फिरन्ता ह बड़ दिन ले मंगलू के दुख पीरा ल अपन करेजा मां लुकाय ले रिहिस। फेर अब ओला सहउक नइच्च लगय। एखरे ले ओहा लुप छिप के जोर जारके मंगलू के मदत करय। मंगलू हू निहीं कहय फेर फिरन्ता ल रोकइ ओखर बस के बात नइ रिहिस।
एक दिन फिरन्ता ह महिना पुरती दार-चाउर लान के मंगलू घर मां डार दिस।
ए काय लाने हवस बाबू ?
कुछु नोहे भउजी !
त पोता मन मां काय भरे हावय ?
थोर थोर चाउर-दार लाने हवंव।
त टुरी ह घर मां नइये का, रख दे ओमन आहीं त अमरा दिहीं।
नइ भउजी ये त तुम्हर बर आय।
तैं कतेक साथ देबे हम कंगला मनके, हमर फुटहा तकदीर हावय न।
कइसे गोठियाथस ओ भउजी, दिन ल कोनों नइ जानंय। उन्खर त इहिच बूता आय रेंगना। दुख-सुख घला वइसने आंय। धीर धरे रहा तुम्हर दिन ह फिरही।
केतकी ह आंसू बोहावत खड़े रिहिस। फिरन्ता घला आंखी रमजत रेंग दिस।
अलकरहा दिन ह त मंगलू ल धरेच रिहिस। एक दिन फिरन्ता ह पाखा मां बड़े जान मोटरा ल दाबे मंगलू के घर मां नीगिस।
मोटरा ल मढ़ाइस त मंगलू ह किहिस – काये गा, मोंटरा मां ?
देख ले न गा।
तिहीं खोल न। मेंह नइ छुवंव।
मोटरा के छूटते मंगूल अउ केतकी अचरज मां परगे। ओमा जम्मो झिन बर नवा ओन्हा रहय। फिरन्ता ह बिसाके लाने रहय। ये मन मने मन सोचय के जात सगा मन हमन ल उजराय ओन्हा बर त चेंधबे करहीं। फेर नवा ओन्हा ह उन्कर आंखी फुटाय असन होही। काकर मुख मा तोबरा बांधबोन, जम्मो किहीं के फिरन्ता के कमइ ले यहू मन मंजा करत हवंय। मंगलू ह किहिस – अइसन काबर करथस बाबू, दिन ह गिरथे त भगवान ह पहिली मुख ल फिरो लेथे। तैं हमर मन के कब ले मदत करत रइबे ? करम मां जोन लिखा डारे हवन ओला त भोगना भाग हे।
इन्कर गोठ ल सुनके फिरन्ता चुपे रहय। फिरन्ता मां एक बात अउ रिहिस। जोन बूता ल करे, अपन मन ले। एक बेर वोह मोंगरा ले घला नइ पूछत रहय। ओह मोंगरा ले कभू ए नइ कहे रहय के आज मंगलू इहां ए पहुंचाय के वो।
मोंगरा ल थोर थोर जनउक होगे रहय के ओखर मनखे ह सोनिया के दवा दारू बर रुपिया देथे। वइसे एक दिन केतकी ह कहे रिहिस के बाबू ह हमर घर चाउर-दार पहुंचाए रिहिस। मेंह त बाबू ल कहि देय रेहेंव के सुख दुख त लगे रइथे, तैं हलाकान झिन होय कर।
भउजी के गोठ ल सुनके मोंगरा के मन ह फुलगे रहय। ओह किहिस – भउजी तुमन बर उन्हा जो करिन हवंय वो ह त मनखे के धरम आय।
मोंगरा ल चुप्पे करे बर ओहा फिरन्ता के बड़वारी करथय। मेंह अब ले नइ समझे सकेंव के मनखे मन ओकर हिन्ता काबर करत रहय। तहीं बता न, जबले तोर बिहाव होइस तब ले काय दुख मिलिस तोला। में कइथौं के बिहाव बाद ले ओह अपन चोला ल बदल डारे हावय।
मोंगरा ह कलेचुप्प रहय, कुछु नइ किहिस। केतकी ह जान डारिस के सही मां मोंगरा ह अराम ले हावय। वो असीस देइस के भगवान तो चूरी, टिकुली ल बनाय राखय। हमर जी ह बड़ सुख मानत हवै।
जात मां कोनो के बढ़ती होथे त ओमन ल एकरो फिकर चढ़ जाथे। काय सेती ले ओखर बढ़ोतरी होवत हवै। कोनों गिरे मनखे ह सम्हरथे त ओमन चउंक जाथें कि कइसे एखर दुख ह दुरियाइस। सोनिया के दवइ दारू अब रइपुर के बड़ सुजानिक होमेपेथी डाग्दर नसीने के होवत रिहिस। मंगलू केतकी घला नवा ओन्हा पहिरे लागिन। ए सब्बो ल देखके उन्खर मन मं लहुट-पहुट के फिरन्ता ह खेले। मन म आइस अउ गोहार परगे। जात के डउकी मन अपन परोसी ले काना फूसी कइके कहंय, अरे मंगलू ह एखरे बर त मोंगरा के बिहाव ल फिरन्ता संग करे हवय। वो ह चोरी ले लान लान के दारू के धन्धा करथे। ये ह हराम के कमइ आय, तभे त बिन दाई ददा कस उड़ावत हे पइसा ला। उही धन्धा मां अब मंगलू ल घला साझा कर ले हावय। ओ कोढ़िया ल एकर ले ऊंचहा बूता मिल नइ सकय।
क्रमशः
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