Wednesday, May 2, 2007

भाग - एक



आज सुरुत्ती हे न तउने पाके दियना के अंजोर ह रइपुर भर मं बगरे हवय। जेन ल देखौ तेने ह रिंगी चिंगी ओन्हा पहिरे उच्छाह मं भरे हवय।

रइपुरा गांव के थनवारिन संग कतको मोटियारी टुरी टुकना मं सुआ धर के तरी नरी नाना, मोर सुअना गावत गौंटिया के दुआरी मं पहुंचिन। गौंटिया रामधन चउरा मं अपन संगवारी मन संग बइठे तास पत्ता खेलत रिहिस। थनवारिन ल देख के तास पत्ता मढ़ा दिस।

थनवारिन ह अपन संग के टुरी मन ले किहिस – लेव गावव ओ। तहां ले सब्बो झिन कनिहा ल निहुरा के तारी बजा बजा के गांवन लागिन।

सुअना रे सुअना, भई मोर सुवना
पहिली गवन के मैं डेहरी बइठारेंव
कि जब धन रहेव में भइल बपन के
के तम्मो नइ गए बनिजार
काकर संग खाइहों काकर संग खेलिहों
काला देख रइहों मन बांध
सासे संग खाइबे ननद संग खेलिबे
कि लहुरा देवर मन बांध
लहुरा देवर मोर बेटवा बरोबर
कि काला देखि रहवं मन बांधि
तोर अंगना चउरा बंधा ले
कि तुलसा ल देबे लगाय
नित नित छुइबे नित नित पितबे
कि नित नित दियना जलाय
तुलसा के बिरवा हरियर हरियर
कि मोर गोंसइया बनिहार
तुलसा के बिरवा झुरमुर भइया
कि गोंसइया गए रन जूझ

सुआ गीत तभे थमिस जभे गौंटिया ह पांच ठिन रुपिया अऊ एक ठिन लुगरा थनवारिन ल दिस। थनवारिन ह असीस देइस अऊ रेंग दिस दुसर दुआरी।

रामधन के संगी मन फेर तास मं रमिन। ओतके बेर मंगलू ह रामधन के दुआरी के आगू ले निकरिस। मंगलू ह अगुवागे त खिलावन ह किहिस – काली बनिया खेमचन्द ह कहत रिहिस के मंगलू उप्पर शनी चघे हवय तभी ले ओखर बंठाधार होइस हे।

रामधन ह हांसिस अऊ किहिस – कोढ़िया मनसे अइसने कथे गा खिलावन। जेकर ले कुछु कांही करत नइ बने उही ह कइथे के मोर करम ह फुटहा हे। मंगलू के चाल ह बने होतिस त कालाहंडी के नउकरी काबर छुटतिस ? ओला अपन घर दुआरी के बड़ मोह हे, दिन रात उही मं लगे रहिथे अऊ कइथे, मेंह ठलहा हौं, कोनो बूता ऊता मोला नइ मिलै।

रामधन के संगवारी ह किहिस – हहो गा संगी, तै बने कइथस, जेकर मन मं बात नइ लगय वो ह कभू कुछु नइ करे सकय। तोला मालूम नइये भइया रामधन, के मंगलू राजा असन किंजरत रइथे। फेर यहू बात हे कतको झिन ओखर मेंर तगादा आथें। आजेच सुखरू ह कइ देइस हे, काली ले चण्डी बन्द कर दुहूं।

तास पत्ता के खेल ह थम गे ये गोठ मं। मंगलू के हिन्ता करे मं सब्बो झिन ल मंजा आवत रिहिस। गोठ ह आगू चलिस। खिलावन फेर किहिस। - सरकार के पहिली पांचसाला योजना ह त फलित होगे अऊ दूसर ल फलित करे बर उपाय चलत हे, फेर भइया समझ मं नइ आवय के मंगलू ल कोनों बूता कइसे नई मिलिस।

रामधन ह किहिस – हमन ल काय करे बर हे जी, जइसन बोही तइसने लुही, कुकुर धोके बच्छवा नइ होवय। मंगलू ल मेंह बालपन ले जानथंव, ओमा कमई करे के गुन त हई नइये, मोर काये रद्दा मं मिलिस त राम राम हो जाथे। महूं जानथंव के मुंह लगाय मं ओह अपन मतलब गांठे के गुनही।

काय केहे जी ? दूसर संगी ह पुछिस त रामधन ह किहिस – मंगलू ल करजा मांगे के टकर परगेहे। ओह अभी ले मोर करा करजा मांगे ल त नई आइस हे फेर मंगना के कोन भरोसा, तउने पाय के मेंह ओखर ले दुरिहा रइथों।

दे गोठ ल सुनते खिलवान ह किहिस – नइगा भइया, तें ए फेर मं झन परबे। नइत ले बर लुपलुप, देय बर चुप चुप। मंगलू ह पइसा लहुटारे मं गजब किच्चक हवय।

ठउका केहेगा, महूं हा मांटी के गोटी नइ खेले हववं। मेंह वइसने टेम ल आन नइ दंव।
क्रमशः

भाग - दो



हांसके गोठ ह चलते रिहिस। ये तीनों संगी मन मंगलू के हिन्ता कर कर के खुशी मनावत रिहिन। रामधन ह गौंटिया रिहिस, धन दोगानी बुजबुज ले भरे रिहिस। फेर समय के फेर अऊ अब मंगलू के इही कोशिश रिहिस के दूनों जून बासी मिलय जेकर ले ओह अपन गिरस्ती ल चलाय सकय। गिरे दिन मं मनखे हिन्ता करथे, अऊ किसिम किसिम के गोठ ल निकारथें। वो मन ओखर गुन ल भुला देथें, कहूं मनखे के जरूरत ल मनखे समझ पातिस त हिन्ता के बदला मं संगी के मया ह लहलहातिस। छोटे बड़े सब्बो भाई भाई होतिन, पइसा वाला अऊ कंगला के फरक नइ रइतिस।

रामधन के बखरी मां मंगलू के उप्पर किसिम किसिम के गोठ होवत रहय। अऊ मंगलू ह देवारी के दिन अपन करम के धरम मं इती उती किंजरय। धुर्रा धुर्रा के घुमई ओखर पांव मं बेवइ कस घाव होगे रिहिस। पनही ले ओकर अंगरी मन झांकत रिहिन ! फटर फटर करत रेंगे।ओखर ओन्हा मन मां घला कतको कापा लगे रिहिस। ओखर चुन्दी ह कतको दिन ले तेल नइ परे ले छरिया गे रिहिस। मंगलूके दुख के बंटइया भगवान बिगर कोनों नइये, अइसने बेचारा के दिन ह बीतै।

मंगलू ह बड़ आसरा लेके सहर रइपुर के एक बनिया इहां नउकरी के फेर मां आय रिहिस। फेर ओखर ले पहिली ओखर करम छंड़हा तकदीर ह पहुंच गे रहिस। मंगलू उदास मन ले घर कोती रेंग दिस। ओखर खीसा मं एक धेली नइ रहय के रइपुर मं भजिया उजिया खा लेवय। बेरा ह मूड़ी उप्पर आगे रिहिस अऊ अभी ओला रइपुरा अमरे ल एक पहर लगय। रइपुर नहकत ले त ओला मुनिसिपल्टी के टोटी साथ देइस।

मंगलू ह रइपुरा के धुर्रा वाला रद्दा मेंर पहुंचिस के ओला ओखर गांव के धनऊ बरेठ ह भेंटिस। उहू ह रइपुर माटी राख अऊ लील आने ला गे रिहिस। मंगलू ल देखते किहिस – कस गा, जुन्ना गौंटिया, रइपुर गे रेहेगा ? काय बुता परगे रिहिस के अत्तेक तमतमावत घाम मं रेंग देव ? तोर दुख के दिन ल देखके मोर करेजा ह फटथेगा।

मंगलू ह किहिस – का कहौंगा बरेठ कका। बेरा ह अइसने आगे हे के हाथ के सोन ह मांटी होगे हवय। ददा ह रामधन ले करजा नइ लेतिस अऊ नई मोला अइसन दुख भोगे ल परतिस। कोन कोन ल दोष दौंगा, मोर करमें ह फुटहा हे। फेर आघू धन दोगानी नइ देखतेंव त ए दिन ह मोला कभू नइ खलतिस। काय बचे हे, एक ठिन कुरिया अऊ दू एक्कड़ खेत, तउनो मां आगी लगगे हे, बिन पइसा के परती परे हवे।

धनऊ ह किहिस – ले छोड़गा रोनहुक गोठ ल। भगवान ल सबके फिकर रइथे। मंगलू अउ धनऊ भोंभरा ले बचे बर लकर धकर रेंगिन। फेर मंगलू ल गिरस्ती के भार ह झकझोरिस। ओखर गोड़ ह कांपत रहय फेर ओखर चलई ह बड़ तेज रहय। ओला लगय के ओखर उप्पर अकास ह फट परही, बिजुरी ह गिर परही। कोनों ओकर सोर नइ पाहीं। ओखर आंखी के आगू अंधियार छा गे। अपन दुख ला काला कहय। जग के दू नाव, नेकी अऊ बद। मनखे बने के त संगी हवय फेर बिगरे मं मूड़ी घला नइ डोलाय। ये ह जुन्ना रीत हवय न। फेर बेचारा मंगलू कोन खेत के ढेला आय। ओह भटकत रिहिस धरती माता के ओरी मं। ओला कखरो आसरा नइ दीखय। ओह सोचय के आज घर मं चूल्हा नइ बरे होही। समारु ह भुखा गे होही। सोनिया ह भूख ले तलफत होही अउ मोंगरा बहिनी धीर धर के बइठे होही के भइया ह कुछु कांही लानही। रहिगे केतकी, ओहू ह मने मन ए गरीबी मं फटफटावत होही। नइ जानवं भगवान ह कतेक धीरज देय हावय ओला। ओह नारी परानी होके अइसन दुख के दिन मं हांसते रइते। मिहनत करो अउ अगुवाव, दे मां ओखर बिसवास हवय। मोर मरे जिये के संगवारी एक उही ह त हवै। कहूं मेंह अपन खटला ल पेट भर नून बासी खवा सकतेंव अऊ ओन्हा दे सकतेंव, त फेर मोर गिरस्ती मं कुछु कमइत नइ रतिस। फेर जग ह बड़ निरदई हवय। ओह नइ पसीजे, ओखर करेजा ह पथरा के हवय। मनखे मन कइथें के पथरा के छाती म घला पानी होथे, पहाड़ ले नदिया निकरथे। कोनों कोनों पथरा अतेक मजबूत होथे फेर ओखर छुरा बन जाथे त उहू बड़ कसकथे। कहूं कोनों मोर जिनगी के कसक ल समझे पातिन, मोला कुछु कांही बूता देतिन; मेंह रोजी ले लगतेंव। कइसनों मोर गिरस्ती चलतिस अऊ मोला कुछु नइ खंगय।

दुआरी के आगू आगे मंगलू। भितरी ले कखरो रोयके अवाज आवत रहय। चउखट मं गोड़ मढ़ाते ओह ह सुनिस – समारु रोवत रोवत केतकी ले कहत रहय – लान न दाई बासी, अब भूख ह नइ सहाय, दादा ह कोन जाने कब आही, मोला बासी दे।

केतकी ह रो डारिस। वो ह समारु ल समझावत रहय – राजा बेटा मन रोवय नइ समारु, तोर ददा ह आवत होही, तोर बर खाई लानही।

समारु ह जिद करके अउ चिचिया चिचिया के रोवन लगिस। वो ह अपन दाई के लुगरा ल धर के किहिस – नइ दाई नइ, मेंह तोर बात ल नइ मानवं, चल आगी बार, मोला अड़बड़ भूख लगे हवय।

मंगलू ह फरिका तीर ले सब सुनत रहय। ओखर आंखी ले आंसू चुचुवागे। बखरी मं नींगिस अउ समारु ल अपन कउरा मं पोटार लिस अउ ओखर मूंड़ी मां हाथ फिरोइस ओला बिसवास देय बर कुछु किहिस, ओंठ हालिस फेर भाखा ह नइ फुटिस।
क्रमशः

भाग - तीन



हिन्ता के गोठ ह राई ले रुख बनगे। मनखे मन मंगलू ला लबरा केहे लागिन। अउ मंगलू ह अपन बिगरे बेरा ले जूझत रहय। बेरा के चाल ह बेलउक रहय। ओला कखरो आसरा नइ रिहिस।

ए दुख के दिन मं मंगलू ल अपन बीते दिन के सुरता ह आ जावय। जब ओह टाटानगर के लोहा कारखाना मं नउकरी करत रिहिस। मंजूरी के संग एती ओती के अवइ मं भत्ता घला मिलय। फेर महिना मां खर्चा ले कुछु रुपिया बांच घला जावय। उही बांचे रुपिया ले ओह अपन गिरस्ती ल अब ले पोसिस। फेर अब त चाउर के एक-एक सीथा ह दुभर होगे। सब्बो के पेट ह पीठ मं चट्टकगे।

मंगलू तीन बच्छर ले ठलहा रिहिस। फेर रइपुर मं कभू कभू लइका मन ल पढ़ाय के बूता ओला मिल जावय। फेर बंधक बूता ओला नइ मिलिस। समारु के पढ़इ लिखइ ह रुकगे रिहिस अउ मोंगरा ल मेटरिक ले आगू पढ़ाय के हिम्मत नइ परिस। अब सबले पहिली ओखर बिहाव के फिकर। फेर जोन मन भूख ले बिलबिलावयं, एतका बढ़ भार ल कइसे उठातिन।

मंगलू हाथ पांव मारे फेर ओखर कुछु नइ चल सकिस। दरिद्री ह ओखर संगवारी बनगे रिहिस ना। सहर के परोसी अउ गंवई के परोसी मं बहुते फरक होथे। मनखे मन कहिथें के सहर के परोसी ह काम नइ परय फेर गंवई के मन इन्कर ले बने रहिथे। मंगलू के अत्तेक कमजोरहा दिन मं कोनों साथ नइ दिन। अउ उलटा ओखर हंसी ठट्ठा उड़ावयं। ओमन कहयं के अतेक तन्दुरुस मोठ डांठ मनखे, पिरथी मं गोड़ मारै त जझरंग ले पानी निकरे लागय। बड़ अचरज के गोठ आय के जम्मो गांव वाला मन के कइथे ओला कुछु बूता नइ मिलय। दुनिया ह कतेक अगुवागे फेर ये करम छड़हा ह अपन डउकी लइका के घोंघरा ल नइ भरे सकय। निच्चट अप्पत हे।
क्रमशः

भाग - चार


ये गोठ आय गांव वाला मन के। पंछी ह जिव ले जाय, अउ खवइया मन ल मिठावय निंही। मंगूल उप्पर मुसीबत परे रहय, ओखर मन के बात ह मांटी मं मिलगे। फेर तभ्भो ले मन के कोंनहा ले कोनों कहय, मंगलू के मुसीबत के दिन ह कभू बूड़बे करही।

अइसन रिहिस मंगलू के जिनगी। मन ह मरगे रिहिस। ओखर इच्छा पूर होयके बेरा ह अबले नइ आय। ओला दिन रात इही लगन रहय। अपने बात ल गुनय, पूरब के अकास ह जब पिरथी के ओरा मं झकझक ले अंजोर भरही त नवा जिनगी फेर पनपही। बेरा उये पांखी फूल बन जाथे, फेर मंगलू के मन के पांखी कभू नइ उघरे पाय। एह भगवान के शराप होवय नइ त तकदीर के फेर।

एक दिन बिहिनिया ले गांव के मनखे मन बड़ जोर सोर ले गोठियावत रहयं। गजब होगे ! गजब होगेगा !! मंगलू ह अपन कुरिया के नीचू के हिस्सा मं चरनदास नांव के चमरा ल भारा मं दे दिस। ये चमरा ह सरकार तरफ ले हमर गांव मं कुकरी पोसही। राम राम, ये अन्धेर। कोंन जाही गा ओखर कुरिया ? ब्राम्हन पारा मं चमरा ल खुसेर लिस। कोनों छुआछूत के भेद ल नइ मानिस ओहा। घर मं मोटियारी बहिनी बिहाव बर बइठे हवय, काली कोन राजी होही ओखर घर भात खाय बर ? मनखे उप्पर दुख परथे, फेर अपन धरम करम ल त बरकाय बर लागथे।

समाज वाला मनके गोठ ये रिहिस। फेर कोनों एला नइ बूझिन के मंगलू ह काबर अइसन करिस ? ओह अपन गिरे बेरा के नाथ ल खींचे बर अइसन रद्दा मां चलिस, मोर हिन्ता होही अइसन ओह नइ पहिली सोचिस अउ नइ अब। अपन गिरस्ती ल कइसनों चलाय बर ओला इही रद्दा दीखिस।

मंगलू के घर ह टूटत रहय। कब जमाना के घर अब ले ओकर मरम्मत नइ होय रिहिस। पहिली जब बने दिन रिहिस त अपन घर ला भारा मं उठाय के ओला जरूरत नइ रिहिस। फेर अब ओहा गुनै के नीचू के हिस्सा ल किराया मं उठा दूहूं। थोर बहुत भारा आही त ओखर हुलुपुटु जरूरत ह निकरबे करही। हमन उप्पर के हिस्सा मं गुजर बसर कर लेबोन।

इही गुन के मंगलू ह एक कागज रोगन ले लिखके दुआरी मं चटका दे रिहिस के मकान भारा मं खाली हावय। फेर कतको किरायादर मन आइन अउ झांक झूक के रेंग दिन। कतको झिन घर ल देखके कहयं के दे मकान ह गिराउक असन लागथे, कोन ह अपन जीव ल जोखिम उठाही।

आय घला सैंतुक घर मं गजब सीड निकरै। अइसे लगथे के एक दू पानी मं एकर ओर सोर नइ मिलय, कभू भरभर ले गिर परही।
क्रमशः

भाग - पाँच


रइपुर मं मंगलू ह समाज सिज्छा के अफीसर जगन्नाथ बाबू के बेटा ल रोज पढ़ाय ल आवय। एक दिन ओह मंगलू ले किहिस – क्यों मंगलू, आप यहां के हरिजन नेता को जानते हैं ? मंगलू ह किहिस – हहोगा, जानथंव त काय होगे ?

जगन्नाथ ह किहिस – उसे तुम्हारे गांव में एक मकान किराये से चाहिए, सरकार की तरफ से वह मुर्गी पालन केन्द्र की स्थापना कर रहा है। मंगलू ह चाहते रिहिस ओहा राजी होगे।

मंगलू के घर में तीन झिन हरिजन मन आके रहे लागिन। ओ मन अघुवा के मंगलू ल एक महिना के केराया तीस रुपिया दे दिन। ये रुपिया ले मंगलू एक सहारा मिलिस। ओह अनाज पानी लेके इन्तजाम कर लिस। गांव वाला मन चिचियावत रहिन फेर मंगलू उप्पर ओखर कोनों असर नइ होइस। मोंगरा अउ केतकी घला ये चखचख ला सुनिन फेर उही दूनों झिन एक दूसर के मन ल समझा लिन।

मोंगरा के गोठ अइसे ये, ओह किहिस – तहीं बता न भउजी, अखीर भइया का करतिस ? हमर घर मं अउ कोनों केरायादार मन नइ अइन त हम का करन। चमरा ह आइस त उही ल रख लेन। ये कोनों पाप नोहे। मनखे चोरी झन करय काम कोनों हीन नइये।

रतिहा मंगलू अउ केतकी के गोठ चलत रहय। केतकी ह जात सगा अउ टोला वाला मनले डर्राय के बात ल किहिस त मंगलू ह अपन हाथ ल मटकावत किहिस – मेंह कखरो ले काबर डर्रावं, कोनों ले मदद मांगहूं त झिन देवय। जोन ह मोर बेरा मं संग दिही उही हमर बर सब्बे कुछु हवय। वोह आनजात वाला होवय के जात सगा। जब हमर जात सगा मन संग नइ देइन फेर उन्कर ले डर कइसे केतकी ? मन मं गुनत ओ, जब हमर नान नान नोनी बाबू मन अनाज के एक सीथा बर बिलबिलावय त कोनों ह एक जुआर खवा नइ सकिन। मेंह जौन करे हवयं न सोच समझ के करे हववं।

इन्खर गोठ ह रुकिस त मंगलू के मूंड़ी ह फेर अपन गुन गुन सुरु करिस। कहूं मोला दू कोरी पांच के कोन्हों नउकरी मिल जातिस त मोर दुख ह कट जातिस। लइका पढ़ाये के दस रुपिया मिलथे फेर ओह त ऊंट के मुंख मं जीरा असन आय। एतेक मं गिरस्थी ल कतेक दिन झींकूहं। भगवान करतिस के मनसे के सोचे बात पूर होतिस। फेर ये दुनिया ह घला रिंगी चिंगी हावय। ओह रंग बदलथे, ये दुनिया के फेर मां। उमर ह पहा जाए अउ जिनगी ह थकासी मं सूत जाथे।

जात वाला मन ल आंखी फेरत मां कतेक देर लगथे। अपन टेंटा ला देखैं निहीं, आन के फूला ल हेरथें, जेकर ओमन बड़वारी करथें ओखरे हिन्ता करत मं घला उनला बेर नइ लगय। अउ ओ मनखे ह उन्कर दिखउल मं कुछु नइ रहि जावंय।

पारा मं कखरो घर कुछु उच्छाह होवय त मंगलू घर नेउता नइ देवंय। केतकी ह अइसन व्यौहार ले कंप जावय। अउ सगा मनके छोड़े ले ओला लाज लागय। परोसिन मन कहूं रद्दा मं भेंटय त कहयं के कोन जावय तुम्हर घर। लहुट के नहाय बर परही। घर मं त चमरा ल खुसरे ले हावव, जात सगा मन मरगे रिहिन का ?

परोसिन मन के गोठ ल सुनके केतकी ह चुप्पे नइ रहय। ओह जवाब देबेच करय, के हमन त उप्पर मं रहिथन। केरायादर ह त नीचू मं रहिथे, फेर छुआछूत के कोन बात। एक दूसर ले कोनों सरोकार नइये। फेर सुराज के आयले अउ हमर गांधी बबा कहेले छुआछूत अब कोनों नइ मानयं।

केतकी के अइसन गोठ ल सुनके परोसिन मन मुंह ल बिदकाके रेंग देवयं त केतकी ल लागय के ओखर जीत होगे।

फेर घर के पहुंचते ओखर मन ह उदास हो जावय। जात सगा मनके अइसन दुराव करे ले कइसे बनही। अभी मोला मोंगरा के बिहाव करे बर हवय। जात सगा मन नइ फटकहीं त बने नइये। जात सगा ले मिलके चले ल परही, अलग रहे ले नइ बनय। जात सगा मन त रुख आंय अउ हम ओखर डारा पाना।
अपन मन के गोठ ला एक दिन केतकी ह मंगलू ले किहिस – कसगा, तैं देखथस ? जात सगा मन तिरियागे हवयं, हमन ले। जेन गांव मं हमर सात पुस्त ले गौंटियाई रिहिस, उही गांव मं आज कोनो हमला चीन्हें निहीं। मोंगरा के बिहाव ह बिन पइसा के कब ले पिछुवागे हवय। ए मन मोंगरा के बिहाव मं झांकही घला निहिं।

मंगलू ह किहिस – नइ आहीं त झन अवयं। जात सगा मन नइ आहीं त मोंगरा के बिहाव ह रुक जाही। तोला त अइसने सोचना नइ चाही। फिरे दिन मं मनखे के इज्जत ह मांटी मं मिल जाथे। मेंह अघागे हववं ए जात सगा मनले। मोला अपन रद्दा खुदे बनाय बर हे। मेंह कखरो आसरा नइ करवं।

मंगलू के गोठ ल सुनके केतकी ह चुप्पे होगे। वोह मन मं गुनिस के इन्खर ले कुछु कहय त ए ह अपने बुध के गोठ गोठियाथे।
क्रमशः

भाग - छह



बरखा बीतगे, जाड़ के दिन आगे। मंगलू के ओन्हा निच्चट चिरागे रहय। केतकी के मन ह रोदै अपन मनखे के मुसीबत ल देखके। ओला कमइ के कोनों रद्दा नइ दिखय। एक दिन केतकी ह मोंगरा ले किहिस – नोनी हमर दिन ह अइसे नइ फिरय। कुछु करना परही। रामधन गौंटिया इहां धान कुटवाथे, हमू मन अपन घर मं धान ल कूट के अमरा देबोन। मंजूरी मिलही त हमर दुख के बेरा मं काम्मेच दिही। मोंगरा किहिस – बने त आय भउजी, भइया बेचारा ल सहारा त होही।

रामधन के धान कूट कूट के केतकी ह दस रुपिया सकेलिस। अऊ एक दिन मंगलू ले किहिस – सुनत गा, तोर ओढ़ना मन निच्चट चिथरा हो गेहे, में दस रुपिया सकेले हवंव, ओन्हा ले आन अपन बर। मंगलू ल दस रुपिया सकेले के गोठ ह समझ नइ आइस। ओह किहिस – कस ओ, कोन मेंर ले लकेले हवस दस रुपिया ? केतकी ह सही बात बता दिस। मंगलू ह रो डारिस, - तुमन अइसे मोर जीव के पाछू काबर परे हावव। गांव वाला मन जात सगा मन त मोर हिन्ता करते रइथें, अब किहिं के देख लौ ग ए निच्चट ल। अब अपन घर के डउकी परानी के कमइ ले पेट पोसथे। तें ह अपन जुन्ना दिन ल भुला देबे, कइके मेंह नइ जानत रहेंव। तहूं त ए गांव के गौंटिया के बहू रहे हवस। चल ले का होगे मोर हिन्ता होही, तोर त बड़वारी होबे करही।

केतकी ह सुनके सुबक सुबक के रोवन लागिस। मंगलू के गोठ ल सुनके। मंगलू ह केतकी ल समझाए लागिस – देख ओ, तैं रो झिन। मेंह तोला बने कइथों अपन इज्जत ल अपन हाथ कोनों नइ गवांवय। हमला त उही भगवान के आसरा ले जिनगी चलाय बर हे। कभू त ओह सुनबे करही। अच्छा लान दे रुपिया मेंह ओन्हा रइपुर ले ले आनहूं। मंगलू ह बजार ले समारु बर सलूका अउ सोनिया बर पटुका अउ पोलखा बिसा लानिस। जब केतकी ह देखिस त कुछु नइ बोले सकिस।

रतिहा जब केतकी ह सुते ल आइस त देखिस मंगलू मांड़ी उप्पर मूंड़ी गड़ाए कुछु मने मन गुनत हावय। ओह मंगलू के चुन्दी मं अपन हाथ फिरोइस त मंगलू मूंड़ी ल उप्पर उठाइस। केतकी ह किहिस – का गुनत रइथस गा, दिन रात के गुन गुन ह तोला फोकला कर दिही। फेर तोर हाथ ले बे हाथ होवय मं हमर मन के कुकुरगत हो जाही। तैं त मेटरिक तक पढ़े हवस। बड़ ज्ञान के बात पहिली मोही ला सुनावत रेहे। फेर धीरे धरे मं त दिन ह फिरथे। मंगलू ह केतकी के गोठ ल सुनके बोध लगिस अउ मांचा उप्पर गोड़ तनिया के ओह सुतगे।
क्रमशः

भाग - सात




जूड़ के दिन के उतरती रहय। केतकी के पांव भारी होगे अउ अब नवा फिकर होगे। मंगलू ल जइसन छेवारी के दिन ह लकठावत जावय। मंगलू के परान ह सुखात जाय। ‘मंगना के घर मं सेंध’ कहां त पेट भरे पुरती कमइ नइ अउ छेवारी के खर्चा। होनी त आय। एमा कखरो काय जोर हे।

हमर डहर जनम के बखत अड़बड़ नेग जोग होथे। पहिली गर्भवास के सतवां महीना मं सधौरी होथे। सात किसिम के खाय के जिनिस ल गरभौतिन ला खवाय जाथे। ओखर पाछू कुटुम के माइ लोगन मन खाथें। उही दिन गरभौतिन के मइके ले मोंटरा आथे। ओमा ओन्हा, गहना अउ रुपिया आथे। इही ला ‘सधौरी’ कइथें।

लइका अवतरे के तीन दिन पाछू छेवरिया ल पियेबर दवइ बूटी, मिंझरा पानी ल हड़िया मां घर के आगी मां अउटांथें। इही ल ‘कांके’ पानी कइथें। येला छेवारी ह पीथे अऊ गांव के माइ लोगन मन घला पियेबर आथें। ये सब नेंगहा काम ल ननंद करथे। एला ‘कांके मढ़ौनी’ कइथें। छेबरिया ल जोन दवइ देय जाथे ओला ‘ओसहा’ कइथें। दूसर माइ लोगन बर खाय ल देथें ओला ‘ढूढी’ कइथें। मोगरा बड़ उच्छाह मां डोलत रहय अउ ‘सधोरी’ ल गावत रहय –

महला मां ठाढ़े बलम जी
अपन रनिया मानावन हो
रानी पीलौ मधु पीपर
होरिल बर दूध आहै हों
कइसे के पियउ करु त करायर
अउ झर कायर हो
कपुर बरन मोर दांत
पीपर कइसे पियंव हो
जो रानी तैं पीपर नइ पीबे
मधु पीपर नइ पीबे
त कर लेहूं दूसर बिहाव
ओहिच पीहै पीपर हो
पीर के झार ह पहर भर
मधु के दुइ पहर हो
सउती के झार जनम भर
सेजरी बंटौतिन हो
कंचन कटोरा उठावव
पी लेहूं मधु पीपर हो
क्रमशः

भाग - आठ



केतकी ह छेवारी बइठगे। टूरा होइस। मोंगरा बड़ खुसी रहय अपन नवा भतीजा ल पाके। फेर मंगलू के चेत ह काम नइ देवय। कतको कमी मं छेवारी ल त खवानां परही। फेर पइसा...?

मंगलू ल आज रामधन के सुरता आइस। मंगलू अउ रामधन एकेसंग रइपुर में इंगरेजी पढ़े रहिन। ओ बेरा मं मंगलू ह गौंटिया रहिस। अउ रामधन ह दू नागर के किसान के बेटा। फेर आज त रामधन ह गौंटिया होगे हवय। ओखर ददा के मरते ओखर भाग ह अउ सनपनी असन चमक गे हवय। जुन्ना दिन के सुध करत करत मंगलू ह रामधन के दुआरी मेर आगे रहय। ओह हांक पारिस, कसगा रामधन हावस गा। रामधन गोरु मन ल ढिलावत रहय। मंगलू के आवाज ल सुन के बाहर अइस, देखिस मंगलू दुआरी के चउतरा उप्पर बइठे रहय।

रामधन अपन मुंह ल बिदका के किहिस – कसगा, भइया मंगलू, गजब दिन में भेंट होइस गा। अइसने लगथे के तैं दूसर गांव में रइथस। मंगलू ह किहिस – का कहौंगा, रोजी रोटी के फेर मं टेम घला नइ मिलय गा। मेंह ह तोर मेंर असरा में आय हवंव। केतकी ह छेवारी बइठगे हे। खीसा मं एको धेली नइये। थोरको रुपिया के तें मदद कर देते त अभी काम ह त बन जातिस।

रामधन ह इही बात ल डर्रावत रहय। फेर आज त ओह फंस गे रिहिस – ओह, कतेक रुपिया होना तोला। मंगलू ह एक कोरी पांच रुपिया मांगिस। रामधन ह भितरी ले पचीस रुपिया लान के दे दिस।

रुपिया ल खीसा मं धर के मंगलू ह रेंगिस, तइसने रामधन ल छींक परिस। ओह मन मं गुनिस के अब ए रुपिया मोला मिलय निहीं।

जात सगा मन त नजीक नइ आवत रिहिन फेर धूम धड़ाका के बाते नइ रिहिस। मंगलू ह बजार ले छेवारी के खाय के समान अउ ए खुसियारी मं मोंगरा बर दू ठिन लुगरा ले आनिस। भइया के लाने लुगरा ल पहिर के मोंगरा ह अपन भउजी मेंर बइठ के अकेल्ला सोहर गाय लागिस –

नंनदी बलाएव उहू नइ आइस
नंनदी हो हमार का करि लेहव
बहिनी बला के कांके मढ़ाबोन
हम छबीली सबके काम आबोन
नंदोई बलायेन उहू नइ आइन
नंदोई हो हमार का करि लेहव
भांटो बलाके नरियर फोरा लेबोन
हम छबीली सबो के काम आबोन
जेठानी बलायेन उहू नइ आइस
भउजी बलाके सोहर गवाबोन
हम छबीली सबो के काम परबोन
सासे बलायेन उहू नइ आइस
सासे हो हमार का करि लेहव
दाई बलाके ढूढ़ी बटवाबोन
हम छबीली सबो के काम परबोन
जेठ ला बलायेन अऊ नइ आइन
जेठ जी हमार काय करि लेहव
भइया बलाके बन्दूख छुटवाबोन
हम छबीली सबो के काम परबोन
ससुर बलायेन उहू नइ आइन
ससुर हो हमर काय कर लेहव
बाप बलाके नाम धरवाबोन
हम छबीली सबो के काम परबोन
क्रमशः

भाग - नौ



देखत दखते छोटका ह दू महिना के होगे। ओह दिन भर मांचा मं परे परे अपन अंगूठा ल चिंचोरत रहय। मंगलू ह फिकर मं रहय कोनों बूताके।

एक दिन ओह बड़ हंसउक होके घर मं आइस त केतकी ह किहिस – कसगा, आज का बात हे, बड़ खुसी दिखथस।

मंगलू ह किहिस – छोटका के जनम ह बने बेरा मं होइस हे तइसने लागथे। मोर नउकरी ह लगगे हवय, बनिया इहां, दू कोरी रुपिया के। मंगलू के गोठ ल सुनके केतकी के आंखी ले आंसू चुचवागे। त मंगलू ह किहिस – रोथस काबर ?

केतकी किहिस – मैं रोवत नइयों गा, देह मोर सुख के हंसइ आय। मोंगरा के उच्छाह के ओर छोर नइ रहय के हमर घर ले दुख भगावत हे।

रामधन के तगादा उप्पर तगादा आवन लागिस। ओकर कहना रिहिस, के अब त नउकरी घला लगगे। थोर थोर रुपिया देके मोर लागा ल पटावय। फेर गिरस्ती के खोलवा अतेक बड़ रिहिस के ओमा जतका डारव सब्बो हमात जावय, अउ फेर रीता के रीता। थोर थोर के लागा ल त मंगलू ह पटा दे रिहिस। फेर रामधन के लागा ह जस के तस मूंड़ी मं टंगाय रहय। एती मोंगरा घला बिहाव करे लइक होगे रहय। केतकी ह उठत बइठत कहय एसों के साल मोंगरा के बिहाव करेच बर हे। केतकी के गोठ ल सुनके मंगलू के चेथी ह घूम जावय। ‘अंग लिंगोटी फत्ते खान,’ ‘चल रे लंगोटिया गंगा असनाने’ कहांत घोंघरा ल भरै के अधार नइ दिखय, अउ एती मोंगरा के बिहाव ? मैं काय करवं भगवान। जेकर ले मोर गिरस्ती झन बिगरै।

रुपिया पइसा के लेन देन ह एक दूसर के मन मां फरक लान देथे। लागा बोड़ी के रुपिया लेवत मं जतेक बड़ मिठ लागथे फेर ओतके करुवा घला जाथे। अपन पछीना बौहाय के पइसा ल देय ल परथे अउ मनखे के देय के ताकत नइ रहय त उही लागा ह ओला बोझ असन लागथे। फेर ओह भीतरे भीतर डर्रावत रहय, उही बात होगे। रामधन ह रइपुर के उकील ले नोटिस भेजिस। ओमा सफ्फा लिखे रिहिस के एक पखवारा मं पइसा नहीं मिलही त कछेरी ले उसूल करे जाही। मंगलू के पछीना बोहागे। ओहा रामधन के बखरी कोती रेंग दिस।

रामधन ह चउरा उप्पर बइठे रहय। मंगलू ल देखते किहिस भइया मेंह ये त नइ चाहवं के तोला कछेरी उप्पर चढ़ावंव, फेर पइसा के मोह बड़ होथे न मंगलू, एखर बर बाप-बेटा मं भेद पर जाथे। एखर बर मेंह घेरी-बेरी तगादा पठावत रहेंव के थोर थोर करके मोर लागा ह छुटा जावय, फेर तें त कान नइ देय। अब त एक्केच रद्दा बांचे हवय।

का ? मंगलू ल जइसे कोनों आसरा मिलगे। ओह मूंड़ी ल टांग के रामधन कोती निहारे लागिस।

रामधन ह हंसउक हो के किहिस – मैं जानथौंगा, के तेंह ए बेरा मं गजब तकलीफ मं हावस, तोला पइसा के अबड़ेच जरूरी हावय, मोर बात ला मान।

अंधरा खोजे आंखी, उही ल त जनउक कर दे भइया रामधन। ए बेरा मं त मोर तकदीर ह सुतेच गे हे। एक तोरे आसरा हे, में तोर सब्बे गोठ ल सुनहूं अउ मानहूं।

मंगलू के लेड़गा मन असन गोठ ल सुनके रामधन ह किहिस – अपन घर ल गिरो रख दे, मैं तोला रुपिया अउ दे दुहूं। बोल बने हे न, कइसे रिहिस ?

कइसे ल का बतावं गा एह अटपटा बात होगे। मेंह मने मन गुने रहेंव के मोंगरा के बिहाव बर तोर ले अऊ लागा मं रूपिया लेहूं। ओ रुपिया मेंह अपन घर उप्पर लेतेंव, अभी ले कोनो बने लइका मोला नइ मिले हवय फेर गांव के जात सगा मन घला एती ओती गोंहार पार दे हावंय के चमरा ह हमर घर मं रइथे। तभ्भो ले मोंगरा के बिहाव ल करेच्च बर परही। फेर मोंगरा के भउजी ह तियार नहीं होही घर ल गिरो रखे जावय, ओखर ले पूछ के तोला बताहूं।

मंगलू के गोठ ल सुनते रामधन ह खिसियागे अउ किहिस – त मोला घला अतेक समे नइये? नोटिस ल तें झोंक ले हावस।

सुन त ले गा ! मेंह कहे त हवंव के घर मं सलाह करके तोला बताहूं। थोरिक बेर के बात हे। रोनहुक होके मंगलू ह किहिस – मेंह जात हों, बेरा बूड़ते आहूं।

रामधन ल बने नइ लागिस, मने मन बुदबुदा डारिस। रहिजा रे मंगलू, तैं मोर पाला परे हवस। तोर सात पुरखा ह मोर ले नइ बांचय। किहिस – तोला जोन कहना हे, अभी कहिदे, में तोर रद्दा देखत नइ बइठे रहवं।

मंगलू ह ठाड़ होगे अउ किहिस – तोला भरोसा नइये भइया रामधन ? अतेक मेंह लबरा त नोहों। मेंह दियाबाती के बेरा मं आबेच करहूं। बिन घरवाली के पूछे मेंह कुछु नइ कहि सकंव।

रामधन ह किहिस – ये बात त बने हे, फेर मैं ह त अतके गुनत रहेंव के घर ल गिरो रख देबे त मोंगरा के बिहाव बर त मेंह तोर संग देबेच करहूं फेर तोला पांच कोरी रुपिया देहूं। अभी तोला रुपिया के जरूरत घला हवे न।

मंगलू ह किहिस – हहो गा, तैं जइसे कहिबे, वइसने करहूं। अउ रेंग दिस अपन घर कोती।

अंगना मं मंगलू ह पहुंचिस त केतकी ह किहिस – गोड़ ल धो के भीतरी मं आबे, समारु ल बड़े माता आगे हे, गजब भार लेके आए हे देवी दाई ह।

मंगलू के जी ह सुखागे केतकी के गोठ ल सुनत। गोड़ ल धोक मंगलू ह समारु मेर गिस। समारु के पांव ल परिस अउ किहिस ‘आय हवस देवी फेर जाबे घला बने बने। जत्तेक सत्कार हमर ले बनहीं हम ह करबे करबो।’ केतकी ह हांक पारिस, ‘चलना बासी माढ़े हवय उही ल खालौ। आज त कुछु रांधे बर नइये। देवी दाई के रहत ले त साग रांधे निहीं।’ मंगलू ह मने मन सोचत रहय अउ कउरा ल मुख मं डारत जावय।

हमर छत्तीसगढ़ के दे ह रिवाज आय के जबले कखरो घर में देवी दाई रइथे त घर के जम्मो झिन तेल नइ चुपरैं चूंदी मां। ओन्हा घला नइ उजरावय अउ कराही ला चूल्हा मं नइ चढ़ावयं।

मंगलू बासी ल खाके अपन मांचा मं बइठ गे। ओती समारु ह देवी के भार ले तलफत रहय। केतकी ह बांचे बासी ल रंधनी मं भितरी धर के आइस। जब ओह समारु ल तलफत देखिस त मंगलू ले किहिस – मोर बेटा ल बने नइ लागत हे। जावव न जस गाय बर अपन परोसी मन ल बलाले। मंगलू ह माता सेवा वाला मन ला बला लानिस। सुरू करिन –

केवल मोर माय, केवल मोर माय
आहू जगत के, सेवा में हो माय
बिटिया होतेंव, त में आरती उतारतेंव
सुन माता मोर बात, सुन माता मोर बात
दूध चढ़ातेंव, कारी कपिलवा के
में जातेंव दरबार, जातेंव दरबार
दूध चढ़ातेंव माता शितला मं
मोला देबे बरदान, मोला देबे बरदान
पाना टोरतेंव सुन्दर बंगला के
में तो जातेंव दरबार, जातेंव दरबार
पाना चढ़ातेंव माता शितला मं
मोला देतिस बरदान, देतिस बरदान।

माता सेवा वाला मन झूम झूम के ढोलकी बजावंय अउ सुर मिला के गांय। समारु ह देवी के जस ल सुनते सुनते सुतगे। मंगलू ह माता सेवा वाला मन ल चोंगी पिया के बिदा करिस। दू पहर रात पहागे रहय। मंगलू ल ओतके बेर रामधन गौंटिया के सुरता आइस त ओह केतकी मेरन गिस। समारु के मांचा के नजीक मं केतकी घला ऊंघत रहय। मंगलू ओला झकझोरिस। केतकी ह झकना के उठगे। मंगलू ह केतकी ले किहिस – सुनत हवस ओ। आज रामधन ह कहत रिहिस के घर ला गिरो राख दे। नइ त मोर उधार रुपिया ल लान दे। केतकी ह किहिस, - कसगा, रामधन ह हमला जियन नइ देवय तइसने लागथे। कहिते कहत ओखर आंखी ह डबडबागे। ओह किहिस – मोला अइसने लागथे के हमर पुरखउती के डेरा ह अब नइ बांचय। करजा लेवइ त हरुक हवय फेर ओखर देवइ ह गजबेच मुस्कुल बात हे।

मंगलू ह अपन खटला के गोठ ल अनसुनउक कर दिस अउ रेंग दिस रामधन के घर कोती। ‘आरे बरा मुंहे फरा’ रामधन ह मंद म माते चउरा उप्पर अल्लर परे रिहिस। मंगलू ह गजबेच हांक पारिस फेर ओह वइसनेच परे रिहिस। मंगलू ह जब ओखर तीर मं गिस त मंद के भरभरी ह ओला जनाइस। मंगलू ह काय करतिस ओह अपन घर चल दिस।

दूसर दिन राजा करन के बेरा मं मंगलू ह रामधन के चउरा मं जाके बइठगे। गजब बेरा ह चढ़गे। मंगलू ह असकटा गे, ओहर एक झिन पहटिया ले जोन खरेरहा बहरी ले अंगना ल बहारत रहय, किहिस – कसगा ? गौंटिया ह अभी ले सुतेच्च हवय।

पहटिया ह किहिस – नइगा, जुन्ना गौंटिया, ओहर मुंह कान धोवत हे। बइठ मेंह आरो लेके आवत हौं।
थोरके बेर मं पहटिया के संग रामधन ह आगे। मंगलू ह देखते किहिस – मेंह रतिहा आय रेहेवं, गौंटिया, फेर तेंह सुध भुलाय परे रेहे।

ह होगा, मंगलू काली लगान वसूली बर पटवारी ह आय रिहिस त उही ह मंद के सिसी घला लाने रहय। रतिहा उही मंद ल ओखर संग पी डारेंव, बढ़ निसा होगे रहयगा। तेखर ले तोर अवइ के आरो ल नई पा सकेंव।

हं, त काय सोचे ? बेनामा ल त काली रइपुर के उकील ले बनवा लाने रेहेंव। येला देख ले अउ दसखत करदे।

मंगलू ह कलेचुप दसखत करिस अउ रेंगे ले धरिस। त रामधन ह किहिस – रहितो मंगलू, पांच कोरी रुपिया ल धर ले अउ फेर लागही त ले जाबे। कोनो संकोच झिन करबे। मंगलू ह खीसा मं रुपिया धरिस अउ रेंग दिस।
क्रमशः

भाग - दस



बादर के दिन आगे रहय। पानी ह टिपिर टिपिर गिरय। सावन के बादर ह लहर लहर के धरती माता ले मिले बर मोहाय असन दिखय। धरती के अंचरा जुड़ावत रहय। फेर मंगलू अउ केतकी ल उबासांसी लगय, के ऐसों के साल घला मोंगरा के बिहाव ह नइ करे सकन। जेंखर घर मोटियारी टुरी बिहाव बर बइठे रहिथे, तोने के जीव ह जानही के वो बेरा मं ओला पहारे असन लागथे।

बरखा दिन ह नगरिहा मन के सुख के दिन आय। नांगर ल कांधा उप्पर मढ़ाय रेंग देथें अपन खेती कोती। कोनों ल एक छिन के फुरसत नइ रहय फेर, बच्छर भर के पोसइया हमर खेती ह त हे। धरती माता के ओखी ले हमर बच्छर भर के अन्न पानी होथे। कोनों ल फिकर नइये आगू के, सब्बो के मन ह हरियर हरियर।

गोधुली के बेरा होगे रहय। पानी ह जझरंग जझरंग गिरत रहय। मंगलू अउ केतकी के जीव ह डर्रावत रहय। पिछोत के भितिहा ह पानी के मांर ले धीर धीर ले भसकत रहय। उन्खर देखते देखत भितिहा ह भसभसा के गिर गे। मंगलू अउ केतकी के आंखी मं आंसू छलछला गे। भगवान हे तेखर उनला भरोसा नइ लागय।

मंगलू उप्पर एक फिकर अउ आगे। भितिहा ल गिरेबर इही टेम मिले रिहिस। मोर करम मं त दुख दीखथे। बिहिनयां नहां खोर के मंगलू ह लइका ल पढ़ाय के बूता मं जाय के तियारी करत रहय। ततके बेर केतकी ह रोनहुक असन आके किहिस – सुन त गा, सोनिया के गोड़ मं अधपकवा होगे हवय, देवी दाई ल ढरे एक पाख नइ गेहे। हमरे घर मं सब्बे दुख ह बटुर के आगे हावय, तइसने लागथे। देखबे बनही त रइपुर ले कुछु काहीं दवइ ले आनहू।

मंगलू ह जगन्नाथ बाबू के दुआरी मेंर अतेक जल्दी कइसे आगे तेला नइ समझे सकिस। जगन्नाथ बाबू ह ओखरे गांव के धनउ बरेठ ल गोठियात रहय। मंगलू ह उनखर गोंठ मं सामिल होगे।

धनउ के डौकी ह भगागे रहय। तेखरे ले अतेक दिन लागगे रहय ओला साहेब घर के ओन्हा अमराय मां। साहेब ह किहिस – इस तरफ की औरतों की यही चाल है जब तक ये कइ पति नहीं बना लेती, इन्हें चैन नहीं पड़ता। इनमें और रंडियों में फर्क क्या रहा। इसी से लोग इसे छत्तीसगढ़ कहते हैं।

साहेब के गोठ सुनके धनउ ह मूंड़ी ल झुका लिस। फेर मंगलू के जीव ह कचोटगे। वोला साहेब के भाखा ह बान असन लागिस। ओहा तमतमाय असन किहिस – बने कहेगा साहेब, ये त तोरे असन मनखे कइथें। फेर हमर डहर के डउकी मन तुम्हर घर के डउकी मन ले ऊंचहा हवंय। ओमन एक डउका ल छोड़ के दूसर संइतुक बनाथें, फेर तुम्हर मन मं त एक झिन दिखउक रखके कतको ल संगी बनाय रइथें। फेर हमर डहर के डउकी जब ले जेकर करा रइही दूसरा के छइयां ल नइ नहके। ओखर चूरी के रंग ह एके रइथे। अउ तुम्हर मं कतको रंग के एके संग पहिरथें। अउ देखब मं वोह तुमन के बुध ल भुलवार देथें। तुम्हर सहरातू डउकी मन वासना बर दूंसर ल संगी बनाथे, फेर हमर डहर गजब दुख पाय ले अइसे करथें। फेर तुम्हन बर सरकार ह कानून बनाये हवय छुटीछुटा के अउ हमर इंहां पहिली ले समाज वाला मन एला रच डारे हवंय। तुम्हर बर हिन्ता के गोठ नइये, त हमरो बर नइये। हंमर राज ल छत्तीसगढ़ एकर बर कइथें के इहीं सैंतुक मां छत्तीस गढ़ आज ले बने हावंय।

जगन्नाथ साहेब के मुंह उतरगे रहय। काबर ओखरे घर के दाई बहिनी मन ह रइपुर सहर के कोनों कलब मं जात रहंय। मंगलू ह देखे नइ रहय फेर सुने रहय, कलब मं काय होथे। पढ़े लिखे मन एक दूसर के डउकी मन ल करेजा ले पोटार के नइ जानन काय काय करथें।

जगन्नाथ साहेब ह मंगलू ले किहिस – तुमने हम पर कीचड़ उछाला है। तुम हमारा खाकर हमें ही नीच भी कहते हो। हमें तुम्हारे जैसे नीच आदमी की जरुरत नहीं। जाओ अपना हिसाब ले लो, फिर कभी इधर न आना।

मंगलू के गोड़ के नीचू के भुइंया ह हलत असन लागिस। मोर इही कमइ रिहिस। मेंह कोन बुध मं गवां डारेंव। जगन्नाथ बाबू ल ये मालूम रिहिस के मंगलू ह बनिया इहां घला बूता करथे। ओखरो मेंरन खभर भिजवा दिस के मंगलू ल अपन इहां नउकरी मं झन राखय। समाज सिच्छा अफसर के बात ल बनिया ह कइसे टारतिस। फेर मंगलू के दूनों नउकरी ह सिरा गे, छत्तीसगढ़ के हिन्ता के नइ सहउक मं।

गांव वाला मन ला घला एकर आरो मिलगे रहय, के मंगलू के दूनो नउकरी ह सिरागे, छत्तीसगढ़ के हिन्ता के नइ सहउक मां। कोनों ओखर मेंर जाने उप्पर मुंह छुवा नइ करिन। कोनों ओखर दुख मं नइ मिलिन, उल्टा कहयं के घर ह त गिरगे हे अब मंगलू के अइंठ ह अपने आप चल दिही। जगत चमरा गिरहा घर छोड़ दिस। अब ले त बड़ घमंड करत रहय दोखहा ह। अब चेत जही कखरो बात ल नइ सुनइया के काय गत होथे। मंगलू ह फेर इती उती किंदरे लगिस। नउकरी बर बिहिनिया ले निकरय अऊ रतिहा फेर घर वापिस आजाय, फेर दुख ह ओखर आगू आगू चलय।
क्रमशः

भाग - ग्यारह


मंगलू ले अपन नोनी बाबू के दुख ह अब नइ सहावत रहय। सोनिया मांचा धर ले रिहि। एती नाकुन अउ केतकी ह निच्चट सुखागे रिहिन। मोंगरा ह पिंवरागे रिहिस। अइसे लागत रहय के कोनों टोनही ह इन्कर देह के लहू ल चुहक डारे हवय। रोटी के दुख मं मोंगरा के बिहाव के गोठ ह भुलागे।

मंगलू जब चउरा उप्पर अकेला बइठे त मने मन गुनय के अइसने लागथे जइसे दुख बपुरा ह हमर घर ले मोहा गे हावय। जम्मो किसिम के दुख ह हमरे घर मं निगगे हावय। ओला ए दुख ले निकरे के रद्दा नइ दिखे।

कुघरु ले सोन निकलइया मन ए कभू नइ सोचे के पवन ह चलही त कुघरु के ढ़ेरी ह छरिया जाही अउ सोन के बलदा मं कुघरु हाथ आही। कहूं कुघरु के भितिहा बनथे। केतेक गुनेव फेर होइस का। मेंह अतेक दुख मं कलप कलपके जिए बर रद्दा सोचेंव, ये अलकरहा दुख ह मोर जीव के काल बनही तेला में नइ जानत रहेंव। एक ठिन सीथा अउ कोरी भर मुंखहा, काकर काकर चेत करौं ? में समझे नइ पावंव ? काबर मोर दिन ह अइसने आगे हे। रामधन ले लागा लेंव, घर ल गिरो मढ़ा देवं, अउ फेर नउकरी घला छुटागे। नइ जानव भगवान ह मोला वइसने के कहती बना डारे हवय। ‘आस लडूध, जास लडूध, ठेंगा के बरात, मूठा भर भात, खाय उहूगे खराब’ मंगलू ह बेरा कुबेरा इही गुनय। मोला कोनों बूता नइ मिलही त मोर नोनी बाबू मन भूख मं तलफ तलफ के मरेच जाहीं। मनखे ल जिये बर पहिली अन्न चाही, ओखर बिन मनखे ह एक पांव नइ रेंगे सकय।
क्रमशः

भाग -बारह



फागुन तिहार ह आगे। गांव मं एसो के साल बने धान होइस। जेकर ले जम्मो किसान मन के मन मं उच्छाह हमागे रहय। मंगलू ह बिहिनिया ले रइपुर जाय बर निकरिस। रइपुर के अघवार मां ठेठवार टुरा मन गाय गोरु ल चरावत रहंय। एक झिन बांस बजावय त दूसर ह फागुन तिहार के गीत गावय। गिद सुने बर मंगलू ह एक आमा के रुख नीचू ठाड़ होगे।

काकर बर धोरे लाली गुलाली
गावौं गीद गोहार
सुनतो झिन जा मोर भउजी
आगे फागुन तिहार
होरी जरत हे मोर चोला मां।
आंखी छुटथे पिचकारी
कइसे करके मन मढ़ाहुं
अन्तर करथे किलकारी
भइगे टार, झन बांध मोंटरा
तो झन तेंहा तियार
किसिम किसिम के सब्बे जेवनार बनाही
सांटी पहिरे नवा कुरता
तेंह भुलाबे मइके के मया मां
कौन करही मोर सुरता
तोरे मन भरही माई के मया
हो ही तोरे दुलार
उत्ती के लाली जरौही बिहनियां
रतिहा चंदा हा बिजराही
काखर अंचरा मां आंसू पोछके
थकहा मन हा सुरताही
आंसू गिरही देखके कखरो
लुगरा लाली किनार
सुनतौ झन जा मोर भउजी
आगे फागुन तिहार

मंगलू ल गीद सुनके जुन्ना दिन के सुरता ह आंखी मां झूलगे। तब अउ अब समझे नइ सकिस। आंखी ह डबडबा गे।

फेर केतकी के मन ह कहय, मोंगरा मोटियारी होगे। ओखर साथ के टुरी मन के गोदी ह भरा गे, फेर मोंगरा बिन बिहाव के बइठे हे। जात सगा वाला हमर चोंगी माखुर बंद कर दिन। फेर हमर मोंगरा के बिहाव ला का खाके करही। फटर फटर एती ले ओती किंजरत रइथे, पेट भरे के आसरा नइये, अइसे मं बहिनी के बिहाव काय करही। ओतके बेर मंगलू ह आगे त केतकी ह अपन मन के जम्मो गोठ ल कहि डारिस।

मंगलू हू केतकी के गोठ ल सुनके कुछु गुनिस – फेर रेंग दिस रामधन मेंर, अउ किहिस – भइया रामधन थोरक रुपिया के मदत कर देते। सोचथों के होली उप्पर मोंगरा के बिहाव ले फुरसत पालेवंव। अलकरहा दिन त चलबे करत हे। फेर जमाना ह बिगर गे हावय। मंगनी-जचनी करे के बेर मनखे ह अगुवा के रुपिया पइसा मांगथें। फेर तैं ह घला कहे रहे के मोंगरा के बिहाव मां मदत करहूं।

रामधन ह अनसुनउक असन मंगलू के गोठ ल सुनत रहय, ओह किहिस – सुनले ग मंगलू, तीन सौ रुपिया त नगदी तोर उप्पर चढ़े हवय। ओखर उप्पर कंता, तोर मकान ह त गिरवी हवय ओखर उप्पर रुपिया नइ देय संकवं। मंगलू के मन के बात ह मने मां रहिगे। ओहा मरहा असन भाखा मं किहिस – रामधन गौंटिया, मेंह त जीयत मरे असन हो गेंव।एक ठिन घर रिहिस - ओखरे ले मोंगरा के बिहाव के आसरा रिहिस। उहू मां तैं दुरकावत हवस। भगवान ह कंगला ल मउत घला नइ देवय। उनला काबर जिनगी देथे ? मंगलू ह मन मार के घर कोती रेंग दिस।

मंगलू ह केतकी ले जम्मो गोठ ल किहिस, उहू ह रोके रहिगे।

धुकधुकी ह जिनगी के संगी आय अउ ओखर ले निकेर भाखा ल गीत कइथें। किसिम किसिम के चाल ले मनखे ह अपन जीयइ के रद्दा बनाथे। कइसनों करके अपन पेट ल पोसथे। ये ह त दुनिया के कहनी आय। फेर उहां बने हे त बिगरे घला हे। जिहां पाप हे, त पुन्न घला रइथे। जुन्ना पोथी मन मं नेकी अउ बद के बखान मिलथे, जेकर ले कोनों ये झिन कहयं के नेकीच रिहिस के बदे बद। फिरन्ता ले पारा के मनखे बड़ नाराज रहंय काबर के ओहा चोरी ले गांजा अफीम के बेचे के धन्धा करै। फेर मंगलू ह अपन धरम ईमान मं रहय। फेर ये मन ओखरो हिन्ता करै। ये चाल रहय ए गांव के। पइसा वाला के संगी पइसा वाला रहय, कंगला निहीं। फिरन्ता ह बने लील लगे ओन्हा पहिरे। गर मं सोन के सकरी अउ पान ल त दिन भर मुंह मं बोजे रहय। कभू कभू चोंगी त कभू कभू सिगरेट के कश मारै। दाई ददा ह मर हरगे रहय। अकेल्ला गोल्लर असन छटारा मार मार के मंजा के जिनगी बितावत रहय। गांव के मन काय कइथें ओह कोदक नइ समझय।

थोर दिन ले फिरन्ता उप्पर मंगलू के आंखी ह थमगे रहय। भेंट होवय त गजब बेर दूनों झन गोठियात रहंय। एक दिन मंगलू ह घुमा फिरा के ही बद के धन्धा के मंद मं पूछिस। फिरन्ता ह मंगलू के मन के बात ल समझगे।

ये ठउका आय के फिरन्ता ह आज ले अपन बीते दिन के बात ल कोनों ले नइ केहे रिहिस। फेर मंगलू ह ओखर संगवारी बनगे रहय। ओहर किहिस – भइया मंगलू तैं नइ जानस गा। हमर घर गजब धन दोगानी रिहिस। एक बेर हमर गांव मां डाका परिस। ओमा मोरदाई ददा के कतल होगे। ओ बखत मेंह दस बच्छर के रहेंव। में अपन जीव ल बचाय बर निकर भागेंव। तबले इहें आके बस गेंव। रइपुर मं जब कोनो नउकरी नइ मिलिस त ये दोखहा धन्धा ल निमेर लेंव। अब त निच्चट रमगे हावंव, ए नकटा धन्धा मं।

मंगलू ह समझगे के फिरन्ता ह घला टेम अउ के सगा मन के हुदकारे ले ये सरकार के विरोधी धन्धा ल करत हे। ओखर दुख मं त कोनों संगी नइ बनिन अउ कइथें के चोरहा हे। हमर राज के दुसमन आय।

समें के बूता, रेंगना। रात अउ दिन जुन्ना नवा होत चल दिन। फेर पानी के दिन ह आगे। मोंगरा के बड़ चिन्ता रहय। मंगलू ला। एक दिन फिरन्ता ले बात करिस। फिरन्ता ह राजी नइ होवत रहय। अकेल्ला रहय के ओला टकर परगे रहय। फेर मंगलू के गोठ मां मोहागे फिरन्ता। मन मं तै कर लिस घर बसाय के।

मंगलू ह केतकी ले फिरन्ता के बिसे मां गोठ निकारिस।

मोला त ए दुख के बेरा मां उही संगी दिखत हे।

फेर मोर मन ह नइच मानय, फिरन्ता संग मोंगरा के कइसे निबही।

त में कइसे करौं, मोटियारी टुरी ल घर मां बइठारे रखे ह बने नइये।

मोर मन ह त... । फेर तोर बहिनी ये तैं बनेच करबे।

मेंह त पक्का करले हवंव के फिरन्ता संग बिहाव करे ले मोंगरा ल सुख नइ मिलही त दुख घला नइ मिलय।

‘भितिहा के कान, गांव भर मं सोर परगे’ मंगलू ह फिरन्ता संग अपन बहिनी मोंगरा के बिहाव करत हवय। ए गपड़-सपड़ सेंतुक हंवै। सुनउक मां एहू आय हवय के फिरन्ता ह बिन लेनी देनी के बिहाव करत हवय। कोनो कहयं फिरन्ता ह मंगलू के बेरा कुबेरा मदत करही कइके जबान घला हार दे हे। जतेक मुंहू उतके आनीबानी के गोठ होवत रहय।
क्रमशः

भाग - तेरह


बिहाव बर एक पाख बांचे रहय, फेर केतकी ह अभू तियार नइ रहय बिहाव बर। एक बेर मंगलू ले फेर जोर डार के किहिस – मेंह कइथों तुमन ला का होगे हावय ? तोर आंखी ह मांड़ी मेर चल दिस ? एकर ले त इही बने होही के मोंगरा ल कोनों कुवां तालाब मां लेके बोर आते, लोफ्फड़ मनखे संग ह बने नोहे। फिरन्ता ह बने मनखे नोहे। जात सगा वाला मन त अइसने हमन ल तिरिया दिन हें। फेर ये बिहाव के होते हिन्ता करइ मां कोनो कसर नइच रहय। सब्बे झिन इही कइहीं के लालुच मां परके तैं फिरन्ता संग मोंगरा के बिहाव कर देय।

मंगलू अपन खटला के जम्मो गोठ के जवाब देय बर तियार रिहिस, वोह किहिस – मेंह कतेक बेर तोर ले पहिलिच कहि डारे हवंव के ये जात सगा वाला मनले बिलकुल नइ डर्रावंव। मेंह फैसला कर ले हवंव, अब कखरो कहे उप्पर मेंह नइ घुचंव। बद ले डर्रावत रउहूं त नेकनामी के रद्दा कब लग हेरहूं। बड़ दिन धीर धरेंव। तहीं बता न, मोटियारी टुरी ल कब तक बइठारे रखबौन। फिरन्ता आवारा लोफ्फड़ हे फेर महूं जानथंव वोह काय हे तेनला। मोंगरा असन गउ टुरी ल पाके ओखर चाल ह अपने आप सुधर जाही, जइसे मोर मन कइथे। अउ भरोसा में त मनखे ह सरी जिनगी ल गवां घला देथे।

केतकी ह अपन घरवाला के गोठ ल सुन सुन के खीझावत रहिस। वोह खुनसाय असन किहिस – मोर बात ल नइच मानस, अपने मनके करबे, पहिली मनखे ल अपने ल हेरना चाही। ससुरार जाके मोंगरा ल बड़ बड़ आंसू रोना परही त ओखर मन ह काला कोसही ? तोला, मोला, के ये दुनियां ल। ओखर जिनगानी ल खइता झनकर। एखर ले ओह कोनों गरीब गुरबा घर जाय, मंजूरी करय, छेना थोपे, फेर सुख ले दू कउरा बासी त मिलबे करही।

मंगलू ह जब अतेक बात कहे उप्पर नइच मानिस त केतकी ह रो डारिस। मंगलू ह उचके चल दिस। मोंगरा घला अपन भइया भउजी के बतकही ल सुन डारे रिहिस। ओला अपन तन ह भार असन लागत रहिस – ‘ओह मने मन गुनय, भइया ह कमजोरहा मां अइसे करत हवै, फिरन्ता ह मनखेच आय, फेर ओखर चाल ह बिगरगे हे। अइसने मनखे के कोनो बंधे बूता रहय निहि।अउ अइसन मनखे ल सुधारना घला अपन जिव के देवइ आय। फेर तभो ले ये बने रद्दा मं नइ रेंगय। चोर चोरी ले जावय फेर टाला फेरी ले नइ बरके पाय।’

मोंगरा एहू जानत रहय के मंगलू ह ओखर बिहाव बर कतेक हेरान होगे रिहिस। अतेक तकलीफ के बेरा मां बिहाव ल निपटा के अपन जिनगी के बूता मां उत्ताधुर्रा लगे बर गुनत हे। मेंह भार असन ओकर उप्पर धरे हावंव। एखर ले मोला धीर धरना परही। गउ ल कोनों खुंटा मां बांधव फेर ओह चुप्पे रइथे अउ यही मां ओखर बढ़इ आय। जोन ला मोला भइया भउजी सउपहीं उहां मोला बने हंसी खुसी ले जाय ल परही।

मोंगरा ह अपन मने मन गुनके धीर धर लीस। बिहाव के दिन लकठा गे रिहिस।

क्रमशः

भाग - चौदह


मोंगरा के बिहाव के तियारी होगे रहय फेर देनी लेनी बर मंगलू के हाथ ह जुच्छा रिहिस। ओखर मन ह बढ़ दुखी रहय के एके ठिन बहिनी, फेर ओखर बिहाव मां मैं कुछु नइ देय सकत हवंव।

केतकी ह मने मन रोवत रहय के हमर तकदीर ह त फुटगे हवय, फेर मोंगरा के करम कइसे फुटहा होगे। मोंगरा के बिहाव देवी दाई के मड़िया मां होत रहय। केतकी ल अपन बिहाव के सुरता आगे। कतेक मनखे सकला गे रिहिन ओखर बिहाव मां। आनी बानी के गीद...।

खूंट धर अंगना पिबो वो मोर दाई
मोतियन चउक पुराबे वो
सोने के कलसा मढ़ाबे मोर दाई
हलर हलर मढ़वा डोले हो खलर खलर दाईज परे हो
कोन तोला नोनी टिके अचहर पचहर, कोन नोनी टिके घेनुगाय
दाई तोर नोनी टिके अचहर पचहर, ददा तोर टिके घेनुगाय
ये ही परम ले धरम मोर दाई, फेर धरम नइ पाबेगा

बिदा के बेरा मां मोर दाई ददा मन के जीय ह सुबुक सुबुक करत रहय। अपन करेजा ला दूसरा ल सउपे मां उनकर मन के जी ह सुख त पावत रहय, फेर दुख घला लागय। उही बेरा मां गीद गवइया डउकी मन के गीद के शुरुती –

मैं परदेसिन आवं
परमुलुक के रद्दा भुलागेंव
अउ परदेसिया के साथ
दाई कइथे रोज आबे बेटी
ददा कइथे आबे दिन चार
भइया कइथे तीजा पोरा
भउजी कहै कोनकाम
मैं परदेसिन आवं
परमुलुक के रद्दा भुलागेंव
अउ परदेसिया के साथ

मोला बिदा करे बर जम्मो गांव के लोगन सकला गे राहयं। अपन गांव ल अउ संग के सहेली मन ल छोड़त मां मोर जी ह कलपत रहय, मोर मन ह कहय।

पइयां परत हौं चन्दा सुरुज के
मोंला तिरिया जनम झिन देबे
तिरिया जनम मोर अति रे कलपना
मोला तिरिया जनम झिन देबे

देवी दाई के मढ़िया मां मोंगरा के बिहाव होगे। मंगलू अउ केतकी रो धो के मोंगरा ल फिरन्ता ल संउप दिन। फेर जात सगा वाला हिरकिन निहीं।

मोंगरा ह अपन ससुरार आगे रहय। ओह मने मन फिरन्ता के चाल ल चीन्हें बर उतियागे रहय।फेर बिहाव ले फिरन्ता घला सधवा असन बनगे रहय। मोंगरा ह जइसे पहिली फिरन्ता के बारे मां सुने रिहिस तइसे पाइस निहीं। बड़ खुशी लागय ओला के मोर मनखे ह बिहाव ले अपन नवा रद्दा निमेर लिस। कहूं अइसने देवता रइही त मोर जिनगी मां कोनों कोर कसर नइ खंगै।

फिरन्ता ल बिहाव बाद संकरी मां बंधाय असन लागय। ओह छुट्टा संडवा असन रहय। फेर ओह मोह के बंधना मां बंधागे रहय। दूध के जरे ह मही ल फूंक के पीथे। तइसने फिरन्ता ह बने रद्दा रेंगे, के मोर जोड़ी ह टोक झिन देवय के तैं ये कोन हिन्ता के रद्दा मां रेंगत हावस। फिरन्ता ह गुनय के मोंगरा ह मोर जोड़ी ये। सरप ह रेंगथे त टेड़गा मेंड़गा फेर अपन बिल मं सोझ होके खुसरथे। एकर बर बने इही होही के अपन बिहाता के जिनगी सुखी रहय कइके अपन चोरहा धन्धा ल लुक छिप के करे ला परही। आरो झिन मिलय मोर मोंगरा ला।मोर हाथ मां थोरको रुपिया सकला गे त नानमुन रोजगार धर लेहूं।
कहां जाथस गा अतेक बिहिनिया ले ?

अपन बूता मां।

तैं रोजेच बिहिनिया ले निकर जाथस अऊ बेर बूड़त ले तोर पता नइ रहय, मोर मन ह तोला देखे बर तरस जाथे।

कइसे करौं मोंगरा, बिन बूता के त नइ चलय। में इही मां लगे हावंव के थोरको रुपिया सकला जावय त नानकुन दुकान लगा लेतेंव, फेर मोर एती ओती के बुलाई ह सिरा जातिस।
ये त बने बात हे, तैं मोर गहना गुरिया ल गिरौ धर के रुपिया ले आन। बिहाव बर त अतेक गहना बनवाय फेर मांढ़े मांढ़े बाढ़ही त निहीं। रोजगार ह बाढ़ही त छुड़ा लेबोन।

तोर गहना ल रखे बिगर मेंह रुपिया लकेल डारहूं। तैं फिकर झिन कर, मेंह जात हवंव, बेरा ह चढ़त जात हे।

फिरन्ता बनउक गोठ ला मोंगरा ल कहय फेर ओखर मन ह ओला धिक्कारय, अपन जोड़ी ल अंधियार मां रखके कहां जाबे। फेर फिरन्ता ह अपन मन ल भुलवार लेवय कभू मोंगरा बर लुगरा त कभू बेंदा, त कभू लुरकी लान लान के देवय त मने मन ओला सुख मिलय।

मोंगरा ह बड़ सेवा करै अपन मनखे के। ओला फिरन्ता ह देउता असन लगै। ओखर मन ह कहय के बने रद्दा मां रेंगे लागिस त बनगे, नइ त ए जिनगी ह कइसे जातिस।

मनखे जब घर गिरस्ती के फेर मां फंस जाथे त मजबूरी ह ओखर नाथे असन सोझ रद्दा मां रेंगाय ल धर लेथे।

मोंगरा भगवान के असरा कइके संझा मंझनिया सुख के सपना देखय, के ओखर मनखे कुमार्गी रद्दा ल छोड़ के बने चाल चलही। ओखर बदी ह नेकी मं फिरबे करही। फेर ओला फिरन्ता के जुन्ना गोठ ह आगू आगू नाचे लगाय।

संकरी ह खटकिस। कोन ए ?

में आंव, खोल संकरी ल।

अइ । तोला का होगे, ओन्हा मन चिखला मं सनागे हावय।

कुछु नइ होय हे।

तोर मुख ले त मंद के बास ह आवत हे। तैं खराब चाल चलबे करबे तइसने लगथे।
चुप रह रे, बकर बकर झन कर।

मोंगरा ह जानगे के मंद के अधीन हवै, कोने बात के असर नइ होवय एखर उप्पर। वोह चुप्पे रइगे। फिरन्ता मांचा उप्पर परगे। ओखर आंखी ह झपागे रहय, ओह मंद के निसा मां सूतगे। मोंगरा ह ओला खाय ल गजब जगाइस। फेर ओह चेत नइ करिस। बिहिनियां जब सूत के उचिस त आंखी ह निच्चट लाली रहय। अउ मुंह ल बगार के जमुहाइ लेत रहय।

मोंगरा ह फिरन्ता ले रतिहा के बात नइ चलाइस। ओह अब यहू जानगे रहय के ओखर मनखे, जेन ल ओह देउता मान के बइठगे रिहिस, ओमा अभीले रकसा मन के चाल ह हमाय हावय। कइसे पार पाहूं। मेंह कुछु कइसे कहंव, काबर मन मोटाव होते हमर गिरस्ती ह चरमरा जाही।

फिरन्ता रतिहा के सुरता करके अपने उप्पर थूकत रहय। बड़ दिन ले त ओह डउकी मन असन लजावय अऊ मोंगरा ले बात करे मां डर्रावय घला, के मोंगरा ओ दिन के गोठ झिन निकारै।
क्रमशः

भाग - पन्द्रह



मंगलू ह कभू कभार आके मोंगरा के हाल चाल ले ल आवय, त मोंगरा ह कहय, में बड़ सुख मं हवंव भइया, तोर असीरवाद ले मोला कोनों दुख तकलीफ नइये।

मंगलू इही गोठ ल केतकी ल सुनावय। उहू मने मन गदगदा जावय, के मोर मोंगरा ह बने रइथे। बिहाव बाद ले फिरन्ता ह बने मनखे होगे हावय।

फिरन्ता अपन करिया जिनगी ल उजराय बर बड़ कोसिस करय। फेर ओमा परे दाग ह निच्चट रसगे रहय। चन्दा के दाग ह ओखर कलंकी के चिन्हारी आय। अइसने दाग के परते मनखे ह कलंकी कहाथे। फिरन्ता ह अपन निचहा धन्धा ल छोड़े बर बड़ कलकुत करय। फेर पइसा के मोह, अफीम गांजा के भक्कम कमइ पुचकार के राखे रहय। फेर ओमा ओखर बढ़ती नइ होइस। कभू अइसन बेरा आ जावय के घर के धान ह पयार मं मिल जावय।

मोंगरा ल खुस करे बर फिरन्ता ह किसम किसम के कोसिस करय। वोला यही डर लगय के ओला झिन सोर मिल पातिस मोर निचहा धन्धा के। मंगलू ले घला भेंट होवय त फिरन्ता ह परतीत देवाय के थोर दिन मां कोनों छुटपुट रोजगार धर के बइठ जाहूं। मोंगरा ल एकर पता नइच लागय।

मंगलू ह फिरन्ता के गोठ ल सुनके मने मन खुसी होवय अउ सोचै के मनखे मन गुनते रहिथें के हमर बढ़ोतरी होवय। फेर येला कोनो नइ जानय के हमर जिनगी मां कब बढ़ोतरी आही, अउ कब गिरे के दिन। एकरे ले सुख अउ दुख ल संगी कइथें। दुख के डबरा ह जब सुख के स्रोत लेथे, त मनखे ह सुख के स्वांसा लेथे, सोझ रद्दा नेंगथे। दुख के पहार ह जब्बे उप्पर टुटथे त ओह चरमरा जाथे, नेक अउ बद जम्मे ल भुला जाथे।

‘मेंह भटकत हावंव नउकरी बर अउ फिरन्ता ह बिलबिलावत हे सुघ्घर जिनगी बर। कहूं जीत त कहूं हार। मोर बांटा मां त हार ह परिस, फेर हिम्मत ह अभी ले नइच टुटिस हे।’

सोनिया ह मांचा मां पचगे रहय। अधपकवा ह बड़े जानी घाव होगे रहय। मांचा मां परे परे ओ फूल दिन दिन कुम्लावत जाय। फिरन्ता ह सोनिया के दवइ दारू मां मंगलू के मदत करत रिहिस। मोंगरा ह एक दू दिन के आड़ मां आके सोनिया ल देख जावय।

सोनिया के दवइ दारू ह बने चलत रहय। मंगलू के दिन ह वइसने रेंगत रहय। ओह रतिहा मांचा मं सुतै फेर बिहिनिया उसनिंधा असन दिखे। ओखर मूंड़ी उप्पर गिरस्ती के बवाल ह चढ़े रहय। कतको बेर फिरन्ता ह मंगलू के मदत करे बर कोसिस करिस फेर मंगलू ह मूंड़ी फेर लेवय। दुख दिन मां मनखे अपन कहइया मनले दुरिया जाथे। गरीब के संगी कोनों नइ बनै। फेर कोनो कोनो मनखे ह बढ़ मयारुख होथे। दूसर के दुख ल जानथे। ओमन दुख मां अपन पराया के चिन्हारी नइ राखंय। नता गोता के इही बेरा त पहिचान होथे। नता एखरे बर त जोरे जाथे के एक दूसर के दुख सुख के संगी बनय। फेर अइसन मनखे थोरके रइथें।
क्रमशः

भाग - सोलह


फिरन्ता ह बड़ दिन ले मंगलू के दुख पीरा ल अपन करेजा मां लुकाय ले रिहिस। फेर अब ओला सहउक नइच्च लगय। एखरे ले ओहा लुप छिप के जोर जारके मंगलू के मदत करय। मंगलू हू निहीं कहय फेर फिरन्ता ल रोकइ ओखर बस के बात नइ रिहिस।

एक दिन फिरन्ता ह महिना पुरती दार-चाउर लान के मंगलू घर मां डार दिस।

ए काय लाने हवस बाबू ?

कुछु नोहे भउजी !

त पोता मन मां काय भरे हावय ?

थोर थोर चाउर-दार लाने हवंव।

त टुरी ह घर मां नइये का, रख दे ओमन आहीं त अमरा दिहीं।

नइ भउजी ये त तुम्हर बर आय।

तैं कतेक साथ देबे हम कंगला मनके, हमर फुटहा तकदीर हावय न।

कइसे गोठियाथस ओ भउजी, दिन ल कोनों नइ जानंय। उन्खर त इहिच बूता आय रेंगना। दुख-सुख घला वइसने आंय। धीर धरे रहा तुम्हर दिन ह फिरही।

केतकी ह आंसू बोहावत खड़े रिहिस। फिरन्ता घला आंखी रमजत रेंग दिस।

अलकरहा दिन ह त मंगलू ल धरेच रिहिस। एक दिन फिरन्ता ह पाखा मां बड़े जान मोटरा ल दाबे मंगलू के घर मां नीगिस।

मोटरा ल मढ़ाइस त मंगलू ह किहिस – काये गा, मोंटरा मां ?

देख ले न गा।

तिहीं खोल न। मेंह नइ छुवंव।

मोटरा के छूटते मंगूल अउ केतकी अचरज मां परगे। ओमा जम्मो झिन बर नवा ओन्हा रहय। फिरन्ता ह बिसाके लाने रहय। ये मन मने मन सोचय के जात सगा मन हमन ल उजराय ओन्हा बर त चेंधबे करहीं। फेर नवा ओन्हा ह उन्कर आंखी फुटाय असन होही। काकर मुख मा तोबरा बांधबोन, जम्मो किहीं के फिरन्ता के कमइ ले यहू मन मंजा करत हवंय। मंगलू ह किहिस – अइसन काबर करथस बाबू, दिन ह गिरथे त भगवान ह पहिली मुख ल फिरो लेथे। तैं हमर मन के कब ले मदत करत रइबे ? करम मां जोन लिखा डारे हवन ओला त भोगना भाग हे।

इन्कर गोठ ल सुनके फिरन्ता चुपे रहय। फिरन्ता मां एक बात अउ रिहिस। जोन बूता ल करे, अपन मन ले। एक बेर वोह मोंगरा ले घला नइ पूछत रहय। ओह मोंगरा ले कभू ए नइ कहे रहय के आज मंगलू इहां ए पहुंचाय के वो।

मोंगरा ल थोर थोर जनउक होगे रहय के ओखर मनखे ह सोनिया के दवा दारू बर रुपिया देथे। वइसे एक दिन केतकी ह कहे रिहिस के बाबू ह हमर घर चाउर-दार पहुंचाए रिहिस। मेंह त बाबू ल कहि देय रेहेंव के सुख दुख त लगे रइथे, तैं हलाकान झिन होय कर।

भउजी के गोठ ल सुनके मोंगरा के मन ह फुलगे रहय। ओह किहिस – भउजी तुमन बर उन्हा जो करिन हवंय वो ह त मनखे के धरम आय।

मोंगरा ल चुप्पे करे बर ओहा फिरन्ता के बड़वारी करथय। मेंह अब ले नइ समझे सकेंव के मनखे मन ओकर हिन्ता काबर करत रहय। तहीं बता न, जबले तोर बिहाव होइस तब ले काय दुख मिलिस तोला। में कइथौं के बिहाव बाद ले ओह अपन चोला ल बदल डारे हावय।

मोंगरा ह कलेचुप्प रहय, कुछु नइ किहिस। केतकी ह जान डारिस के सही मां मोंगरा ह अराम ले हावय। वो असीस देइस के भगवान तो चूरी, टिकुली ल बनाय राखय। हमर जी ह बड़ सुख मानत हवै।
जात मां कोनो के बढ़ती होथे त ओमन ल एकरो फिकर चढ़ जाथे। काय सेती ले ओखर बढ़ोतरी होवत हवै। कोनों गिरे मनखे ह सम्हरथे त ओमन चउंक जाथें कि कइसे एखर दुख ह दुरियाइस। सोनिया के दवइ दारू अब रइपुर के बड़ सुजानिक होमेपेथी डाग्दर नसीने के होवत रिहिस। मंगलू केतकी घला नवा ओन्हा पहिरे लागिन। ए सब्बो ल देखके उन्खर मन मं लहुट-पहुट के फिरन्ता ह खेले। मन म आइस अउ गोहार परगे। जात के डउकी मन अपन परोसी ले काना फूसी कइके कहंय, अरे मंगलू ह एखरे बर त मोंगरा के बिहाव ल फिरन्ता संग करे हवय। वो ह चोरी ले लान लान के दारू के धन्धा करथे। ये ह हराम के कमइ आय, तभे त बिन दाई ददा कस उड़ावत हे पइसा ला। उही धन्धा मां अब मंगलू ल घला साझा कर ले हावय। ओ कोढ़िया ल एकर ले ऊंचहा बूता मिल नइ सकय।
क्रमशः

भाग - सत्रह



मनखे मन के इहीच गोठ चलत रहय। बेरा मां रामधन के पिछलग्गू मन ओखरो कान भरत रहयं, के अपन रुपिया ल उसूल करे बर हे त कछेरी मं लेग। जब्भे लीलाम होही तब्भे ओखर मुंदाय आंखी ह उघरही के दुनिया ह कोन मेर हावै। हमला त लागथे के फिरन्ता संग उहू चोरहा धन्धा मं लगगे। आज के दिन मं कोन ह फोकटू मां कखरो मदत करथे। फेर एक दिन आगू मां आबे करही। ए जम्मो गोठ ल मोंगरा के गजामूंग सोहागी ह घला सुनिस। ओह मोंगरा के घर कोती रेंग दिस।

कइसे ओ गजामूंग बड़ दिन मां सुरता करे ओ ?

मेंह ह सुरता करथौं तभे त बिन बलाय आ पारेंव।

कइसे ओ हमर भांटो ह त मंजा मां हावय।

हहो, तोर भांटो ह त मंजा मां हावय फेर मोर भांटो को हिन्ता ह सरी गांव के हाना असन होगे हावय। मोर जी ह नइच मानिस तभे त तोर मेर अय हावंव।

काय गोठ चलत हे तोर भांटो के, मोला त अभी ले सुनउक मां नइ आय हावय ?

बड़ अचरिज के गोठ आय, घर गोसइन ल त मालूम नइये फेर गांव वाला मन ला कइसे गम मिलगे !
कहिनी झिन सुना ओ बहिनी, काय सुने हस तोन ल बतिया !

कंकाली तरिया पानी लाने गे रेहेंव त पारा के डउकीमन गोठियावत रहय, के मोर भांटो ह दारू के चोरहा धन्धा ल करथे अउ उही कमइ ले घर चलाथे। फेर मंगलू भइया के मदत घला करथे।

में त अबले ये गोठ ल नइ सुने रहेंव वो, देख त ओ लबरा ह मोला आज ले नइ बताइस के ओहा काय बूता करथे। अउ ये धन दोगानी ल कोन मेर ले लानथे। मोर ले तो कहय के बूता करके पइसा सकेलत हावंव। फेर नानमुन रोजगार करहूं। राम-राम मेंह नइ जानत रेहेंव के ओहा कतेक गिरहा बूता करत हे। सरकार के दुसमन बनही। भइया घला ए ननजतिया संग काजर के कोठी मां हमाये बर उतियाय असन लागथे। उहू नइ बांचय तइसने लागथे।

अभू ओला चेत करा ले ओ गजामूंग नइ त करम मां हाथ धर के रोवइच हाथ लगही।

बने बता दे बहिनी, फेर नारी परानी के कतेक चलथे येला त तहूं जानत हावस।

बने हे, में जात हवंव, फेर आहूं।

मोंगरा ह फिरन्ता ले कुछु नइ पुछिस अउ नइ किहिस – फेर ओह सचेत होगे। फिरन्ता के देखते ओखर मन ह बमके फेर ओह अपन रिस ल दबा देवय। अउ अकेल्ला मां गुनय के ओ दिन ओह मंद मां माते घर आय रिहिस। आज ले कभू कभू मंद के महक ह ओखर मुख मां भभकथे। ए सब्बे काये, मोर बुध मां नइ चढ़य। भइया ला काय होगे हावय अतेक गरिबहा दिन ल भोगिस फेर आज ले ओखर नियत ह नइ बिगरे। ओह कइसे वोकर फांदा मं फंसगे। कइसे ए चोरहा धन्धा मां ओखर मन आगे।

मोंगरा ह मने मन गुनय फेर ओला कखरो ले कहय निहीं। फिरन्ता ह समझे के मोंगरा ल ओखर ले कोनो बद्दी नइये फेर मोंगरा ह पथरा धर ले रिहिस अपन करेजा मां। ओह मने मन तलफत रहय। नारी परानी के इही धरम ल त लेड़गा समाज ह बनाइस हे। ओह मया के देवी आय फेर ओह करु भाखा कइसे बोलय। डर, संकोच अउ लाज ह त नारी परानी मन के ओन्हा आय। तभे त मनखे दबोच डारथे ए मन ला।

फिरन्ता ह कभू त दिया-बाती के बेरा घर आवय त कभू पहर दू पहर रतिहा पहाय ले। फेर आज गजब रात ह पहागे फेर फिरन्ता ह नइ आइस। मोंगरा के जी ह धुकुर पुकुर करत रहय। ओला लगै के राज के दुसमन ह आज सपड़ागे। ओखर आंखी घला फड़फड़ावत रहय।

मोंगरा ह अपन मनखे के रद्दा देखत बइठे रहय। मन मां बने बिगरे विचार ह आवत जात रहय। काय होगे भगवान ? ओ ह अतेक बेर होगे आइस कइसे निहिं। कहूं संगवारी मन संग अनसहुक मंद ल त नइ ढ़कोल लिस, के चेत नइ होवय। हे भगवान मोर उप्पर दया कर ओला बने अक्कल दे, बने रद्दा मं रेंगय, मोला नून भात मिलय, मेंह सुख मानहूं। इज्जत के जिनगी जिअउक लागथे, अउ हिन्ता, हंसई के जिनगी नरक आय नरक। ओला अतके सोचे उप्पर धीर नइ बंधिस। आखरी मां मने मन किहिस – बिहनियां होते भइया मेंर जाके ओखर पता लगाय ल कइहौं। वो हा ओला खोज लानही। फेर ओला समझाहूं के रात के कइसनों घर आ जाय कर। एखर ले पारा परोस मां किसिम किसिम के गोठ चलथे।
क्रमशः

भाग - अट्ठारह



बादर के चन्देनी मन मइला गे रिहिन। जुम्मन घर के मुरगा ह बांग देत रहय। मोंगरा ह लकर धकर घर के संकरी ल देके मंगलू के घर कोती रेंगे ल धरिस त देखिस फिरन्ता ल हाथ मां बेड़ी डारे, दू झिन पुलुस वाला संकरी ल धरे हावंय। मोंगरा ह पीट लिस अपन मूंड़ी ल फेर कठवा के बनगे, ओखर मुख ले नइ भाखा फूटे अउ नही आंसू बरसे। आंखी ल उघरा नइ रखे सकिस, गदोरी ल मंडा लिस आंखी उप्पर।
बाई हमन तोर घर के खाना तलासी बर आय हवन। रतिहा फिरन्ता दारू बेचेके जुरुम मां धरागे हावय।
तुमन खाना तलासी लेहू ? कहां ले ले आनिस दारु ?

पुलुस वाला घर मां नींग के खाना तलासी लेन लगिन। घर के कोनों कोनहा हा नइच बांचिस उन्खर तलासी ले। फेर मिलिस कुछु नइ। मोंगरा माटी के पुतरी असन खड़े रिहिस। ओखर मूंड़ी ह किंजरत रहय। ओह जानय के पुलिस के गोड़ ह घर मं परगे, ये बने नोहे। दिन ह टेड़गा होवत हवय। हमर मन के इज्जत ल बचा दे गा भगवान। हमर इही गांव मां कतेक मान रहय। फेर दिन ह कुकुर गत कर दिस।

पुलुस वाला मन तलासी लेके रेंग दिन। फिरन्ता ह मूंड़ी ल निहुराय चल दिस, उन्कर पाछू पाछू।

सुरुज देवता ह बने चमचमात रिहिस। दुआरी के संकरी खुल्ला रिहिस। अउ मोंगरा ह अपन करम मां हाथ धरे बइठे रहय। ओह दुख मं भुलागे रहंय। ओतके बेर मंगलू ह हांफत हांफत मोंगरा के आगू मां आके ठाढ़ होगे। मोंगरा ह जइसने मंगलू ल देखिस चिचिया के रो डारिस। काय होगे भइया! मोर करम छड़ही के काय गत होवत जात हे।

रो झिन ओ मोंगरा दिन ह सब्बे आथे अउ रेंग देथे। हमन ला त भोगना हे, त डर्राव काबर।

तोला मालूम हवै, उनला पुलुस वाला धर के लाने रिहिन। घर के खाना तलासी लेइन हें। मोर आंखी ह फूट जातिस भइया, मेंह उनला अइसन दसा मां देखतेंव त निहीं।

काय करबे ओ नोनी । हमर करम ह फुटहा, भगवान ह गढ़िस हे। फिरन्ता ल जेहेल झिन होवय कइके हमला उकील लगाना भाग हे। थोरको रुपिया होवय त लान।

तें भोकवा होगे हस गा। में एक कउड़ी नइ देवंव। सरकार के दुसमन ल कइसे मदत देबे। तैं नइ जानस दारू के संग मां उनला पुलुस ह धरे हवय। अंगरा ल खाही त आगी जरुरेच उछरही। उकील लगाय के काम नइये। पाप केफल भोगना परही।

मंगलू ह मोंगरा के गोठ ल सुनके सन्न खागे। काटे त खून निहिं। ओह नइ जानत रहय के मोंगरा ह जम्मो गोठ ल जानत हवै। थोरुक रुक के मंगलू ह किहिस – बेरा ल झिन गवां ओ मोंगरा। झटकुन लान रुपिया। नइ त ओला जेहेल होइच जाही। में त कंगला होगेंव, मोर बस के त बात नइये।

मोंगरा ह तमतमा के किहिस – में नइ देवंव रुपिया। करनी के फल त मिलही। वो अपन होवय के आन।

मंगलू ह गजब बेर ले मोंगरा ल समझाइस। फेर मोंगरा ह नइच मानिस। मंगलू ह हार खाके रेंग दिस।
घाम ह भितिहा ले उतर के अंगना मं लोटत रहय। उहिंच्चे बाम्हन चिरइ ह फुदकत रहय। फेर मोंगरा के मन ह दहकत रहय। ओह आज अपन बस मां नइ रिहिस।

बेर ह बूड़त रहय। सूरज देउता दुनिया के सुख दुख के खबर लेके भगवान ल बताय ल उत्ता धुर्रा रेंग दिस। दिन ह बुड़गे।
क्रमशः

भाग - उन्नीस



केतकी ल खबर मिलिस के फिरन्ता ह गिरफ्तार होगे हे दारू बेचत मां पुलुस वाला ह धर लिस। वोह अपन करम ल पीट लिस। काय होगे मोर दाई, मोर बेटी ल गजब दुख परगे। आंसू ल चुचवात मोंगरा के घर मां पहुंचिस। मोंगरा ह अपन भउजी ल देखते चिचिया के रो डारिस। झिन रो ओ नोनी, हम करम-छड़हा मन के संगे तोर करम ह फुटगे। हमन जान सुनके तोला ए नरक मां डार दिएन।

कखरो कोनों दोस नइये भउजी। मेंह ह सुरू ले उनला समझावत रहेंव के ये निचहा रद्दा ल छांड़ दे फेर कोन ह काखर करम ल पढ़ सकथे। होनी हत कखरो रोके नइच रुकय। जइसे के संगत वइसने के सुख दुख।

बाबू ल छड़ा के लानबे करबोन। फेर आज तोर भइया ह बिहिनिया ले निकरे हे। अब ले ओखर पता नइये। ओला आन दे। तैं रो झिन।

में काय कर सकथौं भउजी, रोवइच ह त हाथ मं हे। भइया ह बिहिनिया आय रिहिस। उनला छुड़ाय बर रुपिया मांगिन त मेंह नइच्च देंव। तहीं बता न भउजी ओखर टकर ह परगे, अइसन निचहा बूता के। आज तैं छोड़ा लेबे त काय ओ ह बने रद्दा चले के कोसिस करही ? में ह त इही सोचे हावंव के करनी के फल त ओला मिलना चाही। तभे ओखर रद्दा ह बनही। में नइ चाहों के अपराधी के मदत करे जावय। में ह त अपन नता-गोता मन के इही गत करावब मं नइ हुचतेंव।

केतकी के कान ह ठड़ियागे। ओला नइ समझ परिस के मोंगरा ह अपन मनखे कोती ले आंखी मूंद लेही। कइसनो होवय ओखरे संग त ओला जिनगी पहाना हे। बिन मनखे के नारी के काय जिनगी। ओला किहिस, कइसे कहत हावस ओ नोनी ? फिरन्ता के जमानत जल्दी-जल्दी ले लेना चाही। अतेक पथरा झन बन, बिगरे चाल ह बने बन जाथे, फेर डउकी-डउका मं अंइठन परगे त जिनगी रोते पहाथे। रोज-रोज के किल-किल बाढ़थे। अरोसी परोसी मन घला एसन तमासा ल देखे मं सुख मानथें।

मोंगरा अपन भउजी के गोठ ल अनसुनउक कर दिस। केतकी ह खिसियाय असन चल दिस। मोंगरा ल अचरज लागिस के अतेक बेर के गोठ मां ओहा रुपिया के बात नइ चलाइस। कहां ले आनही रुपिया ? उन्खर दिन ह त अतेक दिन ले दुखे-दुख मां पहावत हे।

मोंगरा ह एहू ल समझे के नारी परानी ह गजब पानी वाली होथें अउ जोन मेंर उन्खर मनखे के बात ह जात होवय ओ मेंर त बिन आगू-पाछू सोचे मनखे के बात बर जीव ल घला दे देथें। फेर अपन मनखे के मूंड़ी ल नइ झुकन देवंय। केतकी ह मन मारके बइठे मंगलू के रद्दा देखत रहय, फेर अबले ओखर पत्ता नइच रहय। बीच-बीच मं ओह अंगना अउ दुआरी मां झांक आवय।

मंगलू ह बिहिनिया ले एती-ओती किंजरत रहय। ओखर दिमाग ह काम नइ देत रहय। बहिनी उप्पर अतेक बड़ दुख परिस अउ मोर ले कुछु नइ करत बनिस। घर उहू गिरो धर डारेंव, काय करंव भगवान ! मोर बहिनी उप्पर आय दुख ह टरतिस। फेर ओह त निच्चट कंगला होगे रहय। ओखर करे कुछु नइ होइस।

जम्मों के अलग जात होथे। अउ उन्खर समाज मेर जम्मो अधिकार रइथे। फेर जब उहू मन एके गुट हो जाथें त नेकी ह अपने ठौर रहि जाथे अउ बदी ह एती ओती किंदरथे। फिरन्ता जोन समाज मां निंगगे रिहिस वो फिरन्ता के संग देवत रहय। उनला आरो मिलिस के फिरन्ता ह पुलुस के फांदा मां फंसगे हावै। ओमन घळा बड़ दउड़िन-धुपिन, फेर जमानत ह नइ होय सकिस। दूसर दिन जमानत ह मंजूर होगे। फिरन्ता ह छूटगे।

मोंगरा ह दिया बारे भुतनी असन दुआरी मां बइठे रिहिस। फिरन्ता ल देखके ओला ओ खुसी नइ लगिस। ओह भितरी अइस। मोंगरा ह रंधनी मां जाके रांधे लगिस। फिरन्ता ल मोंगरा के बात नइ करइ ह खलगे। ओर खिसिया के किहिस – का ए मोंगरा ? तैं बोलस काबर निहीं। किरिया खा ले हस ओ ?
में ह एकर बर नइ कुछु कांही गोठियावत हवं के तोला अपन सफाइ झिन देय ला परय। मनखे एती ओती के किंजरइया होथें न तउने पायके वोह अपन ला बड़ा गियानी समझथें। अउ नारी परानी ह कुरिया मां खुसरे रइथें तउने ल तुमन समझ लथौ के ये मन लेड़गी होथें, इन्खर समझे के बुध नइ रहय।

फिरन्ता ह समझगे के अभी चुप्पे रहय मं बने आय। मोंगरा के मूंड़ी ह बने नइये। फिरन्ता ह रोटी खाइस अउ सूतगे।

बिहिनिया मोंगरा ह झटकुन उठके रांध डारे रहय। फिरन्ता ह घला नहा के ओन्हा पहिरत रहय।

कतेक बेर ओन्हा पहिरे मं लगही गा ? थारी ल परस देय हवंव।

मैं नइ खावंव, मोला भूख नइये।

चलना गा मोर ले रिस हे, अनाज ह तोर काय बिगारे हे ?

तैं जा, मैं कहि देय हावंव के नइ खावंव। मनखे ल अपन रिस ल अपने उप्पर उतारे बर चाहि। मोर काय कसूर हे के तैं मोर उप्पर रिस करथस।

हहो, तैं बने कइथस, कसूर त मोर हे। मेंह ह तोला भोरहा मां रखेंव। फेर मोंगरा का डउकी जात के ये धरम नइ होवय के दुख मां परे अपन मनखे के मदत करै ? जमानत बर अपन भइया ल नइ भेजे सकत रहे ? फेर सही आय के बिगरे दिन मां नता-गोता कोनों नइच पूछैं। फेर तैंह अपन धरम ल भुलवार देय, तेन बने नोहे।

मेंह धरम के रद्दा ल नइ भुलवारे हावंव तेखरे ले मेंह जमानत बर भइया ल रुपिया नइ देंव। मेंह नइ चाहौं के पाप के डारा ह फलै। जतेक जल्दी ओह मुर्झाय ओतके बने हे। भइया ल रुपिया में नइ देवं उहू ह रिसा के चल दिस।

बने केहे मोंगरा। मेंह तोला अब ले नइ समझे सकेंव।

फिरन्ता ह बाहिर रेंगे ल धरिस त मोंगरा ह किहिस – बिन खाय झिन जा गा। फेर फिरन्ता ह आगू बढ़िस। मोंगरा ह रो डारिस। चल न गा तोला मोरेच किरिया हावै। जिनगी बर खवइ ह जरूरी हवय भुखहा झिन रेंग।

फिरन्ता आगू नइ बढ़े सकिस। मोंगरा ह किरिया के पार ओला रोकेच लिस। फिरन्ता के मन ह खिलगे। लहुट के रंधनी भीतरी नींगगे। फिरन्ता ह पीढ़ा उप्पर बइठ के रोटी खावय। अउ मोंगरा ह एती-ओती के हंसउक गोठ ल निकार-निकार के हांसय। फिरन्ता घला मुस्कुरा देवय। रोटी जेंव के फिरन्ता ह मांचा उप्पर आ के सुतगे। संझा बेरा फिरन्ता सुत के उचिस तहां ले मोंगरा ह चहा बनाइस अउ फिरन्ता ल दिस। फिरन्ता के चहा पियत बेरा मोंगरा ह किहिस, सुनगा, मोर बात ह तोला बड़ खराब लागे होही। फेर रिस झिनकर। मोरो मन गुनथे के जइसे जम्मो डउकी मन अपन मनखे के बढ़वारी करथें, महूं करे सकंव। उन्खर आघू मोला मूंड़ी झिन नवाय ल परय। फेर अब ले जोन होइस तेखर गम नइये। ओ निखिद धन्धा ल छोड़ दे, इही मां हम दूनों के जिनगी बनही। मेंह नइ चहौं के तोर गांव भर मां रोजेच नवा नवा किसिम के हिन्ता के गोठ चलय। में नइ सुने सकंव, मोर कान ह फुटहा असन हो जाथे। मोर मेंर जोन गहना गुरिया रखे हे तेला बेंच डार अउ नानमुन केराना के दुकान इही गांव मं लगा ले। जेकर ले तोरो मन ह बिल में रिही। ए राज के निचहा रोजगार करइया ले कोनों मनखे खुस नइ रहे सकयं।

अइसने गोठ के चलते-चलत मोंगरा ह अपन मन के बात कहि डारिस। फिरन्ता ह सुर देके सुनत रहय अउ मने मन अपन बिगरइ के लच्छन उप्पर रोवत रहय, के ओला मनखे कहाय के कोनो जोर नइये। मोंगरा के बात हा गांठ बांधे के हे, सही मां ओह मोरे बर कहिथे। भगवान सहारा देतिस त मेंह मोंगरा के मन के बात ल पूर कर देतेंव।
क्रमशः

भाग - बीस

सोनिया ह अब निचट दुबरागे। एती ओखर इलाज ह ठीक ले नइ होय पावत रहय। फिरन्ता ह अपन जिनगी के फिकिर मां लगे रहय। फेर जेहेल ले छूटे के बाद ले ओखर रोजगार ह ठप्प परगे रहय। बिन दवा-दारू के कब ले सोनिया ह रोग ले जुझतिस। देह भर मां हाड़ा हाड़ा दिखत रहय। ओ टुरी ल देखते जी ह धक ले हो जाय। आंसू ह अपने आप आंखी ले निकरे लगय। ‘गरीबी के संगी दरिदरी’ तंगी ह बड़हर ल लील जाथे।

मंगलू अउ केतकी एक दिन छाती पीट-पीट के रहिगे। रोवइच ह हांथ आइस। सोनिया मरे नइ रहय तरगे रहय। ओला कतेक तकलीफ रहय, उही ह जानत रहय। सोनिया के मरे ले एक घाव बनगे उन्खर दुख के दिन मां। मंगलू के करेजा ह चिरागे। ओला ये दुख ह कुरेदै के बाप कहाय के मोला हक नइये। तभे त ओ नानिक टुरी ह बिन दवा दारू के फौउत होगे।

केतकी ह बही असन होगे रहय। अतेक बड़ सेये पाले टुरी...। रोवइ के मारे ओखर आंखी ह फुलगे, निच्चट अंधराय असन होगे।

फिरन्ता ह उन्खर दुख मां अइस फेर वाह रे गांव वाला अउ जात सगा। कोनों ओखर दुख के आंसू पोंछइया नइ बनिन। दुख के नदिया हा पूरागे रहय। फिरन्ता अउ मोंगरा ओखर दू पाट बनगे रहंय। पूरा मां बोहात मंगलू अउ केतकी ल अपन ओरा मां पोटार के गुनत रहंय।

समे के चाल ह चलते रिहिस। ओह कखरो दुख-सुख ल नइ देखे। रामधन ह नालिस कर दे रिहिस। कछेरी ल सम्मन आगे। अब त मंगलू के कनिहा टुटे असन लागिस। ओखर बुध ह काम मनइ करय, का करौं ?

एती फिरन्ता के खीसा हा खाली रहय। बिन पइसा के ओला बने नइच लागय। मोंगरा ल अंधियार मां राख के ओह उही गिरे धन्धा ल अपना लिस।

मंगलू के आगू अंधियार छागे रहय, के लागा ल कइसे छुटावंव। नइ जानंव अउ काय होही। में हार गेंव, हिम्मत निहिं अपन जिनगी ले। अइसे लगथे के मेंह जिनगी भर इती-उती किंजरे बर जनम धरे रहेंव।
केतकी ह घला बक्क होगे रहय। ओला अब लागय के हमर गिरस्ती ह अउ नई रेंगे सकय। घर के एक्के ईंट ह सरकथे त मनखे कथैं के ये घर ह अब नइ बांचे। एखर दिन ह पुरागे हवय। वो ह रद रद ले गिरबे करही। जात सगा वाला मन के इही गोठ चलय। ओमन कहंय के मंगलू ह कोन मेर ले लान के लागा वाला ल रुपिया पटाही। देखत जावव घर ह लीलाम होबे करही। बइठे-बइठे खवइया के इही गत होथे।

मंगलू उप्पर दुख परत जाय। ओह रामधन ले भेंटिस अउ किहिस – भइया रामधन, मोर सेयपाले बेटी के फौउत होगे। मोर मन ह अन्ते-तन्ते किंजरत हे। तैं मोला चार महिना के मुहलत देते भइया, त मेंह ह थोर बहुत तोर लागा ल छुटातेंव। फेर रामधन ह मंगलू के बात ल नइच मानिस, अपन कानूनी कार्रवाइ ल चालू रखिस। अउ मंगलू ले किहिस – नइ जानंव कब तोर बबा मरही अउ बइला ह बिकहीं। में कब ले तोर रद्दा देखत रहौं। अब ले कानी कोड़ी नइ देय फेर बिन कछेरी चढ़े तैं लागा ल नइ टोरावस। काबर के तैं अब ले नंगरा के नंगरा बने हावस।

मंगलू के कान ह तीपगे। ओखर मन ह किहिस ‘गरीबी जिनगी के दुसमन आय आज के दिन मां बिन पइसा के कुछु नइये मनखे ले बड़हर पइसा...।’
क्रमशः

भाग - इक्कीस



चोरहा के हांका सरी दुनिया पारथे। फेर चोरहा के मन ल कोनो नइ समझे के कोसिस करयं। के चोरहा बनिस काबर ? चोरहा के टकर परगे। उही ओखर बूता हे ? फेर काबर चोरी करथे तेला कोनो नइ गुनय। जेखर दिन हा बिगर जाथे संगी मन के बुध मां चल के अपन चाल ल बिगार देथें। फिरन्ता मोंगरा ल बचन देय के बाद फेर उही धन्धा ल पोटार ले रिहिस। करतिस का फिरन्ता ह। बिन दाई ददा के, आज ले जात सगा मन तिरिया दे रिहिन। ओखर कोनो त संग नइ देइन। मोंगरा संग देथे। कतको बेर किहिस के मोर गहना ल बेंचके कुछु रोजगार कर ले। फेर फिरन्ता ल दे बने नइ लगिस के में डउकी जात के आगू मूंड़ी झुकावंव। फिरन्ता ह नउकरी के चक्कर मां किंजरिस। फेर चोरहा ल कोन नइ जानय। कोन ह ‘आंखी रहत मांखी ल खाहीं’। फेर एके रद्दा बांचगे। मिलगे अपन जुन्ना संगवारी मन ले।
एक दिन फिरन्ता ह लकर धकर घर मां खुसरिस त मोंगरा हड़बड़ा के देखिस, ओखऱ मनखे ह हाथ मां रुपिया खनकावत ठाढ़े रहय।

कसगा, बड़ खुसी दिखथस।

बूता मां लगगेंव न ओ, दू रुपिया रोजी मिलथे, एले ग्यारा ठिन रुपिया।

मोर जी ह जुड़ागे गा। तोला जोन बने बूता लगे उही ल कर। धीर ले अपने आप रद्दा बन जाथे।

हहो ओ मोंगरा फेर गांव वाला मन त जोन नहिं तोन मेंर नरियात फिरथें के मेंह जेहेल काटे हावंव, चोरहा कइथे ओमन।

ले कुछु नइ होवय। तैं बने रद्दा रेंगबे त मनखे नहि त भगवान ह तोर संग देबे करही।

ले चल रोटी खाले फेर गोठियाबोन।

दूनो झिन रोटी खाइन मोंगरा ह रंधनी लीपत-पोतत रहय अउ फिरन्ता ह आघू के सोचत मांचा मां परे रहय। मोंगरा के मन ह घला खेलत रहय। ओखर दिन ह अब सैतुक बदलही, ओला कोनो नइ रोके सकय।
क्रमशः

भाग - बाइस



जग के इही रीत, कोनों उजरथे. कोनों बसथे, कोनों जीथे त कोनों मरत हे। मंगलू के दुख ओखरे करेजा ल छलनी कर दे रहय। मंगलू के जिनगी ले सुख बड़ अगुवागे रिहिस। मंगलू ह ओखर तीर नइ पहुंचे पावाय। दुख ह ओखर संगी, पत्थरा बनगे बेचारा ह। घर के पछीत ह त गिरगे रहय फेर दूसर बरसात मां एक कोनहा अउ बइठगे। दू ठिन कोठा बांचिन। मंगलू ह सोचे घर त निच्चट गिरउक होगे हे। कहूं दूनों कोठा भर भरागे त कहां जाहूं।

फेर घर हा गिरिस त निहीं, लीलाम के सरकारी हुकुम लेके रामधन ह धमक गे। मंगलू त नंगरा रहय, करमछड़हा के संगी कोनों नइ रहंय। दुख के घटइया त कोनों नइ रहय। दुख के बढ़इया गजब होगे राहयं। बोली बोलइयां मन बढ़-चढ़ के बोलत रहयं।

मंगलू अउ केतकी रद्दा उप्पर ठाढ़े अपन नोनी बाबू ल पोटारे रोवत रहयं।

मंगलू के घर के लीलामी होवत रहय। फिरन्ता ह बिहिनिया ले रइपुर चल दे रिहिस। मोंगरा ल एखर पता लगिस त भागत-भागत अइस। संग मां अपन जेवर-जांता घला ले आने रहय।

भइया ये ले गहना गुरिया कब काम आही। एखर ले एला बेच दे अउ अपन लागा ल छुटा। जोन घर में हम सुख-दुख दूनों देखेन, इहें खेलत-कूदत अतेक बड़ होएन, ओला लीलाम नइ होवन देन।

नइ ओ नोनी। में तोर गहना कइसे बेचिहौं। तोर बिहाव के बेर त एक कांसा के चूरा नइ बिसा के दैवं। फेर तोर गहना बेच के कहां जाहूं।

मोंगरा ह फफक-फफक रोवत रहय। उही मेंर केतकी ह घला आगे। उन्खर आंखी ह बरसत रहय। फेर मंगलू ह कोंदा मन असन बादर कोती देखत रहय। एक बेर मोंगरा के गहना कोती देखिस। फेर ओखर आंसू से डबडबाय आंखी बरबराय असन किहिस – नइ ओ मोंगरा तोर कहती नइ करे सकंव। अपन करनी ल महीं भुगतिहौं। तोरो दिन ह त बने नइ जावत हे। तोर मदत नई करे सकंव। फेर तोर मदत कइसे लेवंव।

मोंगरा ह मंगलू ल बड़ किहिस फेर मंगलू ह पथरा के होगे रहय। कोनों ह दूह हजार के बोली बोलिस। मंगलू के जीव ह अबक तबक हो जावय। फेर भोगतिस कोन। दिन ह गोड़ लमा के देखत रहय।

रइपुर ले फिरन्ता ह आइस त रद्दा मां पटेल ह मंगलू के घर के लीलामी के खभ्भर दिस। ओखर होस उड़ागे। भागत भागत आइस अउ भीड़ ल तितिर-बितिर करत घर के दुआरी मं पहुंचिस। उहां मंगलू ह मोंगरा ले कहत रहय – जिद झन कर ओ नोनी, दुख ह भोगे ले सिराथे। सहारा मिले ले ओखर दिन ह अउ बाढ़थे, फेर कम नइ होवय।

फिरन्ता ह इन्खर बीच मां जाके ठाढ़ होगे। ओह बेरा ल समझिस। फेर गहना के मोटरी ल उठाके जाय ल धरिस। अउ मोंगरा ले किहिस – मेंह रुपिया अभिच्चे लेके आवत हवं। घर ह लीलाम होवै अउ हमन देखत रहन, ये कभू नइ हो सके ओ... नइ हो सके।

मंगलू के चेत आइस – अइसे झिन करगा बाबू, गहना बेचे के कोनों जरूरत नइये; मनखे ह अपन बहिनी ल दान मां कोन-कोन जिनिस दे देथे अउ मेंह हिन्ता कराहूं टुरी के गहना ल बेचके। गहना नइ बिकही, घर ह बिकाथे त बिकावन दे।

फिरन्ता के हाड़ा मां लहू उत्ताधुर्रा दउरत रहय। मंगलू फेर किहिस – बाबू दे गहना ह आठ नौ सौ के होही, फेर मोर लागा ह ता बाढ़ के दू हजार होगे हे। एला बेंच के हम उध्धार नइ होवन।

ये गोठ ल सुनते फिरन्ता के मुड़ी ह चकराय असन लागिस। बइठ गे भुइयां मां।

मंगलू के घर ह दू हजार आठ कोरी मां लीलाम होगे। ओखर हाथ मां लागा के रुपिया छुटा के आठ कोरी आइस। फेर बसे के फिकर ह मुड़ी उप्पर सवार रहय। कहां जावंव ए गिरस्ती ल लेके ? मोंगरा अपन भइया अउ भउजी ल अपन घर राखे के सोचे। फिरन्ता ह किहिस घला। मंगलू अउ केतकी मोंगरा घर जाके रहे बर तियार नइ होइन।

उही पारा मां पांच रुपिया महीना केराया मां एक ठिन नानुक घर ल ले लिस मंगलू। अउ जिनगी के गाड़ी ह रेच्चक-पेच्चक फेर चले लागिस।
क्रमशः

भाग- तेइस



मनखे के हाथ ले जब आस के पतवार ह छूट जाथे त हैयरान होके सोचथे, के मोर जिनगी ह अबिरथा हे। कहुं में जनम लेके मर खप जातेंव त कतेक बने होतिस। फेर अइसन गोठ ह उही मन सोचथें, जिन्खर उप्पर गिरस्थी के बोझा ह नइ रहय। जेखर मूंड़ी मां ए बोझ ह धरे हावय ओह ए भार ले दबते जाथे। फेर अपन मन के गोठ ल कोनों ले नइच कहय। मंगलू के इही हाल रहय। मरतिस काय नहि करतिस। रोजी के फेर मां भटकत रहय।

केतकी मेंर बांचे रुपिया रहय। उही ले तंगी कर कर के घर के खर्चा ल चलावय। मंगलू ह रोजेच केतकी ल बोध करावय के आज कोनों बूता ह मिलबे करही। अउ संझा आवय त बिहिनया के उच्छाह ह सिकुर जावय। कहुं भगवान ओला गरीबी ले उबारतिस। त उहू समझे पातिस के जिनगी काला कइथें।

मोंगरा के गजामूंग ल घला आरो मिलिस के मोंगरा के भइया के घर ह लीलाम होगे हावय। अइसन दुख मां मोंगरा ल धीरज बंधाय ल गांव भर ले एक उही आइस। ‘काय करत हवस ओ मोंगरा ?’

कुछु नई ओ, कइसनों करके ये दुख के दिन ल बुलियारत हवंव। नइ जानवं कब ये दुख ह हमन ल छोड़ही।

मोहूला गजब दुख लागथे ओ। ये गोंटिया के आंखी ह फुटगे रहिस का। भइया उप्पर अतेक दिन ले दुख के बादर ह छाय हे, उहू ल त दिखथे। फेर काबर ओह भइया के घर ल लीलाम करा दिस?

कोनो के दोस नइए ओ बहिनी। हमर मन के करम ह फुटहा हे, त देखइया के काय दोस ?

भांटो ह कइसे हे ओ ?

ओखरो मन के बात ल कोनों नइ जानय ओ। काय करथे समझ नइ परय। फेर ओह चोरहा धन्धा ल छोड़ दिस इही समझ मां आथे।

तैं ह भोरहा मां झन रहिबे। ओर-सोर लेत रहेकर। परन दिन ठेठवार के डउकी ह कहत रिहिस, के भांटो ले ठेठवार ह चरस बिसाय रिहिस। सिरतोन हे लबारी एलामें नइ जानवं। फेर सजग रइबे।

ओह त किरिया खाय हवै के फेर कभू ए चोरहा काम ल नइच करहूं कइके।

डउका जात के काय भरोसा ओ, कइथे कुछु अउ, करहीं मनके। तोला भुलवार दिस हे ओ, भांटो हा।

सोहागी के बात सही के झूठ मोंगरा ह नइ गुने सकिस। ओह अपने मन के बात ल सोचे सकिस। परतीत हा ओला पोटार लिस ओरी मां। फेर अपन मनखे ले पुछे के बल ह नइ रहय। मोंगरा ह सहीं बात ल जाने बर सजग होगे रहय।
क्रमशः

भाग - चौबीस



चिखला कांदा मां पथरा फेंकइया उप्पर छिट्टा परेच जाथे। मनखे ह बचे बर कुघरा उड़ाथे। उही कुघरा ले ओखरे आंखी ह करकथे। कुकर्मी ह अघुवा के आथे फेर मनखे के मूंड़ी ह नव जाथे, अपन करनी ले।
मंगलू ह जानत रहय के फिरन्ता ह फेर जुन्ना रद्दा ल पोटार ले हावय। ओह केतकी ले किहिस अउ नइ मोंगरा ले। एक दिन अकेल्ला मां फिरन्ता ल गजब समझाइस। फिरन्ता हहो किहिस। फेर हहो कहइ हा सहीं रिहिस के भुलवारे बर। पानी मां रुख ह जामत रहय। फेर जर के अत्ता-पत्ता नइ रहय। फिरन्ता ह अइसन रुख के डारा मं चढ़के मने मन गुनय के अब दिन ह हरियाही। अब सम्हरगे। गिरस्ती के रद्दा बने चलही।

एक दिन रतिहा फिरन्ता ह बड़ बेर के आइस। मोंगरा हा खाय ल परोसिस। खा-पी के सूतगे, दूनों। रतिहा मोंगरा के नींद ह खुलगे। मोंगरा ह उठिस अउ फिरन्ता के कुरथा के खीसा ल टमरिस। जी ह धक्क ले होगिस। रुपिया के गड्डी अउ एक पुरिया मां करिया-करिया गोटा असन लपटे रहय। मोंगरा ह समझगे के गिरे मनखे के मन ह कब काय करथे अउ कइथे, तेला समझना मुस्कुल के बात आय। कइसन समझावंव एला ?

रात ह मोंगरा के आंखी मां पहागे। बिहिनिया उचके चहा पानी बनाइस। तहां ले फिरन्ता ल उचाइस।
उचना गा। बेरा ह चढ़गे हे।

सूतन दे न ओ।

ले उच्च, चहा बना ले हवंव, जुड़ा जाही।

ले चल में आवत हावंव।

मुंह हाथ धोके फिरन्ता ह रंधनी मां गिस। मोंगरा ह गिलास मां चहा ढार के दिस। फिरन्ता ह चहा पियत रहय ओतके बेर मोंगरा किहिस – कसगा, तोर खीसा मां लोट के गड्डी कहां ले आइस ? तैं काबर दुसरा के रुपिया ल धरे रइथस। कहूं इत्ती-ओती हो जाही त कहां ले भरबे ?

फिरन्ता के चहा के घूट ह फुलका गे। हड़बड़ के मारे ओला समझत देर नइ लागिस के मोंगरा हा खाली रुपिया नइ देखे होही। हफीम घला संगे-संगे रखे हावै। मोर मुख ह करिया होगे। मोंगरा ल में सुख नइ देय सकंव। किहिस, मेंह तोर ले झूठ कहे रहेंव वो मोंगरा। फेर करंव का नउकरी त कोनों नइ मिलय। जिनगी ह कइसे चलही। उही रोजगार ह हलुक लागथे मोला।

मोंगरा के नीचू के भुइयां ह सरके असन लागिस। कतेक बेसरम होगे हे। अपने मुख ले अपन कुकर्म ल बतावत हे। वोह कहिस – देखगा मोला जियत देखे के कहूं गुनथस त ए कुकर्म रोजगार ल छोड़ दे। नइत जहर माहुरा आन दे खाके सूत जाहूं। फेर जोन तोर मन मां आवय कर। फेर जियत ले त में तोर पीछे पड़ेच रइहौं। में नइ सुने सकवं के चोरहा कुकर्मी के डउकी आय। में भूख मरहूं तभू तोला नइ छोड़वं। फेर चोरहा के दुध, दही, घी ल खाके तोर संग नइ देवव। में मरेच जाहूं।अइसन जिनगी कोनों जिनगी आय। तैं त मनखे हवस, मजूरी मिलही त उही मां हमर इज्जत ह बनही। अउ पेट ह चलबे करही। मोर भइया ल देख कतेक बड़ दुख ओखर उप्पर परगे, फेर पांव ह नइ खिसलिस ओखर। कइसनों दुख-सुख के जिनगी ल खींचते हावय। धन दोगानी नइए त का होगे, इज्जत त नइ गंवाइन हें। पइसा के काय ए ओखर त किंजरना इही बूता आय। मोरो बात ल मान ले। मेंह हिन्ता के जिनगी ले उबगे हावंव। अभी तोर मंद के मामला ह चलते हे, जमानत मां हावस। फेर ये चोरहा रोजगार ल नइ छोड़े।

फिरन्ता ह मोंगरा के बात ल सुनके दंग रहिगे। चुप्पे बइठगे ओहा। काबर के बनउक बात ह ओखर भेद ल खोल दे रिहिस। बात करे के सब्बो रद्दा ह बन्द होगे राहय। मोंगरा फेर कहे लागिस – तैं काय सोचे ? मोर बात ल कान खोल के सुनले तोर आघू दू रद्दा हे। पहिली तोला ए कुकर्मी धन्धा ल नइच छोड़े बर हे त मंजा ले कर। में नइ टोंकवं। फेर अइसन मां तैं आगू चलके मोला निहिं मोर माटी ल पाबे। अउ दूसर के इमानदारी ले मिहनत करके पछीना गार के कोनों बूता करके चार पइसा कमा। फेर जोन नून-भात पुरही सुख ले खाबो। धीर ह मनखे के सबले बड़े जीत आय। काबर नइ लेग के बिकनस मोर गहना ला। कइथौं के कोनों नानकुन रोजगार करले। मोर गहना तोर नइए का, एमा काय लाज। फेर तैं त मोर बात ल नइ गुनस।

फिरन्ता मोंगरा के बात ल सुनत-सुनत कउवागे। ओहा किहिस – मोंगरा अब त चुप्प होजा, कतेक बखानबे। कइसे बतांव के में सम्हरे बर कतेक कोसिस करेंव। फेर पइसा के लोभ ह मोला सीधवा नइ बइठन दिस। फेर अब में ह तोर किरिया खाथौं के जबले बने चाल नइ चल के दिखाऊं तब ले तोला अपन मुख ल नइ दिखाहूं। फिरन्ता ह रेंगे ल धरिस। त मोंगरा ह ओखर गोड़ ल धरिस अउ कहत रहय – कइसे गोठियात हस गा, तोर बात ह मोर समझ मां नइ आवय।

फिरन्ता ह मुहाटी ले बाहिर होके किहिस – जान दे ओ, मेंह घर संसार मां रहिके ए पाप ल नइ धो सकंव। मोला वइसने बने बर हे जइसने तोर मन मां खेलथे। मनखे भगवान त नइ बने सकय। फेर मनखे ह मनखे त बन सकथे।

मोंगरा ह फिरन्ता के मुख उप्पर अपन गदौरी रख दिस अउ रोवत-रोवत किहिस – कइसे बइहा असन करथस गा, कोनों बात त धीर ले सोचना चाही। अउ धीर ले करके गुनना चाही। आंधी के बड़ ताकत होथे, फेर जिनगी थोरके बेर के रिस ह बनउक काम ल बिगाड़े देथे। चल भितर चल के बइठ। अब मेंह तोला कुछु नइ कहंव।

मोंगरा ह अपन मनखे के हाथ ल धर के झींकिस, फेर जवइया ल रोकना बड़ मुस्कुल खाथे। ओह अपन खीसा मां हाथ डारिस अउ लोट के गड्डी ल मोंगरा के अंचरा मां डारके किहिस – मोंगरा तोला मोरे किरिया हे, रोबे झिन। तैं रोबे त मेंह ठउर मां नइ पहुंचे पाहूं। अब बीच मां तलफत रहि जाहूं। मोर आय के रद्दा देखबे, मेंह रकसा ले मनखे बनके आहूं। फेर तोरो जी ह जुड़ा जाही।

मोंगरा ह रोवत रहिगे। अउ फिरन्ता ह चल दिस। काय होगे अतेक जल्दी मोंगरा ह समझे नइ पाइस। ओह ठगाय असन ठाढ़े रहिस। ओखर कान मां फिरन्ता के भाखा ह गूंजे, मोर आय के रद्दा देखबे ओ मोंगरा, मैं आहूं।

मोंगरा ह सपना मां नइ सोचे सहय के मोर मनखे ल बात बान असन लागही। कतको बेर त मेंह कहे रहेंव तोर ये चाल ह बने नो हे। ए चोरहा रोजगार ल छोड़। फेर अब ले त नइच माने रहय मोर बात ल। आजेच का होगे ओला। वोह मने मन पछतात रहय के मेंह ओला उत्ता धुर्रा बकतेंव निहिं त ओर कभू नइ जातिस। कोन जाने कहां चल दिस। काय करही अउ कब लहुट के आही। मनखे ले त नारी परानी के जिनगी हे। उही त ओखर सन्सार हे। बिन मनखे के डउकी मन के जिनगी ह सुन्ना लागथे। काखर मेंर जाके अपन दुख ल गोठियावंव। घर मा भितिया अउ अकेल्ला मं। काय करे के गुने रहैंव अउ हो का गे। डोकरा मन सही कइथें, के बिगरे ला दुदकार के कोनों नइ सुधारे सकयं। पियार ले सुधरथें। ओला मेंह पियार त करत रहांव। फेर नइ जानंव कइसे मोर मुख ले आनी बानी के गोठ ह निकलेच गे। जम्मो गोठ ह लहुट पहुट के मोंगरा के मन मां आवंय जावंय। फेर जी ह भभकगे ओखर। गजब बेर ले फफक-फफक के रो डारिस।
क्रमशः

भाग - पच्चीस


दिन आइस अउ रेंग दिस। फेर फिरन्ता ह नइच लहुटिस। मोंगरा ह घर ले बाहिर नइ निकरिस। घर मां खुसरे-खुसरे ओखर मन ह भड़भड़गे। घर ह अकेल्ला मां काटे असन लागय। मने मन सोचिस के भइया भउजी के आगू जाके अपन दुख ल कहौं। ओतखे बेर फिरन्ता के बात के सुरता आगे, रोबे झिन ओ मोंगरा, रोबे त अधा बीच मां भटक जाहूं। में मनखे नइ बने पाहूं। मोंगरा के पांव ठिठकगे। ओह नइ जाय पाइस।

बड़ दिन होगे रहय मोंगरा ल देखे। केतकी ह अपन मने ले किहिस। चल न आज टुरील देख आवन। गजब दिन होगे हे। मंगलू ल किहिस – हमर त अलकरहा दिन चलते हे अउ कुछू देय ले नइ सकन त सुख दुख के खब्बर त लेच सकथन। उहू कइसे ननजतिया के हाथ मां परगे हे।

मंगलू ह किहिस – बने हे चल चलबोन। समारू मेंर छोटका ल छोंड़ दे, खेलावत रइही। हमर आवत ले।

मोंगरा ह जब भइया भउजी ल अपन घर मां देखिस त ओह दउर के लिपट गिस केतकी ले। अउ रोय लागिस।

झिन रो वो। ये का रोवइ ये।

रोवन दे मोर भउजी। रोयले मोर जी के हउक ह निकरही। उबगेंव ओ अइसन जिनगी ले।

दिन ह टरबे करही रोगहा ह। कबले हमीं ओला मोहाय रहिबोन। ले चुपकर बाबू ह नइ दिखत हे रइपुर गे हे का ?

नइ ओ भउजी ओह घर ल छोड़के, मोला छोड़के चल दिस।

अइ काय होगे ओ ! ओ लबरा ल काय सूझगे !! बने रइतिस अपन घर गिरस्ती ल देखतिस। फेर काबर चल दिस ?

एक दिन ओखर खीसा ल मेंह टमर डारेंव। मेंह पहिली कभू त अतेक नइ सोचत रहेंव। मोर गजामूंग ह बइठे ल आय रिहिस त उही ह कहे के भांटो ह अब ले उही निचहा धन्धा ल करथे। मोला भरोसा नइच रहय, काबर के ओहा किरिया खाय रहिस के मेंह अब बने रद्दा मां रेंगहूं। फेर ओह मोला भुलवार के अपन रद्दा ला नइच छोड़िस। ओकर बात ले मोर आंखी त मुंदागे। फेर जग के आंखी ले ओह नइ बांचे सकिस। गजामूंग के बात ले मोर चेथी ह चढ़गे। अउ ओखर खीसा मं हफीन के पुरिया अउ नोट के गड्डी मोला मिलिस। ओखर हमर दू-दू बात होगे। फेर ओह कहिके चल दिस के मनखे बनके तोला मुख देखाहूं।

तें धीर धर ओ टुरी। कहां जाहीं। दू-चार दिन मां लहुट के आबे करही। तोर मन नइ लगय त हमार घर चल के रहिजा। बाबू ह आही त आ जाबे।

अभी रहन दे भउजी। दू-चार दिन देखथौं। फेर नइच आही त अकेल्ला इहां नइ रहि सकवं। तोर मेंर रइहूं।

बने हे, फेर तैं मन झन गिराबे। बाबू ह आही। उहू ह का करे बिचारा। बने रद्दा ल कइसे पातिस ओहा। जेखर कोनों रखवार नइ रहय त कबले वो हा झपावत रहय कंगाली मां। मनखे ल अपन जिनगी चलाय बर पइसा नइच मिलय त ओहा रपटे जाथे। पइसा के मोह मां। मनखे ओखर हिन्ता करथें फेर ओखर जड़ ल कोनो नइ समझयं।

मंगलू अब ले ननद-भउजई के गोठ ल सुनत बइठे रहय। केतकी के बात ल सुन के उहू चुप्पे नइ रहि सकिस। किहिस – मोंगरा, फिरन्ता ह नानुक बाबू नइये। अपन बिगरे बने ल उहू समझथे। ओखऱ आंखी ह उधरा होगे। में जानथंव के ओह इमानदारी ले रोटी चलाय के गुनके घर ल तियागे हावय। ओह अपन मन के बात ल पूर करके लहुटही।
मोंगरा ल समझा बुझा के, ये मन अपन घर रेंग दिन।

दिन उप्पर दिन पहात जावय। फेर फिरन्ता ह अब ले नइच लहुटे रहय। मंगलू घला ओखर पता लगावत रहय। फेर भेंट नइ होइस। पारा-परोस के मन घला कहयं के फिरन्ता के डउकी ह बड़ कलबांक हे। ओखर फटफटले भगागे हे बिचारा हा। दिन उप्पर दिन निकरत जावय फेर फिरन्ता के पता नइ चलिस। अब मोंगरा ल बड़ फिकर चढ़गे। ओखर बंधाय धीर ह बंधवा असन टूटगे। अउ आंसू ह पूरा कस बोहाय लगिस। ओह दुख मां बूड़गे। कभू मंगलू ल भेंटे तो पूछ डारय, कुछु पता लगिस। मंगलू ह मूंड़ी ल हला देय। मोंगरा ह अंचरा के आंसू पोछय अउ भितरा जावय।

दुख ले मनखे कउवा जाथे त ओला अकेल्ला रहे के मन चलथे। फेर ओला अकेल्ला उबाथे त अपन मन के मनखे मेंर बइठे के मन होते। ओह अपन संगी संगवारी ले भेंट करे के गुन के रेंग देथे।

मोंगरा ह एक दिन बेरा ह जब मूंड़ी उप्पर चल दे रहय त अपन गजामूंग सोहागी के घर गिस। मोंगरा ल आवत देख के सोहागी ह पोता ल दसा दिस।

आ ओ मोंगरा, बड़ दिन में सुरता करे ओ बहिनी ?

का करौं ओ अकेल्ला घर ह त कुकुर काटे असन लगथे। तोर मेंर दू-चार घड़ी बइठ जाहूं त मन ल बने लगही।

बने करे ओ आगे त। कस ओ भांटो कहां चल दिस ? झगरा कर डारे का ?

नइ ओ गजामूंग, तैं मोला ओखर बात ल बताय रहे न, मेंह देख पारेंव ओखर खीसा ल। सहिंच मां हफीन रहय ओ ओमा। ओखरे ले दू-चार बात ओखरे बने बर कहेंव। फेर ओ मोर कहइ हा ओला बान असन लागिस। कहि के गे हे, मनखे बन के आहू, मोर रद्दा देखबे।

त अकेल्ला काबर रइथस ओ, अपन भइया भउजी मेंर काबर नइ रहस। मोटियारी डउकी के अकेल्ला रहना बने नइये।

भइया भउजी के दिन ह त बड़ दुख ले निकरत हावंय ओ। महूं उन्खर संग रहि जाहूं त बने नइये।
तुमन के दुख ल देख के मोर करेजा ह फाटथे ओ। लबरा भगवान के आंखी घला मुंदाय असन लागथे।
कोन कहाय अउ काय कहाय। भांटो ह कहां गे ओ ?

अइ बने सुरता कराय ओ। सुन त, तुम्हरो मन के दू एकर खेत हावय न।
हहो, हावय त।

त ओमा किसानी काबर नइ करय तोर भइया ह ?

किसानी सेंत मेंत मां नइ होवय ओ, उहू मां पइसा लागथे। भइया ह त पेटे ल नइ चलाय पावय त खेत बर रुपिया कोन मेंर ले लाही।

रुपिया के किसान मन ल फिकर करे के जरूरत नइये। हमर घर वाला बतात रहिस, के हमर राजा जवाहिर लाल ह लेढ़ियो मां कहे हे के जम्मो गांव के बढ़ोतरी करव। अन्न के पइदावारी ल बढ़ावो। सरकार ह गांव के अउ खेती के बढ़ोतरी बर रुपिया दिही। फेर किसान ह सरकार के रुपिया ल धीर ले पटा दिही।

त बने बनतिस ओ गजामूंग। मोर भइया के दिन ह बदल जातिस। जवांरा बोवा देतें ओ बहिनी। मोर भइया ह सुख ले रइतिस।

बने हे तैं संझा अपन भइया ल भेजबे। तोर भांटो ह सब्बो गोठ ल ओला बता दिही। बनही त सरकारी रुपिया घला देवा दिही।

बने बताय ओ। मोर आधा दुख ह त भगागे। मेंह अभी भइया मेंर जावत हवंव।
क्रमशः

भाग - छब्बीस



मोंगरा ह रद्दा मां जावत-जावत सोचे, मोर भइया ह सुख के देखनी बर तरस गे। कतेक दुख ल भगवान ह खपल दिस ओकर मूंड़ी उप्पर। ददा ह कतेक आस ल बांध डारे रहय। मंगलू ह पढ़ लिख के साहेब बनही। गांव के गौंटिया के मान त ओला मिलय। फेर साहेब के ददा कहाय के बड़े साध रहय ओला। अपन जियत ले भइया ल कभू कोनो जिनिस के कमी नइ होवन दिस। इही दुनिया के संसो ह दाई ल खा डारिस। अउ दाई के मरे ले ददा ह अपन जिनगी ल बाराबांट कर डारिस। फेर दू साल सरलग अकाल नइ परतिस त ओखर उप्पर लागा नइ होतिस। फेर उही जम्मो साध ल धरे धरे भगवान घर चल दिस। अउ दुख अउ तकलीफ सहे बर भइया ह बने कालाहंडी के नउकरी ल छोड़के घर आगे। ये सब सोचत सोचत अपन भइया घर मां आगे।

काय पीसत हावस भउजी।

आमा के चटनी त आय वो, दार ह सिरागे हावय। तोर भइया रइपुर गे हे त कहे रहेंव दार बर। फेर अब ले ओखर आय के बेरा नइ होय हावय।

ले काय होगे नइ आइस त। रइपुर मां कोनो नउकरी के खोज खब्बर लेवत होही। कस ओ भउजी, हमर मन के खेत ह त हावै फेर काबर हमन दुख ला नइ दुरिहा देन। भइया संग हमू मन कमाबोन त कइसे हमर दिन ह नइ फिरही।

बने त कइथस ओ नोनी, फेर खेतिहर ल घला रुपिया के जरूरत परथे। कहूं रुपिया होतिस त अतेक दुख नइ सहितेन ओ। नइ खेत ह परिया परे रतिस अउ नइ मोर पाले वोतेक बड़ टुरी ह हाथ ले बेहात होतिस।

रो झिन ओ भउजी, सोनिया ह हमर तकदीर ले उठगे राहय।

एही ल सोचके त मन ल धीर बंधाय हवंव, नइ कबके मर खप जातेंव।

ले छोड़ वो रोनहुक गोठ ला।

फेर तोर मन ह कइसे डोलगे ओ। बाबू के अब ले कोनों अत्ता-पत्ता नइ लगे हे।

लागबे करही ओ भउजी। मोर मन ह कइथे के देर ले आही फेर अबेर नइ करही।

भगवान ह तो मन के बात ल पूरा कर देतिस। तहूं बने रहिते त हमरो दुख ह बिसरे रइतिस।

ले छोड़ न ओ ए गोठ ल। मेंह आये हवंव जिनगी के नवा रद्दा रेंगे के संदेस लेके अउ तैंहा मोला आनी बानी के गोठ मा भुलवारत हावस।

काय नवा रद्दा हे ओ।

ले सुन मोर गजामूंग ल त तैं जानथस न। उही मोला बताय हे के हमर राज के सरकार ह खेतिहर किसान मन ल खेती करे बर बीज अउ गोरु बर रुपिया देय के जोजना बनाय हवय। हमरौ त खेत हे, हमु मन त जुन्ना खेतिहर हावन। भइया ह आही त बेरा के बूड़त ले ओला गजामूंग घर भेजबे। भांटो ह सब्बो बात ल ओला समझा दिही।

मोर त समझ मां तोर बात ह नइच आइस। सरकार ल काय परे हावय के किसान मन ल रुपिया दिही। लगान त उत्ताधुर्रा बढ़ा डारे हावय। कतको किसान मन त सरकार ल अउ जवाहिरलाल ल अब ले बखानथें। कुछु नइ होवय बखनइया मन ले। उन्खरौ बखाने के काम हे। हमर देश मां हमर राज, हमीं ओखर बढ़ोत्तरी के हकदार हावन, अउ बोरे के। सरकार ह जोन करथे बने गुनके।

ले टार तोर भाखन ला, तोर भइया आही त कहि देहूं।

त मेंह जात हावंव।

ले चना-मुर्रा खा ले फेर जाबे।

लान दे, तोर मंया ह त मोर दाई के सुरता ल भुलवार दे हे।

मोंगरा ह खा पी के अपन घर चल दिस। घर मां आज के अकेल्ला रहइ ह ओला अउ खलत रहय। कहूं ओमन होतिस त ए नवा रद्दा के गोठ ल उनला सुनातेंव। ओखरो जी ह जुड़ातिस। कतेक दिन ले भइया ह दुख ल सहत अपन नोनी बाबू ल पोसते हावय। भगवान ह उन्खर सुनतिस त मोरो जी ह जुड़ातिस।
बेरा ह मूंड़ी उप्पर चढ़गे रहय। मंगलू ह कुछु गिरस्ती के समान ल मोटरी मां गंठियाय घर अमरिस। त केतकी ह रांध-रुंध के ओखर रद्दा देखत अंगना मां बइठे रहय।

कस गा, अतेक बेर कइसे कर देय ?

का बेर अउ का अबेर ओ। रइपुर के जवइ मां मन ह बिलम जाथे। अउ घर मां नींगते मूंड़ी उप्पर गिरस्ती के फिकर ह चढ़ जाथे ओ।

बने त गुनथस गा, कतेक फिकर करबे। जिनगी ह त दुखे दुख पहागे। आज मोंगरा आय रिहिस।
फिरन्ता ल पूछे बर आय होही।

हहो, फेर एक गोठ अउ चलागे हे, हमर जिनगी के हंसउक बर।

काय गोठ ओ ?

टुरी ह कहत रिहिस के हमर रइपुरा मां सरकार ह विकास जोजना के दबतर खोलइया हावै। जौन ह खेतिहर केसान मन ल खेती के बढ़ोत्तरी बर रुपिया पइसा के मदत करही।

त हमर मन के काय भला होही।

तोर चेत ह गंवागे हे गा। हमरो त दू एकर खेत ह हवै। फेर हमन त जुन्ना केसान हवन गा।
हहो ओ बने त कइथस। मेंह किसानी बर अतेक पढ़े लिखे हावंव। मोर ददा ह जियत रइतिस त चार थपरा मारतिस मोला अउ कइतिस, कस रे, मेंह तोला इही किसानी करे बर अतका पढ़ाए रहेंव। तोला सुरता त होही ओ, के ओह मोला साहेब बनाय बर अतेक मनुहा केपढ़े ल रइपुर भेजय। एक छकड़ा मोर बर दिन भर रइपुर मां परे राखय। मोला किसानी करत देख के परलोक मां ओखर जी ह दुख नइ पाही ओ।

बने कइथस गा, समारु के ददा। तोर पढ़इ ह त बने हे, फेर पढ़इ ह काय करे सकिस। जम्मो झिन सुखा के कांटा असन हो गेन। सेय पाले टुरी ह बिन दवइ पानी के हाथ ले बेहाथ होगे। अउ त अउ एक ठिन बहिनी ओखरो जिनगी ह मांटी मां मिलगे।

त एमा पढ़इ के काय दोख हे। ये त हमर करनी आय। जइसे बोये रेहेन, तइसने त काटबोन।

ये बोवइ कटइ नोहे गा। ये ह अपने हाथ ले कुल्हारी मां अपने गोड़ ल कटइ आय। पढ़े मनखे त ओही आय जोन बेरा ल देख के बोझा उचाय मां घला नइ लजावै। मोर मन हा कइथे के एक दिन तैंह अपने हेकड़ी अउ तकदीर के फेर मां जम्मो झिन ल मांटी मां तोप डारबे। तभ्भे तोर आंखी ह खुलही। फेर तब के तोर कमइ त अविरथा आय। काकर बर कमइ करबे अउ खाही कोन।

मंगलू ह रो डारिस। केतकी के बान असन भाखा ल सुनके। अउ केतकी घला रो डारिस अतेक कठोर भाखा ल कहिके। दूनों ल सहउक नइ लागिस। एक-दूसर ल अपन कउरा मां पोटार के रोवत रहिन।

दुखहा त दूनों रहंय। फेर मन ह हलकाइस त मंगलू ह किहिस – मेंह तोर बात ला मानहुं ओ, अब अपन जोड़ी अउ नोनी बाबू ल तकलीफ मां नइ देखे सकवं। तुम्हरे मन ल देखके त बल बंधाथे ओ। नइ त जिनगी ह कबले मांटी मां मिलगे होतिस।

ले चुप्पे रहिगा। आनी बानी के गोठ ह बने नइ लागय।

त बता न मोंगरा ह काय केहे रिहिस ?

ओह कहे हे के भइया ल सोहागी के मनखे मेंर भेज देबे। ओह जम्मो गोठ ला समझा दिही।

बने हे में संझौती जाहूं। फेर अभी त पेट ह कुलबुलावत हे, चल न थारी परोस। मेंह मुंहु कान ल धो के आत हौं।
क्रमशः