Wednesday, May 2, 2007

भाग - नौ



देखत दखते छोटका ह दू महिना के होगे। ओह दिन भर मांचा मं परे परे अपन अंगूठा ल चिंचोरत रहय। मंगलू ह फिकर मं रहय कोनों बूताके।

एक दिन ओह बड़ हंसउक होके घर मं आइस त केतकी ह किहिस – कसगा, आज का बात हे, बड़ खुसी दिखथस।

मंगलू ह किहिस – छोटका के जनम ह बने बेरा मं होइस हे तइसने लागथे। मोर नउकरी ह लगगे हवय, बनिया इहां, दू कोरी रुपिया के। मंगलू के गोठ ल सुनके केतकी के आंखी ले आंसू चुचवागे। त मंगलू ह किहिस – रोथस काबर ?

केतकी किहिस – मैं रोवत नइयों गा, देह मोर सुख के हंसइ आय। मोंगरा के उच्छाह के ओर छोर नइ रहय के हमर घर ले दुख भगावत हे।

रामधन के तगादा उप्पर तगादा आवन लागिस। ओकर कहना रिहिस, के अब त नउकरी घला लगगे। थोर थोर रुपिया देके मोर लागा ल पटावय। फेर गिरस्ती के खोलवा अतेक बड़ रिहिस के ओमा जतका डारव सब्बो हमात जावय, अउ फेर रीता के रीता। थोर थोर के लागा ल त मंगलू ह पटा दे रिहिस। फेर रामधन के लागा ह जस के तस मूंड़ी मं टंगाय रहय। एती मोंगरा घला बिहाव करे लइक होगे रहय। केतकी ह उठत बइठत कहय एसों के साल मोंगरा के बिहाव करेच बर हे। केतकी के गोठ ल सुनके मंगलू के चेथी ह घूम जावय। ‘अंग लिंगोटी फत्ते खान,’ ‘चल रे लंगोटिया गंगा असनाने’ कहांत घोंघरा ल भरै के अधार नइ दिखय, अउ एती मोंगरा के बिहाव ? मैं काय करवं भगवान। जेकर ले मोर गिरस्ती झन बिगरै।

रुपिया पइसा के लेन देन ह एक दूसर के मन मां फरक लान देथे। लागा बोड़ी के रुपिया लेवत मं जतेक बड़ मिठ लागथे फेर ओतके करुवा घला जाथे। अपन पछीना बौहाय के पइसा ल देय ल परथे अउ मनखे के देय के ताकत नइ रहय त उही लागा ह ओला बोझ असन लागथे। फेर ओह भीतरे भीतर डर्रावत रहय, उही बात होगे। रामधन ह रइपुर के उकील ले नोटिस भेजिस। ओमा सफ्फा लिखे रिहिस के एक पखवारा मं पइसा नहीं मिलही त कछेरी ले उसूल करे जाही। मंगलू के पछीना बोहागे। ओहा रामधन के बखरी कोती रेंग दिस।

रामधन ह चउरा उप्पर बइठे रहय। मंगलू ल देखते किहिस भइया मेंह ये त नइ चाहवं के तोला कछेरी उप्पर चढ़ावंव, फेर पइसा के मोह बड़ होथे न मंगलू, एखर बर बाप-बेटा मं भेद पर जाथे। एखर बर मेंह घेरी-बेरी तगादा पठावत रहेंव के थोर थोर करके मोर लागा ह छुटा जावय, फेर तें त कान नइ देय। अब त एक्केच रद्दा बांचे हवय।

का ? मंगलू ल जइसे कोनों आसरा मिलगे। ओह मूंड़ी ल टांग के रामधन कोती निहारे लागिस।

रामधन ह हंसउक हो के किहिस – मैं जानथौंगा, के तेंह ए बेरा मं गजब तकलीफ मं हावस, तोला पइसा के अबड़ेच जरूरी हावय, मोर बात ला मान।

अंधरा खोजे आंखी, उही ल त जनउक कर दे भइया रामधन। ए बेरा मं त मोर तकदीर ह सुतेच गे हे। एक तोरे आसरा हे, में तोर सब्बे गोठ ल सुनहूं अउ मानहूं।

मंगलू के लेड़गा मन असन गोठ ल सुनके रामधन ह किहिस – अपन घर ल गिरो रख दे, मैं तोला रुपिया अउ दे दुहूं। बोल बने हे न, कइसे रिहिस ?

कइसे ल का बतावं गा एह अटपटा बात होगे। मेंह मने मन गुने रहेंव के मोंगरा के बिहाव बर तोर ले अऊ लागा मं रूपिया लेहूं। ओ रुपिया मेंह अपन घर उप्पर लेतेंव, अभी ले कोनो बने लइका मोला नइ मिले हवय फेर गांव के जात सगा मन घला एती ओती गोंहार पार दे हावंय के चमरा ह हमर घर मं रइथे। तभ्भो ले मोंगरा के बिहाव ल करेच्च बर परही। फेर मोंगरा के भउजी ह तियार नहीं होही घर ल गिरो रखे जावय, ओखर ले पूछ के तोला बताहूं।

मंगलू के गोठ ल सुनते रामधन ह खिसियागे अउ किहिस – त मोला घला अतेक समे नइये? नोटिस ल तें झोंक ले हावस।

सुन त ले गा ! मेंह कहे त हवंव के घर मं सलाह करके तोला बताहूं। थोरिक बेर के बात हे। रोनहुक होके मंगलू ह किहिस – मेंह जात हों, बेरा बूड़ते आहूं।

रामधन ल बने नइ लागिस, मने मन बुदबुदा डारिस। रहिजा रे मंगलू, तैं मोर पाला परे हवस। तोर सात पुरखा ह मोर ले नइ बांचय। किहिस – तोला जोन कहना हे, अभी कहिदे, में तोर रद्दा देखत नइ बइठे रहवं।

मंगलू ह ठाड़ होगे अउ किहिस – तोला भरोसा नइये भइया रामधन ? अतेक मेंह लबरा त नोहों। मेंह दियाबाती के बेरा मं आबेच करहूं। बिन घरवाली के पूछे मेंह कुछु नइ कहि सकंव।

रामधन ह किहिस – ये बात त बने हे, फेर मैं ह त अतके गुनत रहेंव के घर ल गिरो रख देबे त मोंगरा के बिहाव बर त मेंह तोर संग देबेच करहूं फेर तोला पांच कोरी रुपिया देहूं। अभी तोला रुपिया के जरूरत घला हवे न।

मंगलू ह किहिस – हहो गा, तैं जइसे कहिबे, वइसने करहूं। अउ रेंग दिस अपन घर कोती।

अंगना मं मंगलू ह पहुंचिस त केतकी ह किहिस – गोड़ ल धो के भीतरी मं आबे, समारु ल बड़े माता आगे हे, गजब भार लेके आए हे देवी दाई ह।

मंगलू के जी ह सुखागे केतकी के गोठ ल सुनत। गोड़ ल धोक मंगलू ह समारु मेर गिस। समारु के पांव ल परिस अउ किहिस ‘आय हवस देवी फेर जाबे घला बने बने। जत्तेक सत्कार हमर ले बनहीं हम ह करबे करबो।’ केतकी ह हांक पारिस, ‘चलना बासी माढ़े हवय उही ल खालौ। आज त कुछु रांधे बर नइये। देवी दाई के रहत ले त साग रांधे निहीं।’ मंगलू ह मने मन सोचत रहय अउ कउरा ल मुख मं डारत जावय।

हमर छत्तीसगढ़ के दे ह रिवाज आय के जबले कखरो घर में देवी दाई रइथे त घर के जम्मो झिन तेल नइ चुपरैं चूंदी मां। ओन्हा घला नइ उजरावय अउ कराही ला चूल्हा मं नइ चढ़ावयं।

मंगलू बासी ल खाके अपन मांचा मं बइठ गे। ओती समारु ह देवी के भार ले तलफत रहय। केतकी ह बांचे बासी ल रंधनी मं भितरी धर के आइस। जब ओह समारु ल तलफत देखिस त मंगलू ले किहिस – मोर बेटा ल बने नइ लागत हे। जावव न जस गाय बर अपन परोसी मन ल बलाले। मंगलू ह माता सेवा वाला मन ला बला लानिस। सुरू करिन –

