Wednesday, May 2, 2007

भाग - पन्द्रह



मंगलू ह कभू कभार आके मोंगरा के हाल चाल ले ल आवय, त मोंगरा ह कहय, में बड़ सुख मं हवंव भइया, तोर असीरवाद ले मोला कोनों दुख तकलीफ नइये।

मंगलू इही गोठ ल केतकी ल सुनावय। उहू मने मन गदगदा जावय, के मोर मोंगरा ह बने रइथे। बिहाव बाद ले फिरन्ता ह बने मनखे होगे हावय।

फिरन्ता अपन करिया जिनगी ल उजराय बर बड़ कोसिस करय। फेर ओमा परे दाग ह निच्चट रसगे रहय। चन्दा के दाग ह ओखर कलंकी के चिन्हारी आय। अइसने दाग के परते मनखे ह कलंकी कहाथे। फिरन्ता ह अपन निचहा धन्धा ल छोड़े बर बड़ कलकुत करय। फेर पइसा के मोह, अफीम गांजा के भक्कम कमइ पुचकार के राखे रहय। फेर ओमा ओखर बढ़ती नइ होइस। कभू अइसन बेरा आ जावय के घर के धान ह पयार मं मिल जावय।

मोंगरा ल खुस करे बर फिरन्ता ह किसम किसम के कोसिस करय। वोला यही डर लगय के ओला झिन सोर मिल पातिस मोर निचहा धन्धा के। मंगलू ले घला भेंट होवय त फिरन्ता ह परतीत देवाय के थोर दिन मां कोनों छुटपुट रोजगार धर के बइठ जाहूं। मोंगरा ल एकर पता नइच लागय।

मंगलू ह फिरन्ता के गोठ ल सुनके मने मन खुसी होवय अउ सोचै के मनखे मन गुनते रहिथें के हमर बढ़ोतरी होवय। फेर येला कोनो नइ जानय के हमर जिनगी मां कब बढ़ोतरी आही, अउ कब गिरे के दिन। एकरे ले सुख अउ दुख ल संगी कइथें। दुख के डबरा ह जब सुख के स्रोत लेथे, त मनखे ह सुख के स्वांसा लेथे, सोझ रद्दा नेंगथे। दुख के पहार ह जब्बे उप्पर टुटथे त ओह चरमरा जाथे, नेक अउ बद जम्मे ल भुला जाथे।

‘मेंह भटकत हावंव नउकरी बर अउ फिरन्ता ह बिलबिलावत हे सुघ्घर जिनगी बर। कहूं जीत त कहूं हार। मोर बांटा मां त हार ह परिस, फेर हिम्मत ह अभी ले नइच टुटिस हे।’

सोनिया ह मांचा मां पचगे रहय। अधपकवा ह बड़े जानी घाव होगे रहय। मांचा मां परे परे ओ फूल दिन दिन कुम्लावत जाय। फिरन्ता ह सोनिया के दवइ दारू मां मंगलू के मदत करत रिहिस। मोंगरा ह एक दू दिन के आड़ मां आके सोनिया ल देख जावय।

सोनिया के दवइ दारू ह बने चलत रहय। मंगलू के दिन ह वइसने रेंगत रहय। ओह रतिहा मांचा मं सुतै फेर बिहिनिया उसनिंधा असन दिखे। ओखर मूंड़ी उप्पर गिरस्ती के बवाल ह चढ़े रहय। कतको बेर फिरन्ता ह मंगलू के मदत करे बर कोसिस करिस फेर मंगलू ह मूंड़ी फेर लेवय। दुख दिन मां मनखे अपन कहइया मनले दुरिया जाथे। गरीब के संगी कोनों नइ बनै। फेर कोनो कोनो मनखे ह बढ़ मयारुख होथे। दूसर के दुख ल जानथे। ओमन दुख मां अपन पराया के चिन्हारी नइ राखंय। नता गोता के इही बेरा त पहिचान होथे। नता एखरे बर त जोरे जाथे के एक दूसर के दुख सुख के संगी बनय। फेर अइसन मनखे थोरके रइथें।
क्रमशः

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