Wednesday, May 2, 2007

भाग - पाँच


रइपुर मं मंगलू ह समाज सिज्छा के अफीसर जगन्नाथ बाबू के बेटा ल रोज पढ़ाय ल आवय। एक दिन ओह मंगलू ले किहिस – क्यों मंगलू, आप यहां के हरिजन नेता को जानते हैं ? मंगलू ह किहिस – हहोगा, जानथंव त काय होगे ?

जगन्नाथ ह किहिस – उसे तुम्हारे गांव में एक मकान किराये से चाहिए, सरकार की तरफ से वह मुर्गी पालन केन्द्र की स्थापना कर रहा है। मंगलू ह चाहते रिहिस ओहा राजी होगे।

मंगलू के घर में तीन झिन हरिजन मन आके रहे लागिन। ओ मन अघुवा के मंगलू ल एक महिना के केराया तीस रुपिया दे दिन। ये रुपिया ले मंगलू एक सहारा मिलिस। ओह अनाज पानी लेके इन्तजाम कर लिस। गांव वाला मन चिचियावत रहिन फेर मंगलू उप्पर ओखर कोनों असर नइ होइस। मोंगरा अउ केतकी घला ये चखचख ला सुनिन फेर उही दूनों झिन एक दूसर के मन ल समझा लिन।

मोंगरा के गोठ अइसे ये, ओह किहिस – तहीं बता न भउजी, अखीर भइया का करतिस ? हमर घर मं अउ कोनों केरायादार मन नइ अइन त हम का करन। चमरा ह आइस त उही ल रख लेन। ये कोनों पाप नोहे। मनखे चोरी झन करय काम कोनों हीन नइये।

रतिहा मंगलू अउ केतकी के गोठ चलत रहय। केतकी ह जात सगा अउ टोला वाला मनले डर्राय के बात ल किहिस त मंगलू ह अपन हाथ ल मटकावत किहिस – मेंह कखरो ले काबर डर्रावं, कोनों ले मदद मांगहूं त झिन देवय। जोन ह मोर बेरा मं संग दिही उही हमर बर सब्बे कुछु हवय। वोह आनजात वाला होवय के जात सगा। जब हमर जात सगा मन संग नइ देइन फेर उन्कर ले डर कइसे केतकी ? मन मं गुनत ओ, जब हमर नान नान नोनी बाबू मन अनाज के एक सीथा बर बिलबिलावय त कोनों ह एक जुआर खवा नइ सकिन। मेंह जौन करे हवयं न सोच समझ के करे हववं।

इन्खर गोठ ह रुकिस त मंगलू के मूंड़ी ह फेर अपन गुन गुन सुरु करिस। कहूं मोला दू कोरी पांच के कोन्हों नउकरी मिल जातिस त मोर दुख ह कट जातिस। लइका पढ़ाये के दस रुपिया मिलथे फेर ओह त ऊंट के मुंख मं जीरा असन आय। एतेक मं गिरस्थी ल कतेक दिन झींकूहं। भगवान करतिस के मनसे के सोचे बात पूर होतिस। फेर ये दुनिया ह घला रिंगी चिंगी हावय। ओह रंग बदलथे, ये दुनिया के फेर मां। उमर ह पहा जाए अउ जिनगी ह थकासी मं सूत जाथे।

जात वाला मन ल आंखी फेरत मां कतेक देर लगथे। अपन टेंटा ला देखैं निहीं, आन के फूला ल हेरथें, जेकर ओमन बड़वारी करथें ओखरे हिन्ता करत मं घला उनला बेर नइ लगय। अउ ओ मनखे ह उन्कर दिखउल मं कुछु नइ रहि जावंय।

पारा मं कखरो घर कुछु उच्छाह होवय त मंगलू घर नेउता नइ देवंय। केतकी ह अइसन व्यौहार ले कंप जावय। अउ सगा मनके छोड़े ले ओला लाज लागय। परोसिन मन कहूं रद्दा मं भेंटय त कहयं के कोन जावय तुम्हर घर। लहुट के नहाय बर परही। घर मं त चमरा ल खुसरे ले हावव, जात सगा मन मरगे रिहिन का ?

परोसिन मन के गोठ ल सुनके केतकी ह चुप्पे नइ रहय। ओह जवाब देबेच करय, के हमन त उप्पर मं रहिथन। केरायादर ह त नीचू मं रहिथे, फेर छुआछूत के कोन बात। एक दूसर ले कोनों सरोकार नइये। फेर सुराज के आयले अउ हमर गांधी बबा कहेले छुआछूत अब कोनों नइ मानयं।

केतकी के अइसन गोठ ल सुनके परोसिन मन मुंह ल बिदकाके रेंग देवयं त केतकी ल लागय के ओखर जीत होगे।

फेर घर के पहुंचते ओखर मन ह उदास हो जावय। जात सगा मनके अइसन दुराव करे ले कइसे बनही। अभी मोला मोंगरा के बिहाव करे बर हवय। जात सगा मन नइ फटकहीं त बने नइये। जात सगा ले मिलके चले ल परही, अलग रहे ले नइ बनय। जात सगा मन त रुख आंय अउ हम ओखर डारा पाना।
अपन मन के गोठ ला एक दिन केतकी ह मंगलू ले किहिस – कसगा, तैं देखथस ? जात सगा मन तिरियागे हवयं, हमन ले। जेन गांव मं हमर सात पुस्त ले गौंटियाई रिहिस, उही गांव मं आज कोनो हमला चीन्हें निहीं। मोंगरा के बिहाव ह बिन पइसा के कब ले पिछुवागे हवय। ए मन मोंगरा के बिहाव मं झांकही घला निहिं।

मंगलू ह किहिस – नइ आहीं त झन अवयं। जात सगा मन नइ आहीं त मोंगरा के बिहाव ह रुक जाही। तोला त अइसने सोचना नइ चाही। फिरे दिन मं मनखे के इज्जत ह मांटी मं मिल जाथे। मेंह अघागे हववं ए जात सगा मनले। मोला अपन रद्दा खुदे बनाय बर हे। मेंह कखरो आसरा नइ करवं।

मंगलू के गोठ ल सुनके केतकी ह चुप्पे होगे। वोह मन मं गुनिस के इन्खर ले कुछु कहय त ए ह अपने बुध के गोठ गोठियाथे।
क्रमशः

No comments: