Wednesday, May 2, 2007

भाग - छब्बीस



मोंगरा ह रद्दा मां जावत-जावत सोचे, मोर भइया ह सुख के देखनी बर तरस गे। कतेक दुख ल भगवान ह खपल दिस ओकर मूंड़ी उप्पर। ददा ह कतेक आस ल बांध डारे रहय। मंगलू ह पढ़ लिख के साहेब बनही। गांव के गौंटिया के मान त ओला मिलय। फेर साहेब के ददा कहाय के बड़े साध रहय ओला। अपन जियत ले भइया ल कभू कोनो जिनिस के कमी नइ होवन दिस। इही दुनिया के संसो ह दाई ल खा डारिस। अउ दाई के मरे ले ददा ह अपन जिनगी ल बाराबांट कर डारिस। फेर दू साल सरलग अकाल नइ परतिस त ओखर उप्पर लागा नइ होतिस। फेर उही जम्मो साध ल धरे धरे भगवान घर चल दिस। अउ दुख अउ तकलीफ सहे बर भइया ह बने कालाहंडी के नउकरी ल छोड़के घर आगे। ये सब सोचत सोचत अपन भइया घर मां आगे।

काय पीसत हावस भउजी।

आमा के चटनी त आय वो, दार ह सिरागे हावय। तोर भइया रइपुर गे हे त कहे रहेंव दार बर। फेर अब ले ओखर आय के बेरा नइ होय हावय।

ले काय होगे नइ आइस त। रइपुर मां कोनो नउकरी के खोज खब्बर लेवत होही। कस ओ भउजी, हमर मन के खेत ह त हावै फेर काबर हमन दुख ला नइ दुरिहा देन। भइया संग हमू मन कमाबोन त कइसे हमर दिन ह नइ फिरही।

बने त कइथस ओ नोनी, फेर खेतिहर ल घला रुपिया के जरूरत परथे। कहूं रुपिया होतिस त अतेक दुख नइ सहितेन ओ। नइ खेत ह परिया परे रतिस अउ नइ मोर पाले वोतेक बड़ टुरी ह हाथ ले बेहात होतिस।

रो झिन ओ भउजी, सोनिया ह हमर तकदीर ले उठगे राहय।

एही ल सोचके त मन ल धीर बंधाय हवंव, नइ कबके मर खप जातेंव।

ले छोड़ वो रोनहुक गोठ ला।

फेर तोर मन ह कइसे डोलगे ओ। बाबू के अब ले कोनों अत्ता-पत्ता नइ लगे हे।

लागबे करही ओ भउजी। मोर मन ह कइथे के देर ले आही फेर अबेर नइ करही।

भगवान ह तो मन के बात ल पूरा कर देतिस। तहूं बने रहिते त हमरो दुख ह बिसरे रइतिस।

ले छोड़ न ओ ए गोठ ल। मेंह आये हवंव जिनगी के नवा रद्दा रेंगे के संदेस लेके अउ तैंहा मोला आनी बानी के गोठ मा भुलवारत हावस।

काय नवा रद्दा हे ओ।

ले सुन मोर गजामूंग ल त तैं जानथस न। उही मोला बताय हे के हमर राज के सरकार ह खेतिहर किसान मन ल खेती करे बर बीज अउ गोरु बर रुपिया देय के जोजना बनाय हवय। हमरौ त खेत हे, हमु मन त जुन्ना खेतिहर हावन। भइया ह आही त बेरा के बूड़त ले ओला गजामूंग घर भेजबे। भांटो ह सब्बो बात ल ओला समझा दिही।

मोर त समझ मां तोर बात ह नइच आइस। सरकार ल काय परे हावय के किसान मन ल रुपिया दिही। लगान त उत्ताधुर्रा बढ़ा डारे हावय। कतको किसान मन त सरकार ल अउ जवाहिरलाल ल अब ले बखानथें। कुछु नइ होवय बखनइया मन ले। उन्खरौ बखाने के काम हे। हमर देश मां हमर राज, हमीं ओखर बढ़ोत्तरी के हकदार हावन, अउ बोरे के। सरकार ह जोन करथे बने गुनके।

ले टार तोर भाखन ला, तोर भइया आही त कहि देहूं।

त मेंह जात हावंव।

ले चना-मुर्रा खा ले फेर जाबे।

लान दे, तोर मंया ह त मोर दाई के सुरता ल भुलवार दे हे।

मोंगरा ह खा पी के अपन घर चल दिस। घर मां आज के अकेल्ला रहइ ह ओला अउ खलत रहय। कहूं ओमन होतिस त ए नवा रद्दा के गोठ ल उनला सुनातेंव। ओखरो जी ह जुड़ातिस। कतेक दिन ले भइया ह दुख ल सहत अपन नोनी बाबू ल पोसते हावय। भगवान ह उन्खर सुनतिस त मोरो जी ह जुड़ातिस।
बेरा ह मूंड़ी उप्पर चढ़गे रहय। मंगलू ह कुछु गिरस्ती के समान ल मोटरी मां गंठियाय घर अमरिस। त केतकी ह रांध-रुंध के ओखर रद्दा देखत अंगना मां बइठे रहय।

कस गा, अतेक बेर कइसे कर देय ?

का बेर अउ का अबेर ओ। रइपुर के जवइ मां मन ह बिलम जाथे। अउ घर मां नींगते मूंड़ी उप्पर गिरस्ती के फिकर ह चढ़ जाथे ओ।

बने त गुनथस गा, कतेक फिकर करबे। जिनगी ह त दुखे दुख पहागे। आज मोंगरा आय रिहिस।
फिरन्ता ल पूछे बर आय होही।

हहो, फेर एक गोठ अउ चलागे हे, हमर जिनगी के हंसउक बर।

काय गोठ ओ ?

टुरी ह कहत रिहिस के हमर रइपुरा मां सरकार ह विकास जोजना के दबतर खोलइया हावै। जौन ह खेतिहर केसान मन ल खेती के बढ़ोत्तरी बर रुपिया पइसा के मदत करही।

त हमर मन के काय भला होही।

तोर चेत ह गंवागे हे गा। हमरो त दू एकर खेत ह हवै। फेर हमन त जुन्ना केसान हवन गा।
हहो ओ बने त कइथस। मेंह किसानी बर अतेक पढ़े लिखे हावंव। मोर ददा ह जियत रइतिस त चार थपरा मारतिस मोला अउ कइतिस, कस रे, मेंह तोला इही किसानी करे बर अतका पढ़ाए रहेंव। तोला सुरता त होही ओ, के ओह मोला साहेब बनाय बर अतेक मनुहा केपढ़े ल रइपुर भेजय। एक छकड़ा मोर बर दिन भर रइपुर मां परे राखय। मोला किसानी करत देख के परलोक मां ओखर जी ह दुख नइ पाही ओ।

बने कइथस गा, समारु के ददा। तोर पढ़इ ह त बने हे, फेर पढ़इ ह काय करे सकिस। जम्मो झिन सुखा के कांटा असन हो गेन। सेय पाले टुरी ह बिन दवइ पानी के हाथ ले बेहाथ होगे। अउ त अउ एक ठिन बहिनी ओखरो जिनगी ह मांटी मां मिलगे।

त एमा पढ़इ के काय दोख हे। ये त हमर करनी आय। जइसे बोये रेहेन, तइसने त काटबोन।

ये बोवइ कटइ नोहे गा। ये ह अपने हाथ ले कुल्हारी मां अपने गोड़ ल कटइ आय। पढ़े मनखे त ओही आय जोन बेरा ल देख के बोझा उचाय मां घला नइ लजावै। मोर मन हा कइथे के एक दिन तैंह अपने हेकड़ी अउ तकदीर के फेर मां जम्मो झिन ल मांटी मां तोप डारबे। तभ्भे तोर आंखी ह खुलही। फेर तब के तोर कमइ त अविरथा आय। काकर बर कमइ करबे अउ खाही कोन।

मंगलू ह रो डारिस। केतकी के बान असन भाखा ल सुनके। अउ केतकी घला रो डारिस अतेक कठोर भाखा ल कहिके। दूनों ल सहउक नइ लागिस। एक-दूसर ल अपन कउरा मां पोटार के रोवत रहिन।

दुखहा त दूनों रहंय। फेर मन ह हलकाइस त मंगलू ह किहिस – मेंह तोर बात ला मानहुं ओ, अब अपन जोड़ी अउ नोनी बाबू ल तकलीफ मां नइ देखे सकवं। तुम्हरे मन ल देखके त बल बंधाथे ओ। नइ त जिनगी ह कबले मांटी मां मिलगे होतिस।

ले चुप्पे रहिगा। आनी बानी के गोठ ह बने नइ लागय।

त बता न मोंगरा ह काय केहे रिहिस ?

ओह कहे हे के भइया ल सोहागी के मनखे मेंर भेज देबे। ओह जम्मो गोठ ला समझा दिही।

बने हे में संझौती जाहूं। फेर अभी त पेट ह कुलबुलावत हे, चल न थारी परोस। मेंह मुंहु कान ल धो के आत हौं।
क्रमशः

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