Wednesday, May 2, 2007

भाग - इक्कीस



चोरहा के हांका सरी दुनिया पारथे। फेर चोरहा के मन ल कोनो नइ समझे के कोसिस करयं। के चोरहा बनिस काबर ? चोरहा के टकर परगे। उही ओखर बूता हे ? फेर काबर चोरी करथे तेला कोनो नइ गुनय। जेखर दिन हा बिगर जाथे संगी मन के बुध मां चल के अपन चाल ल बिगार देथें। फिरन्ता मोंगरा ल बचन देय के बाद फेर उही धन्धा ल पोटार ले रिहिस। करतिस का फिरन्ता ह। बिन दाई ददा के, आज ले जात सगा मन तिरिया दे रिहिन। ओखर कोनो त संग नइ देइन। मोंगरा संग देथे। कतको बेर किहिस के मोर गहना ल बेंचके कुछु रोजगार कर ले। फेर फिरन्ता ल दे बने नइ लगिस के में डउकी जात के आगू मूंड़ी झुकावंव। फिरन्ता ह नउकरी के चक्कर मां किंजरिस। फेर चोरहा ल कोन नइ जानय। कोन ह ‘आंखी रहत मांखी ल खाहीं’। फेर एके रद्दा बांचगे। मिलगे अपन जुन्ना संगवारी मन ले।
एक दिन फिरन्ता ह लकर धकर घर मां खुसरिस त मोंगरा हड़बड़ा के देखिस, ओखऱ मनखे ह हाथ मां रुपिया खनकावत ठाढ़े रहय।

कसगा, बड़ खुसी दिखथस।

बूता मां लगगेंव न ओ, दू रुपिया रोजी मिलथे, एले ग्यारा ठिन रुपिया।

मोर जी ह जुड़ागे गा। तोला जोन बने बूता लगे उही ल कर। धीर ले अपने आप रद्दा बन जाथे।

हहो ओ मोंगरा फेर गांव वाला मन त जोन नहिं तोन मेंर नरियात फिरथें के मेंह जेहेल काटे हावंव, चोरहा कइथे ओमन।

ले कुछु नइ होवय। तैं बने रद्दा रेंगबे त मनखे नहि त भगवान ह तोर संग देबे करही।

ले चल रोटी खाले फेर गोठियाबोन।

दूनो झिन रोटी खाइन मोंगरा ह रंधनी लीपत-पोतत रहय अउ फिरन्ता ह आघू के सोचत मांचा मां परे रहय। मोंगरा के मन ह घला खेलत रहय। ओखर दिन ह अब सैतुक बदलही, ओला कोनो नइ रोके सकय।
क्रमशः

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