Wednesday, May 2, 2007

भाग - बीस

सोनिया ह अब निचट दुबरागे। एती ओखर इलाज ह ठीक ले नइ होय पावत रहय। फिरन्ता ह अपन जिनगी के फिकिर मां लगे रहय। फेर जेहेल ले छूटे के बाद ले ओखर रोजगार ह ठप्प परगे रहय। बिन दवा-दारू के कब ले सोनिया ह रोग ले जुझतिस। देह भर मां हाड़ा हाड़ा दिखत रहय। ओ टुरी ल देखते जी ह धक ले हो जाय। आंसू ह अपने आप आंखी ले निकरे लगय। ‘गरीबी के संगी दरिदरी’ तंगी ह बड़हर ल लील जाथे।

मंगलू अउ केतकी एक दिन छाती पीट-पीट के रहिगे। रोवइच ह हांथ आइस। सोनिया मरे नइ रहय तरगे रहय। ओला कतेक तकलीफ रहय, उही ह जानत रहय। सोनिया के मरे ले एक घाव बनगे उन्खर दुख के दिन मां। मंगलू के करेजा ह चिरागे। ओला ये दुख ह कुरेदै के बाप कहाय के मोला हक नइये। तभे त ओ नानिक टुरी ह बिन दवा दारू के फौउत होगे।

केतकी ह बही असन होगे रहय। अतेक बड़ सेये पाले टुरी...। रोवइ के मारे ओखर आंखी ह फुलगे, निच्चट अंधराय असन होगे।

फिरन्ता ह उन्खर दुख मां अइस फेर वाह रे गांव वाला अउ जात सगा। कोनों ओखर दुख के आंसू पोंछइया नइ बनिन। दुख के नदिया हा पूरागे रहय। फिरन्ता अउ मोंगरा ओखर दू पाट बनगे रहंय। पूरा मां बोहात मंगलू अउ केतकी ल अपन ओरा मां पोटार के गुनत रहंय।

समे के चाल ह चलते रिहिस। ओह कखरो दुख-सुख ल नइ देखे। रामधन ह नालिस कर दे रिहिस। कछेरी ल सम्मन आगे। अब त मंगलू के कनिहा टुटे असन लागिस। ओखर बुध ह काम मनइ करय, का करौं ?

एती फिरन्ता के खीसा हा खाली रहय। बिन पइसा के ओला बने नइच लागय। मोंगरा ल अंधियार मां राख के ओह उही गिरे धन्धा ल अपना लिस।

मंगलू के आगू अंधियार छागे रहय, के लागा ल कइसे छुटावंव। नइ जानंव अउ काय होही। में हार गेंव, हिम्मत निहिं अपन जिनगी ले। अइसे लगथे के मेंह जिनगी भर इती-उती किंजरे बर जनम धरे रहेंव।
केतकी ह घला बक्क होगे रहय। ओला अब लागय के हमर गिरस्ती ह अउ नई रेंगे सकय। घर के एक्के ईंट ह सरकथे त मनखे कथैं के ये घर ह अब नइ बांचे। एखर दिन ह पुरागे हवय। वो ह रद रद ले गिरबे करही। जात सगा वाला मन के इही गोठ चलय। ओमन कहंय के मंगलू ह कोन मेर ले लान के लागा वाला ल रुपिया पटाही। देखत जावव घर ह लीलाम होबे करही। बइठे-बइठे खवइया के इही गत होथे।

मंगलू उप्पर दुख परत जाय। ओह रामधन ले भेंटिस अउ किहिस – भइया रामधन, मोर सेयपाले बेटी के फौउत होगे। मोर मन ह अन्ते-तन्ते किंजरत हे। तैं मोला चार महिना के मुहलत देते भइया, त मेंह ह थोर बहुत तोर लागा ल छुटातेंव। फेर रामधन ह मंगलू के बात ल नइच मानिस, अपन कानूनी कार्रवाइ ल चालू रखिस। अउ मंगलू ले किहिस – नइ जानंव कब तोर बबा मरही अउ बइला ह बिकहीं। में कब ले तोर रद्दा देखत रहौं। अब ले कानी कोड़ी नइ देय फेर बिन कछेरी चढ़े तैं लागा ल नइ टोरावस। काबर के तैं अब ले नंगरा के नंगरा बने हावस।

मंगलू के कान ह तीपगे। ओखर मन ह किहिस ‘गरीबी जिनगी के दुसमन आय आज के दिन मां बिन पइसा के कुछु नइये मनखे ले बड़हर पइसा...।’
क्रमशः

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