Wednesday, May 2, 2007

भाग- तेइस



मनखे के हाथ ले जब आस के पतवार ह छूट जाथे त हैयरान होके सोचथे, के मोर जिनगी ह अबिरथा हे। कहुं में जनम लेके मर खप जातेंव त कतेक बने होतिस। फेर अइसन गोठ ह उही मन सोचथें, जिन्खर उप्पर गिरस्थी के बोझा ह नइ रहय। जेखर मूंड़ी मां ए बोझ ह धरे हावय ओह ए भार ले दबते जाथे। फेर अपन मन के गोठ ल कोनों ले नइच कहय। मंगलू के इही हाल रहय। मरतिस काय नहि करतिस। रोजी के फेर मां भटकत रहय।

केतकी मेंर बांचे रुपिया रहय। उही ले तंगी कर कर के घर के खर्चा ल चलावय। मंगलू ह रोजेच केतकी ल बोध करावय के आज कोनों बूता ह मिलबे करही। अउ संझा आवय त बिहिनया के उच्छाह ह सिकुर जावय। कहुं भगवान ओला गरीबी ले उबारतिस। त उहू समझे पातिस के जिनगी काला कइथें।

मोंगरा के गजामूंग ल घला आरो मिलिस के मोंगरा के भइया के घर ह लीलाम होगे हावय। अइसन दुख मां मोंगरा ल धीरज बंधाय ल गांव भर ले एक उही आइस। ‘काय करत हवस ओ मोंगरा ?’

कुछु नई ओ, कइसनों करके ये दुख के दिन ल बुलियारत हवंव। नइ जानवं कब ये दुख ह हमन ल छोड़ही।

मोहूला गजब दुख लागथे ओ। ये गोंटिया के आंखी ह फुटगे रहिस का। भइया उप्पर अतेक दिन ले दुख के बादर ह छाय हे, उहू ल त दिखथे। फेर काबर ओह भइया के घर ल लीलाम करा दिस?

कोनो के दोस नइए ओ बहिनी। हमर मन के करम ह फुटहा हे, त देखइया के काय दोस ?

भांटो ह कइसे हे ओ ?

ओखरो मन के बात ल कोनों नइ जानय ओ। काय करथे समझ नइ परय। फेर ओह चोरहा धन्धा ल छोड़ दिस इही समझ मां आथे।

तैं ह भोरहा मां झन रहिबे। ओर-सोर लेत रहेकर। परन दिन ठेठवार के डउकी ह कहत रिहिस, के भांटो ले ठेठवार ह चरस बिसाय रिहिस। सिरतोन हे लबारी एलामें नइ जानवं। फेर सजग रइबे।

ओह त किरिया खाय हवै के फेर कभू ए चोरहा काम ल नइच करहूं कइके।

डउका जात के काय भरोसा ओ, कइथे कुछु अउ, करहीं मनके। तोला भुलवार दिस हे ओ, भांटो हा।

सोहागी के बात सही के झूठ मोंगरा ह नइ गुने सकिस। ओह अपने मन के बात ल सोचे सकिस। परतीत हा ओला पोटार लिस ओरी मां। फेर अपन मनखे ले पुछे के बल ह नइ रहय। मोंगरा ह सहीं बात ल जाने बर सजग होगे रहय।
क्रमशः

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