केवल मोर माय, केवल मोर माय
आहू जगत के, सेवा में हो माय
बिटिया होतेंव, त में आरती उतारतेंव
सुन माता मोर बात, सुन माता मोर बात
दूध चढ़ातेंव, कारी कपिलवा के
में जातेंव दरबार, जातेंव दरबार
दूध चढ़ातेंव माता शितला मं
मोला देबे बरदान, मोला देबे बरदान
पाना टोरतेंव सुन्दर बंगला के
में तो जातेंव दरबार, जातेंव दरबार
पाना चढ़ातेंव माता शितला मं
मोला देतिस बरदान, देतिस बरदान।

माता सेवा वाला मन झूम झूम के ढोलकी बजावंय अउ सुर मिला के गांय। समारु ह देवी के जस ल सुनते सुनते सुतगे। मंगलू ह माता सेवा वाला मन ल चोंगी पिया के बिदा करिस। दू पहर रात पहागे रहय। मंगलू ल ओतके बेर रामधन गौंटिया के सुरता आइस त ओह केतकी मेरन गिस। समारु के मांचा के नजीक मं केतकी घला ऊंघत रहय। मंगलू ओला झकझोरिस। केतकी ह झकना के उठगे। मंगलू ह केतकी ले किहिस – सुनत हवस ओ। आज रामधन ह कहत रिहिस के घर ला गिरो राख दे। नइ त मोर उधार रुपिया ल लान दे। केतकी ह किहिस, - कसगा, रामधन ह हमला जियन नइ देवय तइसने लागथे। कहिते कहत ओखर आंखी ह डबडबागे। ओह किहिस – मोला अइसने लागथे के हमर पुरखउती के डेरा ह अब नइ बांचय। करजा लेवइ त हरुक हवय फेर ओखर देवइ ह गजबेच मुस्कुल बात हे।

मंगलू ह अपन खटला के गोठ ल अनसुनउक कर दिस अउ रेंग दिस रामधन के घर कोती। ‘आरे बरा मुंहे फरा’ रामधन ह मंद म माते चउरा उप्पर अल्लर परे रिहिस। मंगलू ह गजबेच हांक पारिस फेर ओह वइसनेच परे रिहिस। मंगलू ह जब ओखर तीर मं गिस त मंद के भरभरी ह ओला जनाइस। मंगलू ह काय करतिस ओह अपन घर चल दिस।

दूसर दिन राजा करन के बेरा मं मंगलू ह रामधन के चउरा मं जाके बइठगे। गजब बेरा ह चढ़गे। मंगलू ह असकटा गे, ओहर एक झिन पहटिया ले जोन खरेरहा बहरी ले अंगना ल बहारत रहय, किहिस – कसगा ? गौंटिया ह अभी ले सुतेच्च हवय।

पहटिया ह किहिस – नइगा, जुन्ना गौंटिया, ओहर मुंह कान धोवत हे। बइठ मेंह आरो लेके आवत हौं।
थोरके बेर मं पहटिया के संग रामधन ह आगे। मंगलू ह देखते किहिस – मेंह रतिहा आय रेहेवं, गौंटिया, फेर तेंह सुध भुलाय परे रेहे।

ह होगा, मंगलू काली लगान वसूली बर पटवारी ह आय रिहिस त उही ह मंद के सिसी घला लाने रहय। रतिहा उही मंद ल ओखर संग पी डारेंव, बढ़ निसा होगे रहयगा। तेखर ले तोर अवइ के आरो ल नई पा सकेंव।

हं, त काय सोचे ? बेनामा ल त काली रइपुर के उकील ले बनवा लाने रेहेंव। येला देख ले अउ दसखत करदे।

मंगलू ह कलेचुप दसखत करिस अउ रेंगे ले धरिस। त रामधन ह किहिस – रहितो मंगलू, पांच कोरी रुपिया ल धर ले अउ फेर लागही त ले जाबे। कोनो संकोच झिन करबे। मंगलू ह खीसा मं रुपिया धरिस अउ रेंग दिस।
क्रमशः

No comments: