Wednesday, May 2, 2007

भाग - सात




जूड़ के दिन के उतरती रहय। केतकी के पांव भारी होगे अउ अब नवा फिकर होगे। मंगलू ल जइसन छेवारी के दिन ह लकठावत जावय। मंगलू के परान ह सुखात जाय। ‘मंगना के घर मं सेंध’ कहां त पेट भरे पुरती कमइ नइ अउ छेवारी के खर्चा। होनी त आय। एमा कखरो काय जोर हे।

हमर डहर जनम के बखत अड़बड़ नेग जोग होथे। पहिली गर्भवास के सतवां महीना मं सधौरी होथे। सात किसिम के खाय के जिनिस ल गरभौतिन ला खवाय जाथे। ओखर पाछू कुटुम के माइ लोगन मन खाथें। उही दिन गरभौतिन के मइके ले मोंटरा आथे। ओमा ओन्हा, गहना अउ रुपिया आथे। इही ला ‘सधौरी’ कइथें।

लइका अवतरे के तीन दिन पाछू छेवरिया ल पियेबर दवइ बूटी, मिंझरा पानी ल हड़िया मां घर के आगी मां अउटांथें। इही ल ‘कांके’ पानी कइथें। येला छेवारी ह पीथे अऊ गांव के माइ लोगन मन घला पियेबर आथें। ये सब नेंगहा काम ल ननंद करथे। एला ‘कांके मढ़ौनी’ कइथें। छेबरिया ल जोन दवइ देय जाथे ओला ‘ओसहा’ कइथें। दूसर माइ लोगन बर खाय ल देथें ओला ‘ढूढी’ कइथें। मोगरा बड़ उच्छाह मां डोलत रहय अउ ‘सधोरी’ ल गावत रहय –

महला मां ठाढ़े बलम जी
अपन रनिया मानावन हो
रानी पीलौ मधु पीपर
होरिल बर दूध आहै हों
कइसे के पियउ करु त करायर
अउ झर कायर हो
कपुर बरन मोर दांत
पीपर कइसे पियंव हो
जो रानी तैं पीपर नइ पीबे
मधु पीपर नइ पीबे
त कर लेहूं दूसर बिहाव
ओहिच पीहै पीपर हो
पीर के झार ह पहर भर
मधु के दुइ पहर हो
सउती के झार जनम भर
सेजरी बंटौतिन हो
कंचन कटोरा उठावव
पी लेहूं मधु पीपर हो
क्रमशः

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