Wednesday, May 2, 2007

भाग - दो



हांसके गोठ ह चलते रिहिस। ये तीनों संगी मन मंगलू के हिन्ता कर कर के खुशी मनावत रिहिन। रामधन ह गौंटिया रिहिस, धन दोगानी बुजबुज ले भरे रिहिस। फेर समय के फेर अऊ अब मंगलू के इही कोशिश रिहिस के दूनों जून बासी मिलय जेकर ले ओह अपन गिरस्ती ल चलाय सकय। गिरे दिन मं मनखे हिन्ता करथे, अऊ किसिम किसिम के गोठ ल निकारथें। वो मन ओखर गुन ल भुला देथें, कहूं मनखे के जरूरत ल मनखे समझ पातिस त हिन्ता के बदला मं संगी के मया ह लहलहातिस। छोटे बड़े सब्बो भाई भाई होतिन, पइसा वाला अऊ कंगला के फरक नइ रइतिस।

रामधन के बखरी मां मंगलू के उप्पर किसिम किसिम के गोठ होवत रहय। अऊ मंगलू ह देवारी के दिन अपन करम के धरम मं इती उती किंजरय। धुर्रा धुर्रा के घुमई ओखर पांव मं बेवइ कस घाव होगे रिहिस। पनही ले ओकर अंगरी मन झांकत रिहिन ! फटर फटर करत रेंगे।ओखर ओन्हा मन मां घला कतको कापा लगे रिहिस। ओखर चुन्दी ह कतको दिन ले तेल नइ परे ले छरिया गे रिहिस। मंगलूके दुख के बंटइया भगवान बिगर कोनों नइये, अइसने बेचारा के दिन ह बीतै।

मंगलू ह बड़ आसरा लेके सहर रइपुर के एक बनिया इहां नउकरी के फेर मां आय रिहिस। फेर ओखर ले पहिली ओखर करम छंड़हा तकदीर ह पहुंच गे रहिस। मंगलू उदास मन ले घर कोती रेंग दिस। ओखर खीसा मं एक धेली नइ रहय के रइपुर मं भजिया उजिया खा लेवय। बेरा ह मूड़ी उप्पर आगे रिहिस अऊ अभी ओला रइपुरा अमरे ल एक पहर लगय। रइपुर नहकत ले त ओला मुनिसिपल्टी के टोटी साथ देइस।

मंगलू ह रइपुरा के धुर्रा वाला रद्दा मेंर पहुंचिस के ओला ओखर गांव के धनऊ बरेठ ह भेंटिस। उहू ह रइपुर माटी राख अऊ लील आने ला गे रिहिस। मंगलू ल देखते किहिस – कस गा, जुन्ना गौंटिया, रइपुर गे रेहेगा ? काय बुता परगे रिहिस के अत्तेक तमतमावत घाम मं रेंग देव ? तोर दुख के दिन ल देखके मोर करेजा ह फटथेगा।

मंगलू ह किहिस – का कहौंगा बरेठ कका। बेरा ह अइसने आगे हे के हाथ के सोन ह मांटी होगे हवय। ददा ह रामधन ले करजा नइ लेतिस अऊ नई मोला अइसन दुख भोगे ल परतिस। कोन कोन ल दोष दौंगा, मोर करमें ह फुटहा हे। फेर आघू धन दोगानी नइ देखतेंव त ए दिन ह मोला कभू नइ खलतिस। काय बचे हे, एक ठिन कुरिया अऊ दू एक्कड़ खेत, तउनो मां आगी लगगे हे, बिन पइसा के परती परे हवे।

धनऊ ह किहिस – ले छोड़गा रोनहुक गोठ ल। भगवान ल सबके फिकर रइथे। मंगलू अउ धनऊ भोंभरा ले बचे बर लकर धकर रेंगिन। फेर मंगलू ल गिरस्ती के भार ह झकझोरिस। ओखर गोड़ ह कांपत रहय फेर ओखर चलई ह बड़ तेज रहय। ओला लगय के ओखर उप्पर अकास ह फट परही, बिजुरी ह गिर परही। कोनों ओकर सोर नइ पाहीं। ओखर आंखी के आगू अंधियार छा गे। अपन दुख ला काला कहय। जग के दू नाव, नेकी अऊ बद। मनखे बने के त संगी हवय फेर बिगरे मं मूड़ी घला नइ डोलाय। ये ह जुन्ना रीत हवय न। फेर बेचारा मंगलू कोन खेत के ढेला आय। ओह भटकत रिहिस धरती माता के ओरी मं। ओला कखरो आसरा नइ दीखय। ओह सोचय के आज घर मं चूल्हा नइ बरे होही। समारु ह भुखा गे होही। सोनिया ह भूख ले तलफत होही अउ मोंगरा बहिनी धीर धर के बइठे होही के भइया ह कुछु कांही लानही। रहिगे केतकी, ओहू ह मने मन ए गरीबी मं फटफटावत होही। नइ जानवं भगवान ह कतेक धीरज देय हावय ओला। ओह नारी परानी होके अइसन दुख के दिन मं हांसते रइते। मिहनत करो अउ अगुवाव, दे मां ओखर बिसवास हवय। मोर मरे जिये के संगवारी एक उही ह त हवै। कहूं मेंह अपन खटला ल पेट भर नून बासी खवा सकतेंव अऊ ओन्हा दे सकतेंव, त फेर मोर गिरस्ती मं कुछु कमइत नइ रतिस। फेर जग ह बड़ निरदई हवय। ओह नइ पसीजे, ओखर करेजा ह पथरा के हवय। मनखे मन कइथें के पथरा के छाती म घला पानी होथे, पहाड़ ले नदिया निकरथे। कोनों कोनों पथरा अतेक मजबूत होथे फेर ओखर छुरा बन जाथे त उहू बड़ कसकथे। कहूं कोनों मोर जिनगी के कसक ल समझे पातिन, मोला कुछु कांही बूता देतिन; मेंह रोजी ले लगतेंव। कइसनों मोर गिरस्ती चलतिस अऊ मोला कुछु नइ खंगय।

दुआरी के आगू आगे मंगलू। भितरी ले कखरो रोयके अवाज आवत रहय। चउखट मं गोड़ मढ़ाते ओह ह सुनिस – समारु रोवत रोवत केतकी ले कहत रहय – लान न दाई बासी, अब भूख ह नइ सहाय, दादा ह कोन जाने कब आही, मोला बासी दे।

केतकी ह रो डारिस। वो ह समारु ल समझावत रहय – राजा बेटा मन रोवय नइ समारु, तोर ददा ह आवत होही, तोर बर खाई लानही।

समारु ह जिद करके अउ चिचिया चिचिया के रोवन लगिस। वो ह अपन दाई के लुगरा ल धर के किहिस – नइ दाई नइ, मेंह तोर बात ल नइ मानवं, चल आगी बार, मोला अड़बड़ भूख लगे हवय।

मंगलू ह फरिका तीर ले सब सुनत रहय। ओखर आंखी ले आंसू चुचुवागे। बखरी मं नींगिस अउ समारु ल अपन कउरा मं पोटार लिस अउ ओखर मूंड़ी मां हाथ फिरोइस ओला बिसवास देय बर कुछु किहिस, ओंठ हालिस फेर भाखा ह नइ फुटिस।
क्रमशः

No comments: