Wednesday, May 2, 2007

भाग - तीन



हिन्ता के गोठ ह राई ले रुख बनगे। मनखे मन मंगलू ला लबरा केहे लागिन। अउ मंगलू ह अपन बिगरे बेरा ले जूझत रहय। बेरा के चाल ह बेलउक रहय। ओला कखरो आसरा नइ रिहिस।

ए दुख के दिन मं मंगलू ल अपन बीते दिन के सुरता ह आ जावय। जब ओह टाटानगर के लोहा कारखाना मं नउकरी करत रिहिस। मंजूरी के संग एती ओती के अवइ मं भत्ता घला मिलय। फेर महिना मां खर्चा ले कुछु रुपिया बांच घला जावय। उही बांचे रुपिया ले ओह अपन गिरस्ती ल अब ले पोसिस। फेर अब त चाउर के एक-एक सीथा ह दुभर होगे। सब्बो के पेट ह पीठ मं चट्टकगे।

मंगलू तीन बच्छर ले ठलहा रिहिस। फेर रइपुर मं कभू कभू लइका मन ल पढ़ाय के बूता ओला मिल जावय। फेर बंधक बूता ओला नइ मिलिस। समारु के पढ़इ लिखइ ह रुकगे रिहिस अउ मोंगरा ल मेटरिक ले आगू पढ़ाय के हिम्मत नइ परिस। अब सबले पहिली ओखर बिहाव के फिकर। फेर जोन मन भूख ले बिलबिलावयं, एतका बढ़ भार ल कइसे उठातिन।

मंगलू हाथ पांव मारे फेर ओखर कुछु नइ चल सकिस। दरिद्री ह ओखर संगवारी बनगे रिहिस ना। सहर के परोसी अउ गंवई के परोसी मं बहुते फरक होथे। मनखे मन कहिथें के सहर के परोसी ह काम नइ परय फेर गंवई के मन इन्कर ले बने रहिथे। मंगलू के अत्तेक कमजोरहा दिन मं कोनों साथ नइ दिन। अउ उलटा ओखर हंसी ठट्ठा उड़ावयं। ओमन कहयं के अतेक तन्दुरुस मोठ डांठ मनखे, पिरथी मं गोड़ मारै त जझरंग ले पानी निकरे लागय। बड़ अचरज के गोठ आय के जम्मो गांव वाला मन के कइथे ओला कुछु बूता नइ मिलय। दुनिया ह कतेक अगुवागे फेर ये करम छड़हा ह अपन डउकी लइका के घोंघरा ल नइ भरे सकय। निच्चट अप्पत हे।
क्रमशः

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