Wednesday, May 2, 2007

भाग - उन्नीस



केतकी ल खबर मिलिस के फिरन्ता ह गिरफ्तार होगे हे दारू बेचत मां पुलुस वाला ह धर लिस। वोह अपन करम ल पीट लिस। काय होगे मोर दाई, मोर बेटी ल गजब दुख परगे। आंसू ल चुचवात मोंगरा के घर मां पहुंचिस। मोंगरा ह अपन भउजी ल देखते चिचिया के रो डारिस। झिन रो ओ नोनी, हम करम-छड़हा मन के संगे तोर करम ह फुटगे। हमन जान सुनके तोला ए नरक मां डार दिएन।

कखरो कोनों दोस नइये भउजी। मेंह ह सुरू ले उनला समझावत रहेंव के ये निचहा रद्दा ल छांड़ दे फेर कोन ह काखर करम ल पढ़ सकथे। होनी हत कखरो रोके नइच रुकय। जइसे के संगत वइसने के सुख दुख।

बाबू ल छड़ा के लानबे करबोन। फेर आज तोर भइया ह बिहिनिया ले निकरे हे। अब ले ओखर पता नइये। ओला आन दे। तैं रो झिन।

में काय कर सकथौं भउजी, रोवइच ह त हाथ मं हे। भइया ह बिहिनिया आय रिहिस। उनला छुड़ाय बर रुपिया मांगिन त मेंह नइच्च देंव। तहीं बता न भउजी ओखर टकर ह परगे, अइसन निचहा बूता के। आज तैं छोड़ा लेबे त काय ओ ह बने रद्दा चले के कोसिस करही ? में ह त इही सोचे हावंव के करनी के फल त ओला मिलना चाही। तभे ओखर रद्दा ह बनही। में नइ चाहों के अपराधी के मदत करे जावय। में ह त अपन नता-गोता मन के इही गत करावब मं नइ हुचतेंव।

केतकी के कान ह ठड़ियागे। ओला नइ समझ परिस के मोंगरा ह अपन मनखे कोती ले आंखी मूंद लेही। कइसनो होवय ओखरे संग त ओला जिनगी पहाना हे। बिन मनखे के नारी के काय जिनगी। ओला किहिस, कइसे कहत हावस ओ नोनी ? फिरन्ता के जमानत जल्दी-जल्दी ले लेना चाही। अतेक पथरा झन बन, बिगरे चाल ह बने बन जाथे, फेर डउकी-डउका मं अंइठन परगे त जिनगी रोते पहाथे। रोज-रोज के किल-किल बाढ़थे। अरोसी परोसी मन घला एसन तमासा ल देखे मं सुख मानथें।

मोंगरा अपन भउजी के गोठ ल अनसुनउक कर दिस। केतकी ह खिसियाय असन चल दिस। मोंगरा ल अचरज लागिस के अतेक बेर के गोठ मां ओहा रुपिया के बात नइ चलाइस। कहां ले आनही रुपिया ? उन्खर दिन ह त अतेक दिन ले दुखे-दुख मां पहावत हे।

मोंगरा ह एहू ल समझे के नारी परानी ह गजब पानी वाली होथें अउ जोन मेंर उन्खर मनखे के बात ह जात होवय ओ मेंर त बिन आगू-पाछू सोचे मनखे के बात बर जीव ल घला दे देथें। फेर अपन मनखे के मूंड़ी ल नइ झुकन देवंय। केतकी ह मन मारके बइठे मंगलू के रद्दा देखत रहय, फेर अबले ओखर पत्ता नइच रहय। बीच-बीच मं ओह अंगना अउ दुआरी मां झांक आवय।

मंगलू ह बिहिनिया ले एती-ओती किंजरत रहय। ओखर दिमाग ह काम नइ देत रहय। बहिनी उप्पर अतेक बड़ दुख परिस अउ मोर ले कुछु नइ करत बनिस। घर उहू गिरो धर डारेंव, काय करंव भगवान ! मोर बहिनी उप्पर आय दुख ह टरतिस। फेर ओह त निच्चट कंगला होगे रहय। ओखर करे कुछु नइ होइस।

जम्मों के अलग जात होथे। अउ उन्खर समाज मेर जम्मो अधिकार रइथे। फेर जब उहू मन एके गुट हो जाथें त नेकी ह अपने ठौर रहि जाथे अउ बदी ह एती ओती किंदरथे। फिरन्ता जोन समाज मां निंगगे रिहिस वो फिरन्ता के संग देवत रहय। उनला आरो मिलिस के फिरन्ता ह पुलुस के फांदा मां फंसगे हावै। ओमन घळा बड़ दउड़िन-धुपिन, फेर जमानत ह नइ होय सकिस। दूसर दिन जमानत ह मंजूर होगे। फिरन्ता ह छूटगे।

मोंगरा ह दिया बारे भुतनी असन दुआरी मां बइठे रिहिस। फिरन्ता ल देखके ओला ओ खुसी नइ लगिस। ओह भितरी अइस। मोंगरा ह रंधनी मां जाके रांधे लगिस। फिरन्ता ल मोंगरा के बात नइ करइ ह खलगे। ओर खिसिया के किहिस – का ए मोंगरा ? तैं बोलस काबर निहीं। किरिया खा ले हस ओ ?
में ह एकर बर नइ कुछु कांही गोठियावत हवं के तोला अपन सफाइ झिन देय ला परय। मनखे एती ओती के किंजरइया होथें न तउने पायके वोह अपन ला बड़ा गियानी समझथें। अउ नारी परानी ह कुरिया मां खुसरे रइथें तउने ल तुमन समझ लथौ के ये मन लेड़गी होथें, इन्खर समझे के बुध नइ रहय।

फिरन्ता ह समझगे के अभी चुप्पे रहय मं बने आय। मोंगरा के मूंड़ी ह बने नइये। फिरन्ता ह रोटी खाइस अउ सूतगे।

बिहिनिया मोंगरा ह झटकुन उठके रांध डारे रहय। फिरन्ता ह घला नहा के ओन्हा पहिरत रहय।

कतेक बेर ओन्हा पहिरे मं लगही गा ? थारी ल परस देय हवंव।

मैं नइ खावंव, मोला भूख नइये।

चलना गा मोर ले रिस हे, अनाज ह तोर काय बिगारे हे ?

तैं जा, मैं कहि देय हावंव के नइ खावंव। मनखे ल अपन रिस ल अपने उप्पर उतारे बर चाहि। मोर काय कसूर हे के तैं मोर उप्पर रिस करथस।

हहो, तैं बने कइथस, कसूर त मोर हे। मेंह ह तोला भोरहा मां रखेंव। फेर मोंगरा का डउकी जात के ये धरम नइ होवय के दुख मां परे अपन मनखे के मदत करै ? जमानत बर अपन भइया ल नइ भेजे सकत रहे ? फेर सही आय के बिगरे दिन मां नता-गोता कोनों नइच पूछैं। फेर तैंह अपन धरम ल भुलवार देय, तेन बने नोहे।

मेंह धरम के रद्दा ल नइ भुलवारे हावंव तेखरे ले मेंह जमानत बर भइया ल रुपिया नइ देंव। मेंह नइ चाहौं के पाप के डारा ह फलै। जतेक जल्दी ओह मुर्झाय ओतके बने हे। भइया ल रुपिया में नइ देवं उहू ह रिसा के चल दिस।

बने केहे मोंगरा। मेंह तोला अब ले नइ समझे सकेंव।

फिरन्ता ह बाहिर रेंगे ल धरिस त मोंगरा ह किहिस – बिन खाय झिन जा गा। फेर फिरन्ता ह आगू बढ़िस। मोंगरा ह रो डारिस। चल न गा तोला मोरेच किरिया हावै। जिनगी बर खवइ ह जरूरी हवय भुखहा झिन रेंग।

फिरन्ता आगू नइ बढ़े सकिस। मोंगरा ह किरिया के पार ओला रोकेच लिस। फिरन्ता के मन ह खिलगे। लहुट के रंधनी भीतरी नींगगे। फिरन्ता ह पीढ़ा उप्पर बइठ के रोटी खावय। अउ मोंगरा ह एती-ओती के हंसउक गोठ ल निकार-निकार के हांसय। फिरन्ता घला मुस्कुरा देवय। रोटी जेंव के फिरन्ता ह मांचा उप्पर आ के सुतगे। संझा बेरा फिरन्ता सुत के उचिस तहां ले मोंगरा ह चहा बनाइस अउ फिरन्ता ल दिस। फिरन्ता के चहा पियत बेरा मोंगरा ह किहिस, सुनगा, मोर बात ह तोला बड़ खराब लागे होही। फेर रिस झिनकर। मोरो मन गुनथे के जइसे जम्मो डउकी मन अपन मनखे के बढ़वारी करथें, महूं करे सकंव। उन्खर आघू मोला मूंड़ी झिन नवाय ल परय। फेर अब ले जोन होइस तेखर गम नइये। ओ निखिद धन्धा ल छोड़ दे, इही मां हम दूनों के जिनगी बनही। मेंह नइ चहौं के तोर गांव भर मां रोजेच नवा नवा किसिम के हिन्ता के गोठ चलय। में नइ सुने सकंव, मोर कान ह फुटहा असन हो जाथे। मोर मेंर जोन गहना गुरिया रखे हे तेला बेंच डार अउ नानमुन केराना के दुकान इही गांव मं लगा ले। जेकर ले तोरो मन ह बिल में रिही। ए राज के निचहा रोजगार करइया ले कोनों मनखे खुस नइ रहे सकयं।

अइसने गोठ के चलते-चलत मोंगरा ह अपन मन के बात कहि डारिस। फिरन्ता ह सुर देके सुनत रहय अउ मने मन अपन बिगरइ के लच्छन उप्पर रोवत रहय, के ओला मनखे कहाय के कोनो जोर नइये। मोंगरा के बात हा गांठ बांधे के हे, सही मां ओह मोरे बर कहिथे। भगवान सहारा देतिस त मेंह मोंगरा के मन के बात ल पूर कर देतेंव।
क्रमशः

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