Wednesday, May 2, 2007

भाग - चौबीस



चिखला कांदा मां पथरा फेंकइया उप्पर छिट्टा परेच जाथे। मनखे ह बचे बर कुघरा उड़ाथे। उही कुघरा ले ओखरे आंखी ह करकथे। कुकर्मी ह अघुवा के आथे फेर मनखे के मूंड़ी ह नव जाथे, अपन करनी ले।
मंगलू ह जानत रहय के फिरन्ता ह फेर जुन्ना रद्दा ल पोटार ले हावय। ओह केतकी ले किहिस अउ नइ मोंगरा ले। एक दिन अकेल्ला मां फिरन्ता ल गजब समझाइस। फिरन्ता हहो किहिस। फेर हहो कहइ हा सहीं रिहिस के भुलवारे बर। पानी मां रुख ह जामत रहय। फेर जर के अत्ता-पत्ता नइ रहय। फिरन्ता ह अइसन रुख के डारा मं चढ़के मने मन गुनय के अब दिन ह हरियाही। अब सम्हरगे। गिरस्ती के रद्दा बने चलही।

एक दिन रतिहा फिरन्ता ह बड़ बेर के आइस। मोंगरा हा खाय ल परोसिस। खा-पी के सूतगे, दूनों। रतिहा मोंगरा के नींद ह खुलगे। मोंगरा ह उठिस अउ फिरन्ता के कुरथा के खीसा ल टमरिस। जी ह धक्क ले होगिस। रुपिया के गड्डी अउ एक पुरिया मां करिया-करिया गोटा असन लपटे रहय। मोंगरा ह समझगे के गिरे मनखे के मन ह कब काय करथे अउ कइथे, तेला समझना मुस्कुल के बात आय। कइसन समझावंव एला ?

रात ह मोंगरा के आंखी मां पहागे। बिहिनिया उचके चहा पानी बनाइस। तहां ले फिरन्ता ल उचाइस।
उचना गा। बेरा ह चढ़गे हे।

सूतन दे न ओ।

ले उच्च, चहा बना ले हवंव, जुड़ा जाही।

ले चल में आवत हावंव।

मुंह हाथ धोके फिरन्ता ह रंधनी मां गिस। मोंगरा ह गिलास मां चहा ढार के दिस। फिरन्ता ह चहा पियत रहय ओतके बेर मोंगरा किहिस – कसगा, तोर खीसा मां लोट के गड्डी कहां ले आइस ? तैं काबर दुसरा के रुपिया ल धरे रइथस। कहूं इत्ती-ओती हो जाही त कहां ले भरबे ?

फिरन्ता के चहा के घूट ह फुलका गे। हड़बड़ के मारे ओला समझत देर नइ लागिस के मोंगरा हा खाली रुपिया नइ देखे होही। हफीम घला संगे-संगे रखे हावै। मोर मुख ह करिया होगे। मोंगरा ल में सुख नइ देय सकंव। किहिस, मेंह तोर ले झूठ कहे रहेंव वो मोंगरा। फेर करंव का नउकरी त कोनों नइ मिलय। जिनगी ह कइसे चलही। उही रोजगार ह हलुक लागथे मोला।

मोंगरा के नीचू के भुइयां ह सरके असन लागिस। कतेक बेसरम होगे हे। अपने मुख ले अपन कुकर्म ल बतावत हे। वोह कहिस – देखगा मोला जियत देखे के कहूं गुनथस त ए कुकर्म रोजगार ल छोड़ दे। नइत जहर माहुरा आन दे खाके सूत जाहूं। फेर जोन तोर मन मां आवय कर। फेर जियत ले त में तोर पीछे पड़ेच रइहौं। में नइ सुने सकवं के चोरहा कुकर्मी के डउकी आय। में भूख मरहूं तभू तोला नइ छोड़वं। फेर चोरहा के दुध, दही, घी ल खाके तोर संग नइ देवव। में मरेच जाहूं।अइसन जिनगी कोनों जिनगी आय। तैं त मनखे हवस, मजूरी मिलही त उही मां हमर इज्जत ह बनही। अउ पेट ह चलबे करही। मोर भइया ल देख कतेक बड़ दुख ओखर उप्पर परगे, फेर पांव ह नइ खिसलिस ओखर। कइसनों दुख-सुख के जिनगी ल खींचते हावय। धन दोगानी नइए त का होगे, इज्जत त नइ गंवाइन हें। पइसा के काय ए ओखर त किंजरना इही बूता आय। मोरो बात ल मान ले। मेंह हिन्ता के जिनगी ले उबगे हावंव। अभी तोर मंद के मामला ह चलते हे, जमानत मां हावस। फेर ये चोरहा रोजगार ल नइ छोड़े।

फिरन्ता ह मोंगरा के बात ल सुनके दंग रहिगे। चुप्पे बइठगे ओहा। काबर के बनउक बात ह ओखर भेद ल खोल दे रिहिस। बात करे के सब्बो रद्दा ह बन्द होगे राहय। मोंगरा फेर कहे लागिस – तैं काय सोचे ? मोर बात ल कान खोल के सुनले तोर आघू दू रद्दा हे। पहिली तोला ए कुकर्मी धन्धा ल नइच छोड़े बर हे त मंजा ले कर। में नइ टोंकवं। फेर अइसन मां तैं आगू चलके मोला निहिं मोर माटी ल पाबे। अउ दूसर के इमानदारी ले मिहनत करके पछीना गार के कोनों बूता करके चार पइसा कमा। फेर जोन नून-भात पुरही सुख ले खाबो। धीर ह मनखे के सबले बड़े जीत आय। काबर नइ लेग के बिकनस मोर गहना ला। कइथौं के कोनों नानकुन रोजगार करले। मोर गहना तोर नइए का, एमा काय लाज। फेर तैं त मोर बात ल नइ गुनस।

फिरन्ता मोंगरा के बात ल सुनत-सुनत कउवागे। ओहा किहिस – मोंगरा अब त चुप्प होजा, कतेक बखानबे। कइसे बतांव के में सम्हरे बर कतेक कोसिस करेंव। फेर पइसा के लोभ ह मोला सीधवा नइ बइठन दिस। फेर अब में ह तोर किरिया खाथौं के जबले बने चाल नइ चल के दिखाऊं तब ले तोला अपन मुख ल नइ दिखाहूं। फिरन्ता ह रेंगे ल धरिस। त मोंगरा ह ओखर गोड़ ल धरिस अउ कहत रहय – कइसे गोठियात हस गा, तोर बात ह मोर समझ मां नइ आवय।

फिरन्ता ह मुहाटी ले बाहिर होके किहिस – जान दे ओ, मेंह घर संसार मां रहिके ए पाप ल नइ धो सकंव। मोला वइसने बने बर हे जइसने तोर मन मां खेलथे। मनखे भगवान त नइ बने सकय। फेर मनखे ह मनखे त बन सकथे।

मोंगरा ह फिरन्ता के मुख उप्पर अपन गदौरी रख दिस अउ रोवत-रोवत किहिस – कइसे बइहा असन करथस गा, कोनों बात त धीर ले सोचना चाही। अउ धीर ले करके गुनना चाही। आंधी के बड़ ताकत होथे, फेर जिनगी थोरके बेर के रिस ह बनउक काम ल बिगाड़े देथे। चल भितर चल के बइठ। अब मेंह तोला कुछु नइ कहंव।

मोंगरा ह अपन मनखे के हाथ ल धर के झींकिस, फेर जवइया ल रोकना बड़ मुस्कुल खाथे। ओह अपन खीसा मां हाथ डारिस अउ लोट के गड्डी ल मोंगरा के अंचरा मां डारके किहिस – मोंगरा तोला मोरे किरिया हे, रोबे झिन। तैं रोबे त मेंह ठउर मां नइ पहुंचे पाहूं। अब बीच मां तलफत रहि जाहूं। मोर आय के रद्दा देखबे, मेंह रकसा ले मनखे बनके आहूं। फेर तोरो जी ह जुड़ा जाही।

मोंगरा ह रोवत रहिगे। अउ फिरन्ता ह चल दिस। काय होगे अतेक जल्दी मोंगरा ह समझे नइ पाइस। ओह ठगाय असन ठाढ़े रहिस। ओखर कान मां फिरन्ता के भाखा ह गूंजे, मोर आय के रद्दा देखबे ओ मोंगरा, मैं आहूं।

मोंगरा ह सपना मां नइ सोचे सहय के मोर मनखे ल बात बान असन लागही। कतको बेर त मेंह कहे रहेंव तोर ये चाल ह बने नो हे। ए चोरहा रोजगार ल छोड़। फेर अब ले त नइच माने रहय मोर बात ल। आजेच का होगे ओला। वोह मने मन पछतात रहय के मेंह ओला उत्ता धुर्रा बकतेंव निहिं त ओर कभू नइ जातिस। कोन जाने कहां चल दिस। काय करही अउ कब लहुट के आही। मनखे ले त नारी परानी के जिनगी हे। उही त ओखर सन्सार हे। बिन मनखे के डउकी मन के जिनगी ह सुन्ना लागथे। काखर मेंर जाके अपन दुख ल गोठियावंव। घर मा भितिया अउ अकेल्ला मं। काय करे के गुने रहैंव अउ हो का गे। डोकरा मन सही कइथें, के बिगरे ला दुदकार के कोनों नइ सुधारे सकयं। पियार ले सुधरथें। ओला मेंह पियार त करत रहांव। फेर नइ जानंव कइसे मोर मुख ले आनी बानी के गोठ ह निकलेच गे। जम्मो गोठ ह लहुट पहुट के मोंगरा के मन मां आवंय जावंय। फेर जी ह भभकगे ओखर। गजब बेर ले फफक-फफक के रो डारिस।
क्रमशः

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