Wednesday, May 2, 2007

भाग - दस



बादर के दिन आगे रहय। पानी ह टिपिर टिपिर गिरय। सावन के बादर ह लहर लहर के धरती माता ले मिले बर मोहाय असन दिखय। धरती के अंचरा जुड़ावत रहय। फेर मंगलू अउ केतकी ल उबासांसी लगय, के ऐसों के साल घला मोंगरा के बिहाव ह नइ करे सकन। जेंखर घर मोटियारी टुरी बिहाव बर बइठे रहिथे, तोने के जीव ह जानही के वो बेरा मं ओला पहारे असन लागथे।

बरखा दिन ह नगरिहा मन के सुख के दिन आय। नांगर ल कांधा उप्पर मढ़ाय रेंग देथें अपन खेती कोती। कोनों ल एक छिन के फुरसत नइ रहय फेर, बच्छर भर के पोसइया हमर खेती ह त हे। धरती माता के ओखी ले हमर बच्छर भर के अन्न पानी होथे। कोनों ल फिकर नइये आगू के, सब्बो के मन ह हरियर हरियर।

गोधुली के बेरा होगे रहय। पानी ह जझरंग जझरंग गिरत रहय। मंगलू अउ केतकी के जीव ह डर्रावत रहय। पिछोत के भितिहा ह पानी के मांर ले धीर धीर ले भसकत रहय। उन्खर देखते देखत भितिहा ह भसभसा के गिर गे। मंगलू अउ केतकी के आंखी मं आंसू छलछला गे। भगवान हे तेखर उनला भरोसा नइ लागय।

मंगलू उप्पर एक फिकर अउ आगे। भितिहा ल गिरेबर इही टेम मिले रिहिस। मोर करम मं त दुख दीखथे। बिहिनयां नहां खोर के मंगलू ह लइका ल पढ़ाय के बूता मं जाय के तियारी करत रहय। ततके बेर केतकी ह रोनहुक असन आके किहिस – सुन त गा, सोनिया के गोड़ मं अधपकवा होगे हवय, देवी दाई ल ढरे एक पाख नइ गेहे। हमरे घर मं सब्बे दुख ह बटुर के आगे हावय, तइसने लागथे। देखबे बनही त रइपुर ले कुछु काहीं दवइ ले आनहू।

मंगलू ह जगन्नाथ बाबू के दुआरी मेंर अतेक जल्दी कइसे आगे तेला नइ समझे सकिस। जगन्नाथ बाबू ह ओखरे गांव के धनउ बरेठ ल गोठियात रहय। मंगलू ह उनखर गोंठ मं सामिल होगे।

धनउ के डौकी ह भगागे रहय। तेखरे ले अतेक दिन लागगे रहय ओला साहेब घर के ओन्हा अमराय मां। साहेब ह किहिस – इस तरफ की औरतों की यही चाल है जब तक ये कइ पति नहीं बना लेती, इन्हें चैन नहीं पड़ता। इनमें और रंडियों में फर्क क्या रहा। इसी से लोग इसे छत्तीसगढ़ कहते हैं।

साहेब के गोठ सुनके धनउ ह मूंड़ी ल झुका लिस। फेर मंगलू के जीव ह कचोटगे। वोला साहेब के भाखा ह बान असन लागिस। ओहा तमतमाय असन किहिस – बने कहेगा साहेब, ये त तोरे असन मनखे कइथें। फेर हमर डहर के डउकी मन तुम्हर घर के डउकी मन ले ऊंचहा हवंय। ओमन एक डउका ल छोड़ के दूसर संइतुक बनाथें, फेर तुम्हर मन मं त एक झिन दिखउक रखके कतको ल संगी बनाय रइथें। फेर हमर डहर के डउकी जब ले जेकर करा रइही दूसरा के छइयां ल नइ नहके। ओखर चूरी के रंग ह एके रइथे। अउ तुम्हर मं कतको रंग के एके संग पहिरथें। अउ देखब मं वोह तुमन के बुध ल भुलवार देथें। तुम्हर सहरातू डउकी मन वासना बर दूंसर ल संगी बनाथे, फेर हमर डहर गजब दुख पाय ले अइसे करथें। फेर तुम्हन बर सरकार ह कानून बनाये हवय छुटीछुटा के अउ हमर इंहां पहिली ले समाज वाला मन एला रच डारे हवंय। तुम्हर बर हिन्ता के गोठ नइये, त हमरो बर नइये। हंमर राज ल छत्तीसगढ़ एकर बर कइथें के इहीं सैंतुक मां छत्तीस गढ़ आज ले बने हावंय।

जगन्नाथ साहेब के मुंह उतरगे रहय। काबर ओखरे घर के दाई बहिनी मन ह रइपुर सहर के कोनों कलब मं जात रहंय। मंगलू ह देखे नइ रहय फेर सुने रहय, कलब मं काय होथे। पढ़े लिखे मन एक दूसर के डउकी मन ल करेजा ले पोटार के नइ जानन काय काय करथें।

जगन्नाथ साहेब ह मंगलू ले किहिस – तुमने हम पर कीचड़ उछाला है। तुम हमारा खाकर हमें ही नीच भी कहते हो। हमें तुम्हारे जैसे नीच आदमी की जरुरत नहीं। जाओ अपना हिसाब ले लो, फिर कभी इधर न आना।

मंगलू के गोड़ के नीचू के भुइंया ह हलत असन लागिस। मोर इही कमइ रिहिस। मेंह कोन बुध मं गवां डारेंव। जगन्नाथ बाबू ल ये मालूम रिहिस के मंगलू ह बनिया इहां घला बूता करथे। ओखरो मेंरन खभर भिजवा दिस के मंगलू ल अपन इहां नउकरी मं झन राखय। समाज सिच्छा अफसर के बात ल बनिया ह कइसे टारतिस। फेर मंगलू के दूनों नउकरी ह सिरा गे, छत्तीसगढ़ के हिन्ता के नइ सहउक मं।

गांव वाला मन ला घला एकर आरो मिलगे रहय, के मंगलू के दूनो नउकरी ह सिरागे, छत्तीसगढ़ के हिन्ता के नइ सहउक मां। कोनों ओखर मेंर जाने उप्पर मुंह छुवा नइ करिन। कोनों ओखर दुख मं नइ मिलिन, उल्टा कहयं के घर ह त गिरगे हे अब मंगलू के अइंठ ह अपने आप चल दिही। जगत चमरा गिरहा घर छोड़ दिस। अब ले त बड़ घमंड करत रहय दोखहा ह। अब चेत जही कखरो बात ल नइ सुनइया के काय गत होथे। मंगलू ह फेर इती उती किंदरे लगिस। नउकरी बर बिहिनिया ले निकरय अऊ रतिहा फेर घर वापिस आजाय, फेर दुख ह ओखर आगू आगू चलय।
क्रमशः

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