख दुख के खब्बर त लेच सकथन। उहू कइसे ननजतिया के हाथ मां परगे हे।

मंगलू ह किहिस – बने हे चल चलबोन। समारू मेंर छोटका ल छोंड़ दे, खेलावत रइही। हमर आवत ले।

मोंगरा ह जब भइया भउजी ल अपन घर मां देखिस त ओह दउर के लिपट गिस केतकी ले। अउ रोय लागिस।

झिन रो वो। ये का रोवइ ये।

रोवन दे मोर भउजी। रोयले मोर जी के हउक ह निकरही। उबगेंव ओ अइसन जिनगी ले।

दिन ह टरबे करही रोगहा ह। कबले हमीं ओला मोहाय रहिबोन। ले चुपकर बाबू ह नइ दिखत हे रइपुर गे हे का ?

नइ ओ भउजी ओह घर ल छोड़के, मोला छोड़के चल दिस।

अइ काय होगे ओ ! ओ लबरा ल काय सूझगे !! बने रइतिस अपन घर गिरस्ती ल देखतिस। फेर काबर चल दिस ?

एक दिन ओखर खीसा ल मेंह टमर डारेंव। मेंह पहिली कभू त अतेक नइ सोचत रहेंव। मोर गजामूंग ह बइठे ल आय रिहिस त उही ह कहे के भांटो ह अब ले उही निचहा धन्धा ल करथे। मोला भरोसा नइच रहय, काबर के ओहा किरिया खाय रहिस के मेंह अब बने रद्दा मां रेंगहूं। फेर ओह मोला भुलवार के अपन रद्दा ला नइच छोड़िस। ओकर बात ले मोर आंखी त मुंदागे। फेर जग के आंखी ले ओह नइ बांचे सकिस। गजामूंग के बात ले मोर चेथी ह चढ़गे। अउ ओखर खीसा मं हफीन के पुरिया अउ नोट के गड्डी मोला मिलिस। ओखर हमर दू-दू बात होगे। फेर ओह कहिके चल दिस के मनखे बनके तोला मुख देखाहूं।

तें धीर धर ओ टुरी। कहां जाहीं। दू-चार दिन मां लहुट के आबे करही। तोर मन नइ लगय त हमार घर चल के रहिजा। बाबू ह आही त आ जाबे।

अभी रहन दे भउजी। दू-चार दिन देखथौं। फेर नइच आही त अकेल्ला इहां नइ रहि सकवं। तोर मेंर रइहूं।

बने हे, फेर तैं मन झन गिराबे। बाबू ह आही। उहू ह का करे बिचारा। बने रद्दा ल कइसे पातिस ओहा। जेखर कोनों रखवार नइ रहय त कबले वो हा झपावत रहय कंगाली मां। मनखे ल अपन जिनगी चलाय बर पइसा नइच मिलय त ओहा रपटे जाथे। पइसा के मोह मां। मनखे ओखर हिन्ता करथें फेर ओखर जड़ ल कोनो नइ समझयं।

मंगलू अब ले ननद-भउजई के गोठ ल सुनत बइठे रहय। केतकी के बात ल सुन के उहू चुप्पे नइ रहि सकिस। किहिस – मोंगरा, फिरन्ता ह नानुक बाबू नइये। अपन बिगरे बने ल उहू समझथे। ओखऱ आंखी ह उधरा होगे। में जानथंव के ओह इमानदारी ले रोटी चलाय के गुनके घर ल तियागे हावय। ओह अपन मन के बात ल पूर करके लहुटही।
मोंगरा ल समझा बुझा के, ये मन अपन घर रेंग दिन।

दिन उप्पर दिन पहात जावय। फेर फिरन्ता ह अब ले नइच लहुटे रहय। मंगलू घला ओखर पता लगावत रहय। फेर भेंट नइ होइस। पारा-परोस के मन घला कहयं के फिरन्ता के डउकी ह बड़ कलबांक हे। ओखर फटफटले भगागे हे बिचारा हा। दिन उप्पर दिन निकरत जावय फेर फिरन्ता के पता नइ चलिस। अब मोंगरा ल बड़ फिकर चढ़गे। ओखर बंधाय धीर ह बंधवा असन टूटगे। अउ आंसू ह पूरा कस बोहाय लगिस। ओह दुख मां बूड़गे। कभू मंगलू ल भेंटे तो पूछ डारय, कुछु पता लगिस। मंगलू ह मूंड़ी ल हला देय। मोंगरा ह अंचरा के आंसू पोछय अउ भितरा जावय।

दुख ले मनखे कउवा जाथे त ओला अकेल्ला रहे के मन चलथे। फेर ओला अकेल्ला उबाथे त अपन मन के मनखे मेंर बइठे के मन होते। ओह अपन संगी संगवारी ले भेंट करे के गुन के रेंग देथे।

मोंगरा ह एक दिन बेरा ह जब मूंड़ी उप्पर चल दे रहय त अपन गजामूंग सोहागी के घर गिस। मोंगरा ल आवत देख के सोहागी ह पोता ल दसा दिस।

आ ओ मोंगरा, बड़ दिन में सुरता करे ओ बहिनी ?

का करौं ओ अकेल्ला घर ह त कुकुर काटे असन लगथे। तोर मेंर दू-चार घड़ी बइठ जाहूं त मन ल बने लगही।

बने करे ओ आगे त। कस ओ भांटो कहां चल दिस ? झगरा कर डारे का ?

नइ ओ गजामूंग, तैं मोला ओखर बात ल बताय रहे न, मेंह देख पारेंव ओखर खीसा ल। सहिंच मां हफीन रहय ओ ओमा। ओखरे ले दू-चार बात ओखरे बने बर कहेंव। फेर ओ मोर कहइ हा ओला बान असन लागिस। कहि के गे हे, मनखे बन के आहू, मोर रद्दा देखबे।

त अकेल्ला काबर रइथस ओ, अपन भइया भउजी मेंर काबर नइ रहस। मोटियारी डउकी के अकेल्ला रहना बने नइये।

भइया भउजी के दिन ह त बड़ दुख ले निकरत हावंय ओ। महूं उन्खर संग रहि जाहूं त बने नइये।
तुमन के दुख ल देख के मोर करेजा ह फाटथे ओ। लबरा भगवान के आंखी घला मुंदाय असन लागथे।
कोन कहाय अउ काय कहाय। भांटो ह कहां गे ओ ?

अइ बने सुरता कराय ओ। सुन त, तुम्हरो मन के दू एकर खेत हावय न।
हहो, हावय त।

त ओमा किसानी काबर नइ करय तोर भइया ह ?

किसानी सेंत मेंत मां नइ होवय ओ, उहू मां पइसा लागथे। भइया ह त पेटे ल नइ चलाय पावय त खेत बर रुपिया कोन मेंर ले लाही।

रुपिया के किसान मन ल फिकर करे के जरूरत नइये। हमर घर वाला बतात रहिस, के हमर राजा जवाहिर लाल ह लेढ़ियो मां कहे हे के जम्मो गांव के बढ़ोतरी करव। अन्न के पइदावारी ल बढ़ावो। सरकार ह गांव के अउ खेती के बढ़ोतरी बर रुपिया दिही। फेर किसान ह सरकार के रुपिया ल धीर ले पटा दिही।

त बने बनतिस ओ गजामूंग। मोर भइया के दिन ह बदल जातिस। जवांरा बोवा देतें ओ बहिनी। मोर भइया ह सुख ले रइतिस।

बने हे तैं संझा अपन भइया ल भेजबे। तोर भांटो ह सब्बो गोठ ल ओला बता दिही। बनही त सरकारी रुपिया घला देवा दिही।

बने बताय ओ। मोर आधा दुख ह त भगागे। मेंह अभी भइया मेंर जावत हवंव।
क्रमशः

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