Wednesday, May 2, 2007

भाग - चार


ये गोठ आय गांव वाला मन के। पंछी ह जिव ले जाय, अउ खवइया मन ल मिठावय निंही। मंगूल उप्पर मुसीबत परे रहय, ओखर मन के बात ह मांटी मं मिलगे। फेर तभ्भो ले मन के कोंनहा ले कोनों कहय, मंगलू के मुसीबत के दिन ह कभू बूड़बे करही।

अइसन रिहिस मंगलू के जिनगी। मन ह मरगे रिहिस। ओखर इच्छा पूर होयके बेरा ह अबले नइ आय। ओला दिन रात इही लगन रहय। अपने बात ल गुनय, पूरब के अकास ह जब पिरथी के ओरा मं झकझक ले अंजोर भरही त नवा जिनगी फेर पनपही। बेरा उये पांखी फूल बन जाथे, फेर मंगलू के मन के पांखी कभू नइ उघरे पाय। एह भगवान के शराप होवय नइ त तकदीर के फेर।

एक दिन बिहिनिया ले गांव के मनखे मन बड़ जोर सोर ले गोठियावत रहयं। गजब होगे ! गजब होगेगा !! मंगलू ह अपन कुरिया के नीचू के हिस्सा मं चरनदास नांव के चमरा ल भारा मं दे दिस। ये चमरा ह सरकार तरफ ले हमर गांव मं कुकरी पोसही। राम राम, ये अन्धेर। कोंन जाही गा ओखर कुरिया ? ब्राम्हन पारा मं चमरा ल खुसेर लिस। कोनों छुआछूत के भेद ल नइ मानिस ओहा। घर मं मोटियारी बहिनी बिहाव बर बइठे हवय, काली कोन राजी होही ओखर घर भात खाय बर ? मनखे उप्पर दुख परथे, फेर अपन धरम करम ल त बरकाय बर लागथे।

समाज वाला मनके गोठ ये रिहिस। फेर कोनों एला नइ बूझिन के मंगलू ह काबर अइसन करिस ? ओह अपन गिरे बेरा के नाथ ल खींचे बर अइसन रद्दा मां चलिस, मोर हिन्ता होही अइसन ओह नइ पहिली सोचिस अउ नइ अब। अपन गिरस्ती ल कइसनों चलाय बर ओला इही रद्दा दीखिस।

मंगलू के घर ह टूटत रहय। कब जमाना के घर अब ले ओकर मरम्मत नइ होय रिहिस। पहिली जब बने दिन रिहिस त अपन घर ला भारा मं उठाय के ओला जरूरत नइ रिहिस। फेर अब ओहा गुनै के नीचू के हिस्सा ल किराया मं उठा दूहूं। थोर बहुत भारा आही त ओखर हुलुपुटु जरूरत ह निकरबे करही। हमन उप्पर के हिस्सा मं गुजर बसर कर लेबोन।

इही गुन के मंगलू ह एक कागज रोगन ले लिखके दुआरी मं चटका दे रिहिस के मकान भारा मं खाली हावय। फेर कतको किरायादर मन आइन अउ झांक झूक के रेंग दिन। कतको झिन घर ल देखके कहयं के दे मकान ह गिराउक असन लागथे, कोन ह अपन जीव ल जोखिम उठाही।

आय घला सैंतुक घर मं गजब सीड निकरै। अइसे लगथे के एक दू पानी मं एकर ओर सोर नइ मिलय, कभू भरभर ले गिर परही।
क्रमशः

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