Wednesday, May 2, 2007

भाग - सत्रह



मनखे मन के इहीच गोठ चलत रहय। बेरा मां रामधन के पिछलग्गू मन ओखरो कान भरत रहयं, के अपन रुपिया ल उसूल करे बर हे त कछेरी मं लेग। जब्भे लीलाम होही तब्भे ओखर मुंदाय आंखी ह उघरही के दुनिया ह कोन मेर हावै। हमला त लागथे के फिरन्ता संग उहू चोरहा धन्धा मं लगगे। आज के दिन मं कोन ह फोकटू मां कखरो मदत करथे। फेर एक दिन आगू मां आबे करही। ए जम्मो गोठ ल मोंगरा के गजामूंग सोहागी ह घला सुनिस। ओह मोंगरा के घर कोती रेंग दिस।

कइसे ओ गजामूंग बड़ दिन मां सुरता करे ओ ?

मेंह ह सुरता करथौं तभे त बिन बलाय आ पारेंव।

कइसे ओ हमर भांटो ह त मंजा मां हावय।

हहो, तोर भांटो ह त मंजा मां हावय फेर मोर भांटो को हिन्ता ह सरी गांव के हाना असन होगे हावय। मोर जी ह नइच मानिस तभे त तोर मेर अय हावंव।

काय गोठ चलत हे तोर भांटो के, मोला त अभी ले सुनउक मां नइ आय हावय ?

बड़ अचरिज के गोठ आय, घर गोसइन ल त मालूम नइये फेर गांव वाला मन ला कइसे गम मिलगे !
कहिनी झिन सुना ओ बहिनी, काय सुने हस तोन ल बतिया !

कंकाली तरिया पानी लाने गे रेहेंव त पारा के डउकीमन गोठियावत रहय, के मोर भांटो ह दारू के चोरहा धन्धा ल करथे अउ उही कमइ ले घर चलाथे। फेर मंगलू भइया के मदत घला करथे।

में त अबले ये गोठ ल नइ सुने रहेंव वो, देख त ओ लबरा ह मोला आज ले नइ बताइस के ओहा काय बूता करथे। अउ ये धन दोगानी ल कोन मेर ले लानथे। मोर ले तो कहय के बूता करके पइसा सकेलत हावंव। फेर नानमुन रोजगार करहूं। राम-राम मेंह नइ जानत रेहेंव के ओहा कतेक गिरहा बूता करत हे। सरकार के दुसमन बनही। भइया घला ए ननजतिया संग काजर के कोठी मां हमाये बर उतियाय असन लागथे। उहू नइ बांचय तइसने लागथे।

अभू ओला चेत करा ले ओ गजामूंग नइ त करम मां हाथ धर के रोवइच हाथ लगही।

बने बता दे बहिनी, फेर नारी परानी के कतेक चलथे येला त तहूं जानत हावस।

बने हे, में जात हवंव, फेर आहूं।

मोंगरा ह फिरन्ता ले कुछु नइ पुछिस अउ नइ किहिस – फेर ओह सचेत होगे। फिरन्ता के देखते ओखर मन ह बमके फेर ओह अपन रिस ल दबा देवय। अउ अकेल्ला मां गुनय के ओ दिन ओह मंद मां माते घर आय रिहिस। आज ले कभू कभू मंद के महक ह ओखर मुख मां भभकथे। ए सब्बे काये, मोर बुध मां नइ चढ़य। भइया ला काय होगे हावय अतेक गरिबहा दिन ल भोगिस फेर आज ले ओखर नियत ह नइ बिगरे। ओह कइसे वोकर फांदा मं फंसगे। कइसे ए चोरहा धन्धा मां ओखर मन आगे।

मोंगरा ह मने मन गुनय फेर ओला कखरो ले कहय निहीं। फिरन्ता ह समझे के मोंगरा ल ओखर ले कोनो बद्दी नइये फेर मोंगरा ह पथरा धर ले रिहिस अपन करेजा मां। ओह मने मन तलफत रहय। नारी परानी के इही धरम ल त लेड़गा समाज ह बनाइस हे। ओह मया के देवी आय फेर ओह करु भाखा कइसे बोलय। डर, संकोच अउ लाज ह त नारी परानी मन के ओन्हा आय। तभे त मनखे दबोच डारथे ए मन ला।

फिरन्ता ह कभू त दिया-बाती के बेरा घर आवय त कभू पहर दू पहर रतिहा पहाय ले। फेर आज गजब रात ह पहागे फेर फिरन्ता ह नइ आइस। मोंगरा के जी ह धुकुर पुकुर करत रहय। ओला लगै के राज के दुसमन ह आज सपड़ागे। ओखर आंखी घला फड़फड़ावत रहय।

मोंगरा ह अपन मनखे के रद्दा देखत बइठे रहय। मन मां बने बिगरे विचार ह आवत जात रहय। काय होगे भगवान ? ओ ह अतेक बेर होगे आइस कइसे निहिं। कहूं संगवारी मन संग अनसहुक मंद ल त नइ ढ़कोल लिस, के चेत नइ होवय। हे भगवान मोर उप्पर दया कर ओला बने अक्कल दे, बने रद्दा मं रेंगय, मोला नून भात मिलय, मेंह सुख मानहूं। इज्जत के जिनगी जिअउक लागथे, अउ हिन्ता, हंसई के जिनगी नरक आय नरक। ओला अतके सोचे उप्पर धीर नइ बंधिस। आखरी मां मने मन किहिस – बिहनियां होते भइया मेंर जाके ओखर पता लगाय ल कइहौं। वो हा ओला खोज लानही। फेर ओला समझाहूं के रात के कइसनों घर आ जाय कर। एखर ले पारा परोस मां किसिम किसिम के गोठ चलथे।
क्रमशः

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