Wednesday, May 2, 2007

भाग - छह



बरखा बीतगे, जाड़ के दिन आगे। मंगलू के ओन्हा निच्चट चिरागे रहय। केतकी के मन ह रोदै अपन मनखे के मुसीबत ल देखके। ओला कमइ के कोनों रद्दा नइ दिखय। एक दिन केतकी ह मोंगरा ले किहिस – नोनी हमर दिन ह अइसे नइ फिरय। कुछु करना परही। रामधन गौंटिया इहां धान कुटवाथे, हमू मन अपन घर मं धान ल कूट के अमरा देबोन। मंजूरी मिलही त हमर दुख के बेरा मं काम्मेच दिही। मोंगरा किहिस – बने त आय भउजी, भइया बेचारा ल सहारा त होही।

रामधन के धान कूट कूट के केतकी ह दस रुपिया सकेलिस। अऊ एक दिन मंगलू ले किहिस – सुनत गा, तोर ओढ़ना मन निच्चट चिथरा हो गेहे, में दस रुपिया सकेले हवंव, ओन्हा ले आन अपन बर। मंगलू ल दस रुपिया सकेले के गोठ ह समझ नइ आइस। ओह किहिस – कस ओ, कोन मेंर ले लकेले हवस दस रुपिया ? केतकी ह सही बात बता दिस। मंगलू ह रो डारिस, - तुमन अइसे मोर जीव के पाछू काबर परे हावव। गांव वाला मन जात सगा मन त मोर हिन्ता करते रइथें, अब किहिं के देख लौ ग ए निच्चट ल। अब अपन घर के डउकी परानी के कमइ ले पेट पोसथे। तें ह अपन जुन्ना दिन ल भुला देबे, कइके मेंह नइ जानत रहेंव। तहूं त ए गांव के गौंटिया के बहू रहे हवस। चल ले का होगे मोर हिन्ता होही, तोर त बड़वारी होबे करही।

केतकी ह सुनके सुबक सुबक के रोवन लागिस। मंगलू के गोठ ल सुनके। मंगलू ह केतकी ल समझाए लागिस – देख ओ, तैं रो झिन। मेंह तोला बने कइथों अपन इज्जत ल अपन हाथ कोनों नइ गवांवय। हमला त उही भगवान के आसरा ले जिनगी चलाय बर हे। कभू त ओह सुनबे करही। अच्छा लान दे रुपिया मेंह ओन्हा रइपुर ले ले आनहूं। मंगलू ह बजार ले समारु बर सलूका अउ सोनिया बर पटुका अउ पोलखा बिसा लानिस। जब केतकी ह देखिस त कुछु नइ बोले सकिस।

रतिहा जब केतकी ह सुते ल आइस त देखिस मंगलू मांड़ी उप्पर मूंड़ी गड़ाए कुछु मने मन गुनत हावय। ओह मंगलू के चुन्दी मं अपन हाथ फिरोइस त मंगलू मूंड़ी ल उप्पर उठाइस। केतकी ह किहिस – का गुनत रइथस गा, दिन रात के गुन गुन ह तोला फोकला कर दिही। फेर तोर हाथ ले बे हाथ होवय मं हमर मन के कुकुरगत हो जाही। तैं त मेटरिक तक पढ़े हवस। बड़ ज्ञान के बात पहिली मोही ला सुनावत रेहे। फेर धीरे धरे मं त दिन ह फिरथे। मंगलू ह केतकी के गोठ ल सुनके बोध लगिस अउ मांचा उप्पर गोड़ तनिया के ओह सुतगे।
क्रमशः

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