Wednesday, May 2, 2007

भाग - सत्ताइस



सुरुज देउता ह किसिम किसिम के रंग ल एती ओती छरिया के बड़ हरबर हा असन अपन लोक कोती जावत रहय। अइसे लागय के उहू ल अपन गिरस्ती के सुरता ह आगे हावय। मंगलू ह बड़ गुनिस फेर मन ल पोठ कर लिस के खेती करहूं अउ अपन गिरस्ती ल बने ढंग ले चलाहूं। संझा के होत-होत ओह सोहागी के मनखे बइसाखू के घर कोती रेंग दिस।

कसगा भइया बइसाखू, हावस गा ?

ह हो बइठगा, चोंगी-माखुर लेके आवत हावंव।

तहीं सिपचा ले भइया में त नइ पियवंव बीड़ी माखुर।

कइसे गा भइया मोर घरेतिन ह काहत रिहिस के अब तहूं खेती करबे।

त का करवंगा। पढ़ई-लिखई ह त काम नइ दिस। गिरस्ती के बोझा ल बिन बूता के त उचाय नइ सकवं। फेर खेती ह उबार लेतिस तहूं बने होतिस।

बने गुने हावस गा।अउ फेर अब केसान मन के दिन ह घला बने आवत हे। हमर जवाहिर लाल ह कहे हे, देश के पोसइया केसान आंय। उन्खर जम्मो किसम के मदत करे जावय। तेखरे ले हमर गांव मां घला विकास जोजना के दबदर ह खुलत हे।

ये दबदर मां का होही जी ?

इहां सब केसान मन के सुख दुख के पुछइया अउ मदत करे बर एक बड़का साहेब रइही। ओखर संगी अउ कतको झिन लिखई-पढ़ई करहीं। ये मन कोन टेम के बोवइ मां खातू डारना चाही, कोन किसम ले हल बख्खर चलाना चाही। जम्मो बात ल समझाहीं। तैं त केसानी काम अबले नइ करे। तोर ददा ह होतिस त आज के खेती मां अन्न उपजा के फेर ले गौंटिया बनतिस। किसम किसम के खातू, किसम किसम के हल बख्खर।

त मोला काय करे बर परही जी ? तैं त जम्मो केसानी के रद्दा ल अभिन्चे बता डारबे तइसने लागथे।
अभी नइत पाछू त मोला बतायच बर परही गा। नइ त तोर बहिनी ह मोर जी ल खा डारही। काली तैं मोर संग रइपुर चलबे उहां रइपुर कोपरेटिव बैंक हे। उहां के साहेब सकसेना ले तोला भेंट करा दूहूं। ओह खेत उप्पर रुपिया देवा दिही। फेर सुरता राखबे खेत के लिखा-पढ़ी के कागद ल घला राख लेथें उही ल देखके रुपिया लागा मां मिलथे।

मोर त लागा के नामेंच सुने ले टोटा ह सुखा जाथे गा। इही लागाह त हमर सतियानाश कर देहे।

तैं काबर डर्रात हस जी। ये लागा ह रामधन के बबा के लागा नोहे। पांच सौ के बियाज हजार रुपिया।
ये सरकारी लागा आय। नाम के बियाज लेथें।

देख गा भइया, बने रद्दा बताबेगा। मोर दुख दुख मं चेत ह नसागे हें।

तैं फिकर झिन कर गा, काली रइपुर चलबे सबे बन जाही।

बिहिनिया ले बइसाखू ह मंगलू के घर मां पहुंचगे। मंगलू घला तियार होके बइसाखू के रद्दा देखत बइठे रहय। बइसाखू अउ मंगलू रइपुर बर रेंग दिन। ये मन रइपुर के कोपरेटिव बेंक मां गिन। फेर ग्यारा के बजत ले साहेब मन आइन त बइसाखू अउ मंगलू सकसेना साहेब के दबदर मां नीगिन।

आव जी मंडल, आवव। कोन गांव ले आवत हवव जी ?

हमन रइपुरा ले आवत हन साहेब। हमर गांव के ये जुन्ना गौंटिया आय। दिन ह गिरगे हे एखर। एला तुम्हर बैंक ले लागा मां रुपिया चाही।

एखर खेती उती हे गा ?

में कहें त साहेब, के ये जुन्ना गोंटिया आय। जमीन-जांता हवय गा।

त बने हे, कतका खेत हावय ?

दू एकर हे गा।

त एला एक हजार लागा मां मिल सकथे। लिखा-पढ़ी आज करा लौ अऊ काली बड़का साहेब के दसखत होय उप्पर रुपिया मिल जाही। अउ ओतके बेर तुमला रुपिया कब अउ कइसे पटाना परही जम्मों बात समझा दे जाही।

बने हे साहेब, भगवान ह तुम्हर जस अउ बढ़ती करै।

ठीक हे तुमन ए चपरासी संग जावव ये ह तुम्हला बाबू मेंर पहुंचा दिही।

दू घंटा लगगे लिखइ-पढ़इ मां। बाबू ल राम राम कइके ये मन फेर रइपुरा बर रेंगिन। दूसर दिन उनला एक हजार रुपिया मिलगे।

मंगलू ल एक हजार रुपिया त मिलगे। फेर ओह खेती के बूता ल कइसे करे समझे नइ पावत रहय। बइसाखू मेंर जाके पूछवं कहिके ओह ओखर घर गिस।

कइसेगा भइया रुपिया त मिलगे, अब कइसे करे के सोचे हवस।

में त खेती कइसे करंव आज ले नइ जानवं। ददा ह त साहेब बनाय बर उतिया गे रहय। ओखर ले खेती के कुछु बूता ल नइ जानवं।

तैं झिन फिकर करगा। में तोर संग देहूं।

तोरे आसरा हे गा।

ले जा गा, फिकर बिलकुल झिन कर। भगवान ह सब बने करही।
क्रमशः

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