Wednesday, May 2, 2007

भाग- तीस


निंदाई के सुरुती अउ देवारी के सुरुती दोनों संगे संग आगे। मंगलू के देवारी ह अतेक बच्छर के दुख सहे के उप्पर फेर आगे। मंगलू ह रइपुर गिस। अउ जम्मो झिन बर लुगरा, पोलखा, सलूका अउ नेकर बिसा लानिस। देवारी ह त मंगलू घर आइस हे तइसने लागय। गांव भर ले मंगलू के घर बगबगाय। गांव भर मंगलू ले देवारी भेंटे ल आइन। फेर रामधन ह तनियागे। ओह नइच आइस।

जम्मो माई-पिला मन भिड़गे लुवाई मां। केतकी अउ मोंगरा घला मूंड़ी उप्पर धान के बीरा मन ला बोह बोह के बखरी मां लेज-लेज के राखंय। ले दे के जम्मो धान ह घर आगे। खरही गंजागे।

आज मंगलू ल समझ आगे के खेती सही मां अपने सेती बाढ़थे। धान ह घर आगे। ओखर दूसर दिन रइपुर ले एक ठिन कागज धर के एक मनखे ह आइस। ओमा लिखे राहय, के कल 6 बजे शाम को तुम्हारा सम्मान किया जाएगा तथा उसी समय तुम्हें श्रेष्ठ किसान की पदवी से भूषित किया जाएगा। इस प्रदेश की सरकार ने तुम्हें दस हजार रुपए पारितोषिक देने का निर्णय लिया है।

मंगलू ह लकर-धकर भितरी गिस। केतकी अउ मोंगरा ल बताईस के काली हमन रइपुर चलबोन। खेती ह हमर भाग ला जगा दिस। मोंगरा तैं मोर दाई हावस ओ। मोला बने रद्दा मं रेंगा देय। मोंगरा के जी ह घला हरियागे।

आज मंगलू ल नींद नइ आवत राहय। ओह मने मन गुनत रहय। कतेक तकलीफ सहेन फेर कहूं पहिली मोला चेत करातिन ये धरती माता के त, अब ले हमरो दिन ह बनउक हो जातिस। फेर ए जात सगा मन के आंखी ह उघर जातिस। उनला समझ मं आ जातिस के गरीबी के केतक बड़ दुख होथे।
मंगलू ह इही गुनत मांचा उप्पर एती-ओती ढुलगत रहय। छोटका ह उच्चके बइठगे। छोटका ल उच्चत देख के मंगलू ह केतकी ल हांक पारिस। केतकी ह घला उच्चगे। ओह देखिस के मंगलू ह अब ले नइ सूते हे।

कइसे नींद ह नइ परत हे का।

हहो ओ, नींद ह नइ जानंव कोन मेर चल दे हे। काली रइपुर जाय बर हवै न। तउने पाके नींद ह नइ आत हे।

ह हो गा, बड़ खुसी के बात आय। काली हमर मन के नवा जिनगी के सुरुती होही। मोंगरा के भाखा ह हमर मन बर भगवान के भाखा होगे।

सहिंच आय गा। फेर तोर मन ह त खेती करेके होते नइ रहाय। कतेक झगरा करे रेहे मोर ले।

ह हो, केतकी मोर मन ह त खेती में नइ लागतिस। तहीं बता न ओ, पढ़-लिख के खंती कोड़इ के काम। पढ़े लिखे मनखे ह कभू करे के नइ गुन सकय।

फेर तोर उही बुध ह चलत हे। पढ़ लिख के मनखे ह अउ हुशियार होथे गा। जतेक बने कमइ पढ़ लिख के मनखे ह कर लेथें ओतेक कोनों अपढ़ ह नइ कर सकय। मोंगरा घला कहत रिहिस के आज कहूं खेती में पढ़े गुने मनखे ह लग जावय त हमर गांव त गांव आय, सरी जग मं अन्न बगर जावै। जइसे अकास में जुघौनी। कोनों गुने नइ सकय के हमर देस मां कतेक अन्न उपजतिस। फेर घर घर मां सुखे सुख छा जाही।

तोरो गोठ ह अब मोर मन मां बस गे हे। महूं काली अपन भाखन मां कहूं के पढ़इया भाइ मन तुमन एती ओती नउकरी बर झिन किंदरो। गांव गांव मां जाके नवा नवा खेती के हुनर ल जम्मो झन ल बतावव।

ले चल बने हे। रात ह पहात जात हे। फेर नींद ह परही तेखर भरोसा नइये।

बिहिनिया सरी गांव मां एक नवा गोठ चलत रहय। कोनों मंगलू के बड़वारी करे त कोनों अभी ले हिन्ता करैं। मंगलू के दिन ह कभू फिरही तेखर चेत कोनों ल नइ रहय। जात सगा मन त अब मंगलू के बड़वारी करत रहंय के हमर सगा ह अतेक बड़ मान के हकदार बनिस। ओखर संगे संग हमरो मान ह बाढ़ही। फेर रामधन के करेजा उप्पर सांप लोटत रहय। ओह अप ननजतिया संगवारी मन संग बइठे मंगलूके दाइ ददा ल बखानत राहय।

देखे गा खेलावन, काली जोन गली मं भिखमंगा असन किंजरत रहय उही ह अब सरकार के मेरी बनगे। ओखर ले 10 बांटा जादा धान मोर घर आथे। फेर हमर सरकार के आंखी मां नइ दिखिस।

ह हो गा भइया रामधन तैं बने कइथस। फेर तोरे कहे ले काय होथे।

मोर जी त कलपगे गा। ओ दोखहा ल एनाम मिलही अउ में गांव के गौंटिया बइठे रहिगेंव। कोनों उपाय नइये गा के मंगलू ल सरकारी इनाम झिन मिलै।

तैं भकवागे हस गा। तोला एतका समझ नइये, के सरकार ह जम्मो पता लेके फेर कोनों इनाम ल देथे। मंगलू ह दू एकर मां जतेक धान उपजाये हे ओतेक तोर छै एकर मां नइ होवय। ये बने बात आय के मंगलू ह माइ-पिल्ला भिड़गे रहिन खेती ल सेय मां। भगवान ह उन्खर संग देइस। एमा कखरो जोर नइये।

त तहूं ओ दोखहा के बढ़वारी मोरे आघू करत हवस।

एमा बढ़वारी के कोन बात हे गा। जेखर बढ़वारी अब भगवान करत हावय, ओखर हिन्ता करे मां हमला अब काय मिलही।

त फेर तहूं रैंग दे मंगलू संग। तोला घला दू-चार फूल माला मिल जाही।

तैं झिन खिसिया जी। तोर खिसियाय उप्पर मंगलू के नइ बिगरे।
क्रमशः

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