Wednesday, May 2, 2007

भूमिका – छत्तीसगढ़ के समाज-परिवार का अंकन

मोंगरा एक सफल उपन्यास कृति है जिसमें छत्तीसगढ़ का पारिवारिक एवं सामाजिक जीवुन-रूप अंकित है। आंचलिक उपन्यासकार के लिए आवश्यक होता है कि वह अपनी कृति को उस अंचल विशेष के जीवन से इस पऱकार संयोजित-समन्वित करे जिसे पढ़ कर एक अपरिचित व्यक्ति भी वहां के जन-जीवन के बारे में जान सके। आंचलिक जीवन, प्राकृतिक दृश्यावली, रीति-रिवाज, बोली आदि के स्वरूप उपन्यास में देखे जा सकते हैं। इस दृष्टि से मोंगरा एक सफल उपन्यास है।

मोंगरा में एक गरीब किसान का पारिवारिक जीवन चित्रित है। मंगलू, फिरंता, रामधन, बैसाखू, केतकी, मोंगरा के माध्यम से छत्तीसगढ़ के यथार्थ एवं स्वाभाविक जीवन का दर्शन किया जा सकता है। मंगलू के पिता ने बड़ी-बड़ी आशां बांध कर उसे पढ़ाया था परन्तु दुर्बाग्य ने वह सब न होने दिया, गहन गरीबी में जीवन बिताना पड़ा। परिस्थितियों के घातक प्रहारों से परेशान मंगलू को सामाजिक परम्पराओं को तोड़ना पड़ा, लोगों की निन्दा का पात्र बनना पड़ा। घर में छोटी जाति को किराएदार के रूप में रखना पड़ा जो एक रुढ़िग्रस्त सामाजिक ब्राह्मण के लिए कितना मुश्किल है। विपत्ति अकेले आती नहीं। एक के बाद अनेक। घर गिरने से वह बेकार हो गया, बचा-खुचा घर नीलाम हुआ, पैसों के अभाव में लड़की से हाथ धोना पड़ा, ढेरों कर्ज हो गया, बिरादरी की दुत्कार सकुननी पड़ी। इन सबके बाद भी वह ईमानदारी से विचलित न हुआ। इच्छा के विपरीत प्रणों से प्यारी बहन को उस युवक के हाथों सौंपता है जो सामाजिक उपेक्षा के कारण गलत मार्ग पर चल रहा था। इन सब थपेड़ों के बाद भी जैसे ही अनुकूल समय मिला, वह सम्हला। उसके दुर्दिनों का अंत हुआ। इस प्रकार की सुखद स्थिति एवं दुष्ट प्रकृति वालों को कर्म फल दिला कर जैसे उनके दिन फिरे वाली पारम्परिकता का लेखक ने निर्वाह किया है।

मंगलू के बाद पुरुष पात्रों में फिरंता प्रमुख है जो माता-पिता के प्यार-दुलार से वंचित सामाजिक उपेक्षा का शिकार हो कर दुर्दिन एवं परिस्थितियों के कारण कुमार्ग पर विवश होकर पेट पालने के लिए चल पड़ा है। व्यक्ति ममत्व-प्रेमी होता है। उसे जहां प्रेम और सहानुभूति मिलेगी वहीं रमेगा। निर्दयी समाज जिसे दूसरों की बुराई करने-देखने में ही सुख का अनुभव होता है, वह गरीबों की पीर-पराई क्या समझे। समाज की उपेक्षा ही फिरंता को इधर-उधर भटकने वाला कुमार्गी बनाने के लिए जिम्मेदार है। अन्यथा आंतरिक रूप से फिरंता में ऐसा कोई दोष नहीं है। वह उचित-अनुचित समझता है। स्वच्छन्द जीवन बिताने का अभ्यस्त फिरन्ता शादी के बाद मोंगरा के संपर्क में आता है। मोंगरा जो दुःख सह कर भी सम्मानपूर्ण जीवन बिताने के लिए त्सुक है, गलत कार्य करने से फिरन्ता को रोकती है। फिरन्ता बार-बार झूठ बोल कर उसे बहलाता रहता है। उसमें उदारता है, प्रेम और सहिष्णुता है, जिम्मेदारी के प्रति आस्था है। गलत ढंग से कमाए गए रुपए का भी दुरुपयोग नहीं करता। अन्ततः मोंगरा ही उसे सही मार्ग पर लाती है। मंगलू जहाँ निश्चल, ईमानदार, साहसी छत्तीसगढञी गरीब किसानों का प्रतिनिधित्व करता है, वहीं फिरन्ता उन युवकों का उदाहरण है जो सामाजिक उपेक्षा और स्थितियों की विवशता के कारण वैसा करने को विवश होते हैं। फिरन्ता और मंगलू कामचोर हों, सो बात नहीं है। वे काम करना चाहते हैं, काम तलाशते हैं।


मंगलू की पत्नी केतकी एक बिना पढ़ी-लिखी परन्तु आदर्श भारतीय नारी है। उसने ऐतिहासिक निर्माण भले न किया हो, संघर्ष में तलवार भले न उठाई हो परन्तु भारती संस्कृति की प्रतीक पति-पूजक, धर्म निष्ठ गृहिणी के सारे गुण उसमें विद्यमान हैं। पति की हर मुसीबत में वह साथ है। कोई खीझ नहीं – उलाहना नहीं – अभाव के तकाजे नहीं। मोंगरा को अपनी संतान से अधिक समझती है – यहाँ तक कि एक बिगड़े युवक के साथ मोंगरा के विवाह किए जाने की बात सुन कर वह पति से स्पष्ट विरोध करती है।

उपन्यास की मुख्य पात्र मोंगरा को ही यह श्रेय है कि उसने दो परिवारों के जीवन में सुख का प्रसार किया। वह स्वाभिमानी, सरल, सहज न्यायप्रिय एवं ममतामयी है। मंगलू के दरिद्र जीवन को समाप्त करने और फिरन्ता को सही मार्ग पर लाने वाली वही है। इसीलिए संभवतः उपन्यासकार ने उसके ही नाम पर कृति का नामकरण किया है। मोंगरा को इस बात की चिन्ता रही कि उसके भाई का जीवन सुखी बने, पति सही मार्ग पर चले।

रामधन समाज के उस वर्ग का प्रतीक है जो दूसरों को चूस कर अपने को मोटा करना चाहते हैं, दूसरों की बुराई और निन्दा में सुख पाते हैं, दूसरों की समृद्धि से जलते हैं। मंगलू जैसे सीधे और ईमानदार व्यक्तियों को दुखी बनाने का कारण रामधन जैसे लोग ही हैं जो उनका घर नीलाम कर सकते हैं, बिरादरी से अलग कर सकते हैं, घरों में आग लगा सकते हैं।
00


- डॉ. गंगा प्रसाद गुप्त ‘बरसैंया’

No comments: