Wednesday, May 2, 2007

भाग -बारह



फागुन तिहार ह आगे। गांव मं एसो के साल बने धान होइस। जेकर ले जम्मो किसान मन के मन मं उच्छाह हमागे रहय। मंगलू ह बिहिनिया ले रइपुर जाय बर निकरिस। रइपुर के अघवार मां ठेठवार टुरा मन गाय गोरु ल चरावत रहंय। एक झिन बांस बजावय त दूसर ह फागुन तिहार के गीत गावय। गिद सुने बर मंगलू ह एक आमा के रुख नीचू ठाड़ होगे।

काकर बर धोरे लाली गुलाली
गावौं गीद गोहार
सुनतो झिन जा मोर भउजी
आगे फागुन तिहार
होरी जरत हे मोर चोला मां।
आंखी छुटथे पिचकारी
कइसे करके मन मढ़ाहुं
अन्तर करथे किलकारी
भइगे टार, झन बांध मोंटरा
तो झन तेंहा तियार
किसिम किसिम के सब्बे जेवनार बनाही
सांटी पहिरे नवा कुरता
तेंह भुलाबे मइके के मया मां
कौन करही मोर सुरता
तोरे मन भरही माई के मया
हो ही तोरे दुलार
उत्ती के लाली जरौही बिहनियां
रतिहा चंदा हा बिजराही
काखर अंचरा मां आंसू पोछके
थकहा मन हा सुरताही
आंसू गिरही देखके कखरो
लुगरा लाली किनार
सुनतौ झन जा मोर भउजी
आगे फागुन तिहार

मंगलू ल गीद सुनके जुन्ना दिन के सुरता ह आंखी मां झूलगे। तब अउ अब समझे नइ सकिस। आंखी ह डबडबा गे।

फेर केतकी के मन ह कहय, मोंगरा मोटियारी होगे। ओखर साथ के टुरी मन के गोदी ह भरा गे, फेर मोंगरा बिन बिहाव के बइठे हे। जात सगा वाला हमर चोंगी माखुर बंद कर दिन। फेर हमर मोंगरा के बिहाव ला का खाके करही। फटर फटर एती ले ओती किंजरत रइथे, पेट भरे के आसरा नइये, अइसे मं बहिनी के बिहाव काय करही। ओतके बेर मंगलू ह आगे त केतकी ह अपन मन के जम्मो गोठ ल कहि डारिस।

मंगलू हू केतकी के गोठ ल सुनके कुछु गुनिस – फेर रेंग दिस रामधन मेंर, अउ किहिस – भइया रामधन थोरक रुपिया के मदत कर देते। सोचथों के होली उप्पर मोंगरा के बिहाव ले फुरसत पालेवंव। अलकरहा दिन त चलबे करत हे। फेर जमाना ह बिगर गे हावय। मंगनी-जचनी करे के बेर मनखे ह अगुवा के रुपिया पइसा मांगथें। फेर तैं ह घला कहे रहे के मोंगरा के बिहाव मां मदत करहूं।

रामधन ह अनसुनउक असन मंगलू के गोठ ल सुनत रहय, ओह किहिस – सुनले ग मंगलू, तीन सौ रुपिया त नगदी तोर उप्पर चढ़े हवय। ओखर उप्पर कंता, तोर मकान ह त गिरवी हवय ओखर उप्पर रुपिया नइ देय संकवं। मंगलू के मन के बात ह मने मां रहिगे। ओहा मरहा असन भाखा मं किहिस – रामधन गौंटिया, मेंह त जीयत मरे असन हो गेंव।एक ठिन घर रिहिस - ओखरे ले मोंगरा के बिहाव के आसरा रिहिस। उहू मां तैं दुरकावत हवस। भगवान ह कंगला ल मउत घला नइ देवय। उनला काबर जिनगी देथे ? मंगलू ह मन मार के घर कोती रेंग दिस।

मंगलू ह केतकी ले जम्मो गोठ ल किहिस, उहू ह रोके रहिगे।

धुकधुकी ह जिनगी के संगी आय अउ ओखर ले निकेर भाखा ल गीत कइथें। किसिम किसिम के चाल ले मनखे ह अपन जीयइ के रद्दा बनाथे। कइसनों करके अपन पेट ल पोसथे। ये ह त दुनिया के कहनी आय। फेर उहां बने हे त बिगरे घला हे। जिहां पाप हे, त पुन्न घला रइथे। जुन्ना पोथी मन मं नेकी अउ बद के बखान मिलथे, जेकर ले कोनों ये झिन कहयं के नेकीच रिहिस के बदे बद। फिरन्ता ले पारा के मनखे बड़ नाराज रहंय काबर के ओहा चोरी ले गांजा अफीम के बेचे के धन्धा करै। फेर मंगलू ह अपन धरम ईमान मं रहय। फेर ये मन ओखरो हिन्ता करै। ये चाल रहय ए गांव के। पइसा वाला के संगी पइसा वाला रहय, कंगला निहीं। फिरन्ता ह बने लील लगे ओन्हा पहिरे। गर मं सोन के सकरी अउ पान ल त दिन भर मुंह मं बोजे रहय। कभू कभू चोंगी त कभू कभू सिगरेट के कश मारै। दाई ददा ह मर हरगे रहय। अकेल्ला गोल्लर असन छटारा मार मार के मंजा के जिनगी बितावत रहय। गांव के मन काय कइथें ओह कोदक नइ समझय।

थोर दिन ले फिरन्ता उप्पर मंगलू के आंखी ह थमगे रहय। भेंट होवय त गजब बेर दूनों झन गोठियात रहंय। एक दिन मंगलू ह घुमा फिरा के ही बद के धन्धा के मंद मं पूछिस। फिरन्ता ह मंगलू के मन के बात ल समझगे।

ये ठउका आय के फिरन्ता ह आज ले अपन बीते दिन के बात ल कोनों ले नइ केहे रिहिस। फेर मंगलू ह ओखर संगवारी बनगे रहय। ओहर किहिस – भइया मंगलू तैं नइ जानस गा। हमर घर गजब धन दोगानी रिहिस। एक बेर हमर गांव मां डाका परिस। ओमा मोरदाई ददा के कतल होगे। ओ बखत मेंह दस बच्छर के रहेंव। में अपन जीव ल बचाय बर निकर भागेंव। तबले इहें आके बस गेंव। रइपुर मं जब कोनो नउकरी नइ मिलिस त ये दोखहा धन्धा ल निमेर लेंव। अब त निच्चट रमगे हावंव, ए नकटा धन्धा मं।

मंगलू ह समझगे के फिरन्ता ह घला टेम अउ के सगा मन के हुदकारे ले ये सरकार के विरोधी धन्धा ल करत हे। ओखर दुख मं त कोनों संगी नइ बनिन अउ कइथें के चोरहा हे। हमर राज के दुसमन आय।

समें के बूता, रेंगना। रात अउ दिन जुन्ना नवा होत चल दिन। फेर पानी के दिन ह आगे। मोंगरा के बड़ चिन्ता रहय। मंगलू ला। एक दिन फिरन्ता ले बात करिस। फिरन्ता ह राजी नइ होवत रहय। अकेल्ला रहय के ओला टकर परगे रहय। फेर मंगलू के गोठ मां मोहागे फिरन्ता। मन मं तै कर लिस घर बसाय के।

मंगलू ह केतकी ले फिरन्ता के बिसे मां गोठ निकारिस।

मोला त ए दुख के बेरा मां उही संगी दिखत हे।

फेर मोर मन ह नइच मानय, फिरन्ता संग मोंगरा के कइसे निबही।

त में कइसे करौं, मोटियारी टुरी ल घर मां बइठारे रखे ह बने नइये।

मोर मन ह त... । फेर तोर बहिनी ये तैं बनेच करबे।

मेंह त पक्का करले हवंव के फिरन्ता संग बिहाव करे ले मोंगरा ल सुख नइ मिलही त दुख घला नइ मिलय।

‘भितिहा के कान, गांव भर मं सोर परगे’ मंगलू ह फिरन्ता संग अपन बहिनी मोंगरा के बिहाव करत हवय। ए गपड़-सपड़ सेंतुक हंवै। सुनउक मां एहू आय हवय के फिरन्ता ह बिन लेनी देनी के बिहाव करत हवय। कोनो कहयं फिरन्ता ह मंगलू के बेरा कुबेरा मदत करही कइके जबान घला हार दे हे। जतेक मुंहू उतके आनीबानी के गोठ होवत रहय।
क्रमशः

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