Wednesday, May 2, 2007

भाग - बाइस



जग के इही रीत, कोनों उजरथे. कोनों बसथे, कोनों जीथे त कोनों मरत हे। मंगलू के दुख ओखरे करेजा ल छलनी कर दे रहय। मंगलू के जिनगी ले सुख बड़ अगुवागे रिहिस। मंगलू ह ओखर तीर नइ पहुंचे पावाय। दुख ह ओखर संगी, पत्थरा बनगे बेचारा ह। घर के पछीत ह त गिरगे रहय फेर दूसर बरसात मां एक कोनहा अउ बइठगे। दू ठिन कोठा बांचिन। मंगलू ह सोचे घर त निच्चट गिरउक होगे हे। कहूं दूनों कोठा भर भरागे त कहां जाहूं।

फेर घर हा गिरिस त निहीं, लीलाम के सरकारी हुकुम लेके रामधन ह धमक गे। मंगलू त नंगरा रहय, करमछड़हा के संगी कोनों नइ रहंय। दुख के घटइया त कोनों नइ रहय। दुख के बढ़इया गजब होगे राहयं। बोली बोलइयां मन बढ़-चढ़ के बोलत रहयं।

मंगलू अउ केतकी रद्दा उप्पर ठाढ़े अपन नोनी बाबू ल पोटारे रोवत रहयं।

मंगलू के घर के लीलामी होवत रहय। फिरन्ता ह बिहिनिया ले रइपुर चल दे रिहिस। मोंगरा ल एखर पता लगिस त भागत-भागत अइस। संग मां अपन जेवर-जांता घला ले आने रहय।

भइया ये ले गहना गुरिया कब काम आही। एखर ले एला बेच दे अउ अपन लागा ल छुटा। जोन घर में हम सुख-दुख दूनों देखेन, इहें खेलत-कूदत अतेक बड़ होएन, ओला लीलाम नइ होवन देन।

नइ ओ नोनी। में तोर गहना कइसे बेचिहौं। तोर बिहाव के बेर त एक कांसा के चूरा नइ बिसा के दैवं। फेर तोर गहना बेच के कहां जाहूं।

मोंगरा ह फफक-फफक रोवत रहय। उही मेंर केतकी ह घला आगे। उन्खर आंखी ह बरसत रहय। फेर मंगलू ह कोंदा मन असन बादर कोती देखत रहय। एक बेर मोंगरा के गहना कोती देखिस। फेर ओखर आंसू से डबडबाय आंखी बरबराय असन किहिस – नइ ओ मोंगरा तोर कहती नइ करे सकंव। अपन करनी ल महीं भुगतिहौं। तोरो दिन ह त बने नइ जावत हे। तोर मदत नई करे सकंव। फेर तोर मदत कइसे लेवंव।

मोंगरा ह मंगलू ल बड़ किहिस फेर मंगलू ह पथरा के होगे रहय। कोनों ह दूह हजार के बोली बोलिस। मंगलू के जीव ह अबक तबक हो जावय। फेर भोगतिस कोन। दिन ह गोड़ लमा के देखत रहय।

रइपुर ले फिरन्ता ह आइस त रद्दा मां पटेल ह मंगलू के घर के लीलामी के खभ्भर दिस। ओखर होस उड़ागे। भागत भागत आइस अउ भीड़ ल तितिर-बितिर करत घर के दुआरी मं पहुंचिस। उहां मंगलू ह मोंगरा ले कहत रहय – जिद झन कर ओ नोनी, दुख ह भोगे ले सिराथे। सहारा मिले ले ओखर दिन ह अउ बाढ़थे, फेर कम नइ होवय।

फिरन्ता ह इन्खर बीच मां जाके ठाढ़ होगे। ओह बेरा ल समझिस। फेर गहना के मोटरी ल उठाके जाय ल धरिस। अउ मोंगरा ले किहिस – मेंह रुपिया अभिच्चे लेके आवत हवं। घर ह लीलाम होवै अउ हमन देखत रहन, ये कभू नइ हो सके ओ... नइ हो सके।

मंगलू के चेत आइस – अइसे झिन करगा बाबू, गहना बेचे के कोनों जरूरत नइये; मनखे ह अपन बहिनी ल दान मां कोन-कोन जिनिस दे देथे अउ मेंह हिन्ता कराहूं टुरी के गहना ल बेचके। गहना नइ बिकही, घर ह बिकाथे त बिकावन दे।

फिरन्ता के हाड़ा मां लहू उत्ताधुर्रा दउरत रहय। मंगलू फेर किहिस – बाबू दे गहना ह आठ नौ सौ के होही, फेर मोर लागा ह ता बाढ़ के दू हजार होगे हे। एला बेंच के हम उध्धार नइ होवन।

ये गोठ ल सुनते फिरन्ता के मुड़ी ह चकराय असन लागिस। बइठ गे भुइयां मां।

मंगलू के घर ह दू हजार आठ कोरी मां लीलाम होगे। ओखर हाथ मां लागा के रुपिया छुटा के आठ कोरी आइस। फेर बसे के फिकर ह मुड़ी उप्पर सवार रहय। कहां जावंव ए गिरस्ती ल लेके ? मोंगरा अपन भइया अउ भउजी ल अपन घर राखे के सोचे। फिरन्ता ह किहिस घला। मंगलू अउ केतकी मोंगरा घर जाके रहे बर तियार नइ होइन।

उही पारा मां पांच रुपिया महीना केराया मां एक ठिन नानुक घर ल ले लिस मंगलू। अउ जिनगी के गाड़ी ह रेच्चक-पेच्चक फेर चले लागिस।
क्रमशः

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