Wednesday, May 2, 2007

भाग - तेरह


बिहाव बर एक पाख बांचे रहय, फेर केतकी ह अभू तियार नइ रहय बिहाव बर। एक बेर मंगलू ले फेर जोर डार के किहिस – मेंह कइथों तुमन ला का होगे हावय ? तोर आंखी ह मांड़ी मेर चल दिस ? एकर ले त इही बने होही के मोंगरा ल कोनों कुवां तालाब मां लेके बोर आते, लोफ्फड़ मनखे संग ह बने नोहे। फिरन्ता ह बने मनखे नोहे। जात सगा वाला मन त अइसने हमन ल तिरिया दिन हें। फेर ये बिहाव के होते हिन्ता करइ मां कोनो कसर नइच रहय। सब्बे झिन इही कइहीं के लालुच मां परके तैं फिरन्ता संग मोंगरा के बिहाव कर देय।

मंगलू अपन खटला के जम्मो गोठ के जवाब देय बर तियार रिहिस, वोह किहिस – मेंह कतेक बेर तोर ले पहिलिच कहि डारे हवंव के ये जात सगा वाला मनले बिलकुल नइ डर्रावंव। मेंह फैसला कर ले हवंव, अब कखरो कहे उप्पर मेंह नइ घुचंव। बद ले डर्रावत रउहूं त नेकनामी के रद्दा कब लग हेरहूं। बड़ दिन धीर धरेंव। तहीं बता न, मोटियारी टुरी ल कब तक बइठारे रखबौन। फिरन्ता आवारा लोफ्फड़ हे फेर महूं जानथंव वोह काय हे तेनला। मोंगरा असन गउ टुरी ल पाके ओखर चाल ह अपने आप सुधर जाही, जइसे मोर मन कइथे। अउ भरोसा में त मनखे ह सरी जिनगी ल गवां घला देथे।

केतकी ह अपन घरवाला के गोठ ल सुन सुन के खीझावत रहिस। वोह खुनसाय असन किहिस – मोर बात ल नइच मानस, अपने मनके करबे, पहिली मनखे ल अपने ल हेरना चाही। ससुरार जाके मोंगरा ल बड़ बड़ आंसू रोना परही त ओखर मन ह काला कोसही ? तोला, मोला, के ये दुनियां ल। ओखर जिनगानी ल खइता झनकर। एखर ले ओह कोनों गरीब गुरबा घर जाय, मंजूरी करय, छेना थोपे, फेर सुख ले दू कउरा बासी त मिलबे करही।

मंगलू ह जब अतेक बात कहे उप्पर नइच मानिस त केतकी ह रो डारिस। मंगलू ह उचके चल दिस। मोंगरा घला अपन भइया भउजी के बतकही ल सुन डारे रिहिस। ओला अपन तन ह भार असन लागत रहिस – ‘ओह मने मन गुनय, भइया ह कमजोरहा मां अइसे करत हवै, फिरन्ता ह मनखेच आय, फेर ओखर चाल ह बिगरगे हे। अइसने मनखे के कोनो बंधे बूता रहय निहि।अउ अइसन मनखे ल सुधारना घला अपन जिव के देवइ आय। फेर तभो ले ये बने रद्दा मं नइ रेंगय। चोर चोरी ले जावय फेर टाला फेरी ले नइ बरके पाय।’

मोंगरा एहू जानत रहय के मंगलू ह ओखर बिहाव बर कतेक हेरान होगे रिहिस। अतेक तकलीफ के बेरा मां बिहाव ल निपटा के अपन जिनगी के बूता मां उत्ताधुर्रा लगे बर गुनत हे। मेंह भार असन ओकर उप्पर धरे हावंव। एखर ले मोला धीर धरना परही। गउ ल कोनों खुंटा मां बांधव फेर ओह चुप्पे रइथे अउ यही मां ओखर बढ़इ आय। जोन ला मोला भइया भउजी सउपहीं उहां मोला बने हंसी खुसी ले जाय ल परही।

मोंगरा ह अपन मने मन गुनके धीर धर लीस। बिहाव के दिन लकठा गे रिहिस।

क्रमशः

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